तीन तलाक से आजादी मुस्लिम महिलाओं को 

लीजिए,  हमारी मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति मिल गई । माने जिंदगी में बहार आई ।
राज पाराशर , राज बब्बर और सलमा आगा की फिल्म इसी तलाक को लेकर बनाई गई थी । पति व्यापार में व्यस्त और पत्नी एकांत को भोगने के लिए विवश । वही होटल , वही समंदर का किनारा । दिल में उठती वही लहरें । पिया मिलन की आस पर कोई नहीं पास । आखिर दिल के अरमान आंसुओं में बह गये । यह तो प्रतीकात्मक फिल्म थी । पता नहीं कितनी मुस्लिम महिलाओं ने इस तलाक तलाक तलाक के दर्द कोई झेला । वे वहीं जानती हैं । मुस्लिम वोट बैंक प्रति करारी चोट है यह जबकि रविशंकर प्रसाद कह रहे हैं कि इसे किसी प्रकार की राजनीति से न जोडा जाए । राजनीतिक आदमी कोई काम यों ही नहीं करता । उसके हर कदम के पीछे पूरा गणित होता हैं । दिखाने के लिए कुछ भी दिखाइए । मुस्लिम वोट बैंक की आधी दुनिया में सेंध लगा दी और आधी दुनिया जीत ली । अब किए जाओ संतुषटिकरण । कोई फर्क नहीं पडने वाला । मुस्लिम महिलाएं खुशी मना रही हैं । जायज हैंं खुशी मनाना ।
बरसों बल्कि सदियों पुरानी परंपरा टूटी हैंं । समय लगेगा इसे पचाने में । इतना आसान नहीं ।
मुस्लिम कल्चर की फिल्में पहले ज्यादा बनती थीं । इसीलिए गाने की पंक्तियां मशहूर थीं
मुख से जरा नकाब उठा दो 
मेरे हुजूर 
पर्दा फिर इक बार उठा दो 
मेरे हुजूर, ,,,
अब पर्दा भी कम रह गया और तलाक भी खत्म हो गया । पर एक बात है 
यह तो मन मिले का सौदा है दोस्त 
सात भँवरों से विवाह नहीं होता ,,, 
क्या आमिर खान को उनकी पत्नी रोक पाई ? क्या अजहरुद्दीन को उनकी पत्नी बच्चों का मोह सताया ? क्या मलाइका अरोड़ा रूक पाई ? क्या सुजैन खान ने तलाक नहीं लिया ? तलाक तो अब भी होंगे लेकिन इस तरह एक झटके से नहीं होंगे ।
फिर भी तलाक तलाक तलाक की खत्म हुई दास्तान मुबारक ।
– कमलेश भारतीय 

 

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