सीता को नए रूप में समझने का अवसर मिला वैदेही उत्सव में

दीप्ति अंगरीश

हमारे लिए सीता कुछ दिन पहले तक केवल प्रभु श्रीराम की पत्नी थी। हाल ही में जानकी नवमी के दिन यानी 10 मई को जानकी नवमी के दिन वैदेही उत्सव में गई। मेरे लिए यह सौभाग्य की बात रही कि उद्घाटन के दिन और समापन के अवसर पर उपस्थिति रही। सोहर भी सुनी और समदाउन सुनकर आंखें भी भींगी। सीता, जानकी और वैदेही को लेकर कई बातें से बावस्ता हुईं। जो लोग नारी शक्ति और महिला विमर्श की बात करते हैं, उनके लिए जानकी सबसे सशक्त प्रतिमान हो सकती हैं। मिथिला की हर बेटी में मां सीता का अंश है। सीता मां ने लक्ष्मी के रूप में मिथिला को संपन्न बनाया। सरस्वती के रूप में ज्ञान की भंडार थीं। मां काली के रूप में दृढ इच्छाशक्ति की रूप थीं। भगवान राम पुरुषोत्तम नहीं होते अगर मां सीता उनके साथ नहीं होतीं।मां जानकी एक चरित्र है जो हमें शालिनता, धैर्य, पवित्रता सीखाता है। मां जानकी एक शक्ति है जो आज भी हर महिला में मौजूद है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मणिन्द्रनाथ ठाकुर का कहना है कि वैदेही, अष्टावक्र गीता और जनक के बीच संवाद के निष्कर्ष की प्रतीक है। क्या निष्कर्ष है उस संवाद का? तत् त्वम् असि। इस निष्कर्ष ने बतौर राजा अपनी प्रजा से असीम प्रेम का संदेश दिया। यही निर्विकार और शर्तविहीन प्रेम जानकी का संदेश है। इस बात की सबसे बेहतर समझ गांधी और टैगोर के चिंतन में मिलती है। आज के राजनीतिक वर्ग को यह समझने की जरूरत है। समाज में बढ़ती हिंसा से निजात पाने के लिए वैदेही के संदेश को समझना जरूरी है। मधुबनी लिटररी फेस्टिवल के द्वारा आयोजित इस पेंटिंग प्रदर्शनी में जानने समझने के लिए बहुत कुछ है।

इससे भी मुझे एक नई दृष्टि मिली। इस सात दिवसीय उत्सव का आयोजन सीएसटीएस और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कलाकेंद्र के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। यूं तो सीएसटीएस की अध्यक्ष डॉ सविता झा खान से पुराना परिचय रहा है। मिथिला के लिए वो समर्पित हैं, इसकी जानकारी भी है। मैंने सीता को लेकर जब उनसे बात की तो उन्होंने बेहद संक्षिप्त में कहा कि सीता केवल राम की पत्नी या राजा जनक की पुत्री नहीं थीं, बल्कि वैदेही थीं, जो गर्भ के बाहर पैदा हुईं। प्रकृति की बेटी और गरिमा और अनुग्रह, शक्ति और बलिदान की प्रतिमूर्ति थीं। हम अपनी बेटियों का जश्न क्यों नहीं मनाते हैं, इससे पहले कि हम घर पर उनकी योग्यता को पहचानें, दुनिया उनकी प्रशंसा क्यों करती है?

उनकी इस बात से सीता के प्रति नई दृष्टि मिली। मैंने सीता को जानकी के रूप में देखने की कोशिश की। यूं तो मिथिला के कई मित्र हैं। मैथिल भी हैं। अब तो मैथिली भाषा से भी पुराना संबंध हो गया है। कई मिथिला के जानकार से बात की। सीता को जानकी और महिला शक्ति के रूप में समझने के लिए यहां लगाए गए डेढ़ सौ के करीब मिथिला पेंटिंग्स बेहद अहम रहा। सीता जनक की बेटी के रूप में। प्रभु श्रीराम की पत्नी के रूप में। आदिशक्ति काली के रूप में। तंत्र शक्ति की अधिष्ठात्री के रूप में। ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली आदिशक्ति के रूप में। महिला विमश के रूप में। यहां मैंने सीता के एक नहीं, कई रूप देखे। मिथिला के लोगों को सीता के संस्कार में पोषित देखा। मेरे लिए बेहद नया अनुभव रहा। इसके लिए सीएसटीएस और मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल को आभार। विशेष रूप से डॉ सविता झा खान का। सच कहूं तो मुझे वो वैदेही की प्रतिरूप दिखती हैं। वहीं संस्कार और वही तेवर।

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