पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देती है वट सावित्री पर्व

कुमकुम झा

वट सावित्री का व्रत यों तो महिलाओं के अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की कहानी से जुड़ा है, लेकिन इसमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी निहित है। इस बार वट सावित्री व्रत के दिन सोमवती अमावस्या, सर्वार्थसिद्ध योग, अमृतसिद्ध योग के साथ-साथ त्रिग्रही योग लग रहा है। इसके अलावा माना जाता है कि इस दिन शनिदेव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन वट और पीपल की पूजा कर शनिदेव को प्रसन्न किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि बहुत पहले सावित्री ने अपने पति सत्यवान की प्राण रक्षा के लिए यह व्रत रखा था और अपने पति को मृत्यु के मुंह से खींचकर बाहर लाई थी। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। व्रती महिलाएं वट वृक्ष को जल अर्पित करती हैं। साथ ही हल्दी लगे कच्चे सूत से लपेटते हुए वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। भारतीय अध्यात्म में माना जाता है कि वटवृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तों पर शिव का वास होता है। इसलिए लोक मान्यता के अनुसार वट वृक्ष की पूजा से हर तरह से कल्याण होता है। वट वृक्ष का आदर करते हैं भारतीय

भारतीय समाज वट वृक्ष का आदर करता है। इसके पीछे भले ही धार्मिक मान्यताएं हों, लेकिन उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण का ही जान पड़ता है। वट वृक्ष आकार में बेहद विशाल होते हैं। ये पेड़ पूरे साल राहगीरों को छाया प्रदान करने में सक्षम होते हैं। पुराने समय में अधिकतर सड़कों के किनारे पीपल और बरगद जैसे पेड़ जरूर होते थे। धार्मिक मान्यता वाले लोग इन वृक्षों की पत्तियों तक को नुकसान पहुंचाने से परहेज करते हैं। वट वृक्ष का महत्व

वट वृक्ष की औसत उम्र 150 साल से भी अधिक मानी जाती है। यह पेड़ न सिर्फ राहगीरों को छाया, बल्कि बहुत बड़े पैमाने पर पक्षियों और जंतुओं को आश्रय प्रदान करता है। वट वृक्ष के आसपास प्रदूषण का स्तर स्वत: कम हो जाता है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति ही ईश्वर

भारतीय संस्कृति में प्रकृति को ईश्वर और ईश्वर को प्रकृति के तौर पर चित्रित किया गया है। यही वजह है कि ईश्वर की पूजा की बात आती है तो प्रकृति इनसे अलग नहीं रह जाती है। खासकर हिदू उपासना पद्धति में सूर्य, चंद्र, धरती, नौ ग्रह, नदी, पर्वत के साथ ही वायु, अग्नि, जल की भी पूजा होती है। इसी तरह पीपल, बरगद, बेल, आम, नीम, आंवला, अशोक, लाल चंदन, केला, शमी और तुलसी जैसे पेड़-पौधों की भी उपासना हिदू करते रहे हैं। कुल मिलाकर ऐसे लोकाचारों के जरिए विद्वानों ने पर्यावरण संरक्षण का एक दीर्घकालिक और प्रभावी प्रबंध कर दिया है। ऋषियों ने भी बताया है वृक्षों का महत्व

भारतीय ऋषियों ने भी वृक्षों का महत्व बताया है। कहा गया है कि ‘वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न संभव:’, अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है। मत्स्य पुराण में लिखा है – ‘दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:। दशहृद: सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।।’ इस श्लोक में एक वृक्ष की तुलना मनुष्य के 10 पुत्रों से की गई है।

जानें वट सावित्री व्रत की पूजा विधि और पौराणिक कथा

मद्र देश के राजा अश्वपति को पत्नी सहित सन्तान के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत तथा पूजन करने के पश्चात पुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। फिर सावित्री के युवा होने पर एक दिन अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। जब वह सत्यवान को वर रूप में चुनने के बाद आईं तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 वर्ष पश्चात मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद वह पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं।

इसके बाद नारदजी की बताए समय के कुछ दिनों पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। ऐसे जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। इस पर यमराज ने उनकी धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की। फिर भी पीछे आता देख दूसरे वर में उन्हें अपने ससुर का छुटा राज्यपाठ वापस मिल गया।

आखिर में सौ पुत्रों का वरदान मांगकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस पाए। ऐसे सावित्री के पतिव्रत धर्म और विवेकशील होने के कारण उन्होंने न केवल अपने पति के प्राण बचाए, बल्कि अपने समस्त परिवार का भी कल्याण किया।

व्रत की पूजन विधि

इस दिन सभी सुहागन महिलाएं पूरे 16 श्रृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। ऐसा पति की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन ही सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे। इस कारण से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि जो स्त्री सावित्री के समान यह व्रत करती है उसके पति पर भी आनेवाले सभी संकट इस पूजन से दूर होते हैं।

इस दिन महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री-सत्यवान व अन्य इष्टदेवों का पूजन करती हैं। इसी कारण से इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा है। इस व्रत के परिणामस्वरूप सुखद और संपन्न दांपत्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। ऐसे वट सावित्री का व्रत समस्त परिवार की सुख-संपन्नता के लिए भी किया जाता है। दरअसल सावित्री ने यमराज से न केवल अपने पति के प्राण वापस पाए थे, बल्कि उन्होंने समस्त परिवार के कल्याण का वर भी प्राप्त किया था।

शास्त्रों के अनुसार, वट सावित्री व्रत में पूजन सामग्री का खास महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि सही पूजन सामग्री के बिना की गई पूजा अधूरी ही मानी जाती है। इसके अलावा पूजन सामग्री में बांस का पंखा, लाल या पीला धागा, धूपबत्ती, फूल, कोई भी पांच फल, जल से भरा पात्र, सिंदूर, लाल कपड़ा आदि का होना अनिवार्य है।

इस दिन महिलाएं सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत होने के बाद स्नान आदि कर शुद्ध हो जाएं। फिर नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करें। इसके बाद पूजन की सारी सामग्री को एक टोकरी, प्लेट या डलिया में सही से रख लें। फिर वट (बरगद) वृक्ष के नीचे सफाई करने के बाद वहां सभी सामग्री रखने के बाद स्थाग ग्रहण करें। इसके बाद सबसे पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित करें। फिर अन्य सामग्री जैसे धूप, दीप, रोली, भिगोए चने, सिंदूर आदि से पूजन करें।

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