नई दिल्ली। भारत के युवा और बच्चों पर कोविड19 महामारी का असर आने वाले बहुत सालों तक बना रह सकता है। मंगलवार को यूनिसेफ ने भारत सरकार के केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया द्वारा जारी की रिपोर्ट में इस बारे में सचेत किया। यूनिसेफ की भारत में प्रतिनिधि डॉ. यास्मीन अली हक, स्वास्थ्य सचिव श्री राजेश भूषण, नॉन कम्यूनिकेबल डिसीस के संयुक्त सचिव श्री विशाल चौहानंद, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस की निदेशक प्रतिमा मूर्ति की उपस्थिति में यूनिसेफ की द स्टेट ऑफ वल्र्डस चिल्ड्रेन 2021, ऑन माय माइंड- प्रमोटिंग, प्रोटेक्शन एंड केयरिंग फॉर चिल्ड्रेन मेंटल हेल्थ, रिपोर्ट जारी की गई।
इस अवसर पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री मनसुख मांडविया ने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति और अध्यात्म में भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कई सारी बातें की गई है। मन और शरीर के परस्पर विकास की बात हमारे ग्रंथों में की गई है। स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य मन का निवास होता है। हमें बेहद खुशी है कि आज यूनिसेफ की ओर से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक रिपोर्ट जारी की है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री मनसुख मांडविया ने कहा कि जैसे जैसे हमारे समाज में संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार का चलन बढ़ा है, बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं देखने में आई है। पहले यदि मां ने बच्चों को मारा तो दादी या चाची उसे बचाती रही हैं। लेकिन एकल परिवार में यह संभव नहीं है। माता-पिता भी अपने बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं, इसलिए मानसिक स्वास्थ्य की बात हमें करनी पड़ रही है। हमें बताया गया है कि पूरे विश्व में करीब 14 प्रतिशत बच्चों के साथ मानसिक स्वास्थ्य की समस्या हैं। इसे गंभीरता से लेना होगा। उन्होंने कहा कि बेहतर और विकसित समाज के निर्माण के लिए जरूरी है कि हम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की समय-समय पर निरीक्षण कराते रहें। इसके लिए स्कूलों में शिक्षकों के बेहतर मानसिक स्वास्थ्य की भी व्यवस्था करना होगा। क्योंकि, बच्चे अपने शिक्षकों पर सबसे अधिक भरोसा करते हैं। उनकी बताई गई बातें ही सच मानी जाती है।
Released @UNICEF's report on 'State of the world's children 2021' and spoke about enhancing the holistic well-being of the young generation.#ShiftYourMINDset pic.twitter.com/zuQKzyRsLz
— Mansukh Mandaviya (@mansukhmandviya) October 5, 2021
अपने अनुभव को साझा करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री मनसुख मांडविया ने कहा कि दूसरी लहर में मैंने स्वयं एक मंत्री के रूप में मानसिक दबाव का सामना किया है। लोगों की परेशानियों ने मुझे झकझोरा है। उसके बाद मैं योगा और सुबह सुबह साइकिलिंग करना शुरू किया। मेरी सभी से आग्र है कि आपलोग भी अपने मन की समस्याओं को परखें और उसके बेहतरी के लिए काम करें। घरों में अपने बच्चों के साथ पर्याप्त समय बिताएं। उनसे दोस्ताना माहौल में बात करें।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा परीक्षा पर चर्चा का जिक्र करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री मनसुख मांडविया ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री ने देश के किशोरों और युवाओं से कहा है कि केवल प्रतिशत ही जीवन नहीं है। आप परीक्षाफल में अपना पर्सेंटेंज नहीं देखें, अपने टेलैंट को निखारें। जीवन चलने का नाम है।
यूनिसेफ और गैलप द्वारा 2021 की शुरूआत में 21 देशों में 20,000 बच्चों और व्यस्क लोगों पर किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत के बच्चे मानसिक तनाव की स्थिति में किसी अन्य की सहायता लेने में हिचकिचाते हैं, भारत में 15-24 वर्ष की आयु के बीच के केवल 41 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि मानसिक तनाव की स्थिति में युवाओं को दूसरों से सहायता लेनी चाहिए, जबकि 21 अन्य देशों के औसतन 83 प्रतिशत युवा मदद लेने को सही मानते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल सभी देशों में भारत ही एक मात्र एक ऐसा देश है यहां ऐसे युवाओं का प्रतिशत बहुत कम है जो यह मानते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां दूसरों को साक्षा करनी चाहिए। जबकि अन्य देशों के युवाओं का एक बड़ा प्रतिशत इस बात को मानता है कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों में दूसरों से सलाह लेना उचित है। 21 अन्य देशों में 83 प्रतिशत ने इस बात का समर्थन किया कि मानसिक तनाव में दूसरों से सलाह ले लेनी चाहिए।
द स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स चिल्ड्रेन 2021 सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 15-24 साल की आयुवर्ग के 14 प्रतिशत बच्चे या सात में से एक बच्चा तनाव महसूस करता है या फिर उसकी किसी भी काम में रूचि नहीं रहती। कैमरून में यह अनुपात प्रति तीन बच्चों में एक, बांग्लादेश और भारत में यह अनुपात प्रत्येक सात में एक बच्चे में मानसिक तनाव जबकि इथोपिया और जापान में यह अनुपान प्रत्येक दस बच्चे पर एक देखा गया। जबकि अन्य 21 देशों में यह अनुपात औसतन प्रत्येक पांच में एक पाया गया।