ओल (सूरन) तेरा जवाब नहीं

यह सच कहा गया है कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है, इस कथन को चरितार्थ किया है बिहार (हाजीपुर) के ‘उद्यान रत्न एवं ‘राष्ट्रीय कांस्य पदक से सम्मानित किसान शंकर किशोर चौधरी, जिन्होंने कन्दों का महाराजा ओल (सूरन) से न सिर्फ 56 प्रकार के व्यंजन तैयार कर आम जन तक पहुंचाया है, बल्कि कृषि अनुसंसधान व औषधीय क्षेत्र में एक नया अध्याय भी जोड़ा है।

मानवेंद्र

बिहार के हाजीपुर, जढुआ बरई टोला निवासी शंकर किशोर चौधरी, पिछले 21 वर्षों से ओल (सूरन) से तैयार होने वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजन को लेकर नए-नए खोज करते रहे हैं। वर्ष 1994 में छह महीने का फूड क्राफ्ट कोर्स करने के बाद शंकर किशोर ने महज एक एकड़ जमीन लीज़ पर लेकर ओल की खेती की शुरुआत की। ओल की औषधीय गुणों से प्रभावित होकर उन्होंने 1997 में ओल को स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में हलवा, लिट्टी और मुरब्बे के साथ न सिर्फ बाजार में उतारा, बल्कि ओल की सब्जी, चोखा, चटनी, अचार, नमकीन सेवई, चिप्स, पापड़, बड़ी, दनौड़ी, पावरोटी, रोटी, दानेदार मसाला युक्त गुटका, पूरी, भुंजिया, रायता, कोफ्ता, पराठा, कचरी, समोसा, लिट्टी, छोला, चाट, मिश्रित अचार, खिचड़ी, मोदक सादा, सॉस, चूर्ण, दहीबाड़ा, सलाद, पकौड़ी, सादा गुटखा आदि व्यंजन को लोगों की थाली तक पहुंचाया है।
वर्ष 2000 में ओल की खेती में नयी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने पहली बार ओल की बनी मिठाइयों की प्रदर्शनी सोनपुर मेले में लगायी। ओल से तैयार मीठे व्यंजनों में खासकर हलवा, बरफी, चॉकलेट, मुरब्बा, बिस्कुट, कालाजाम, खीर, पुआ, बुंदिया, चाय, राबड़ी, सूखी राबड़ी, आइसक्रीम, लड्डू, जलेबी, जैम, केचप, च्यवनप्राश, रसगुल्ला, जूस, गुलगुल्ला आदि व्यंजनों को सोनपुर मेले के अलावा उन्होंने केरल, कोच्चि में लगी राष्ट्रीय बागबानी मिशन की प्रदर्शनी, छत्तीसगढ़ के बस्तर में प्रदर्शनी, तिवनंतपुरम में राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद की प्रदर्शनी, नई दिल्ली में बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला, प्रगति मैदान और भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी तक पहुंचाया है।
ओल की खेती व उत्पादन के क्षेत्र में शंकर किशोर के इस अहम योगदान के लिए उन्हें कृषि विभाग (भारत सरकार) द्वारा वर्ष 2010 में उद्यान रत्न अवार्ड, वर्ष 2011 में कांस्य पदक एवं वर्ष 2013 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में उन्हें कई पुरस्कार, प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किए गए हैं। ओल चौधरी के नाम से अपनी पहचान बना चुके शंकर किशोर चौधरी के जीवन-कार्य पर दूरदर्शन द्वारा 20 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म ओल तेरा जवाब नहीं भी बनायी गयी है।

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