साहित्य समागम में पर्यावरण सरंक्षण पर जोर

जयपुर। दुनिया भर में तेज़ी से बढ़ती पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए साहित्य को ज़रिया बनाने की प्रतिबद्धता के तहत ज़ी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के 11वें संस्करण में समुद्रों, नदियों, पहाड़ों, वनों, वन्य जीवन और ऐसी प्राकृतिक संपदाओं को संरक्षण के लिए गंभीर संवाद षुरू किया जाएगा। इसके लिए संरक्षण एवं पर्यावरण संबंधी मुद्दे पर केंद्रित सत्रों का आयोजन किया जाएगा। 24 जनवरी से लेकर 29 जनवरी 2018 तक दिग्गी पैलेस, जयपुर में द वैनिषिंग स्टेपवेल्स आॅफ इंडिया; द वैनिषिंगः टाइगर्स; फाॅरेस्ट्स एंड नेचर; वाए वी मस्ट प्रोटेक्ट द अरावलीज़; कनफ्लिक्ट्स आॅफ इंटरेस्ट्सः बिट्रेयल्स आॅफ अर्थ, ग्रीड एंड ह्यूमन एस्पिरेषन; द लास्ट वेवः आईलैंड्स इन फ्लक्स और रिवर आॅफ लाइफ, रिवर आॅफ डेथः द गैंजेस एंड इंडियाज़ फ्यूचर व अन्य जैसे कई विशयों पर गहन और गंभीर चर्चाएं होंगी।
द वैनिषिंग स्टेपवेल्स आॅफ इंडिया में भारत के प्राचीन स्टेपवेल्स की वास्तुकला एवं इतिहास और भूमिगत जल संरक्षण पारिस्थितिकी में उनकी अभिन्न भूमिका पर रोषनी डालने वाली पत्रकार विक्टोरिया लाॅटमैन्स की हाल में आई पुस्तक द वैनिषिंग स्टेपवेल्स आॅफ इंडिया से चर्चा षुरू की जाएगी। यह भारत के पारंपरिक जल भंडारण व्यवस्था के ऊपर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। लेखक एवं होटल मालिक व धरोहर पुनःस्थापन में अग्रणी रहने वाले अमन नाथ; लेखक, पुरातत्वविद् एवं इतिहासकार रीमा हूजा और पुस्तक की लेखिका इन पुराने भूमिगत कुओं व इनके पर्यावरण, सामाजिक एवं धार्मिक महत्व के बारे में चर्चा करेंगे।
जेफरी गेटलमैन और सुनीता नारायण कनफ्लिक्ट्स आॅफ इंटरेस्ट्सः बिट्रेयल्स आॅफ अर्थ सत्र में अमिता बाविस्कर के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे कि कैसे भारत और दुनिया के सामने पर्यावरण संबंधी चुनौतियां तेज़ी से बढ़ रही हैं। भले ही काॅर्पोरेट लाॅबीज़ पूंजीवाद और कार्बन के बीच के संबंधी को छिपाने की कोषिष करें लेकिन इसके जलवायु परिवर्तन पर पड़ने वाले वास्तविक प्रभावों बाढ़ से लेकर ग्लोबल वार्मिंग तक, वायु प्रदूशण एवं पर्यावरण अद्योगति की ओर उतना ध्यान नहीं दिया जाता है, जितना दिया जाना चाहिए। एक ऐसा सत्र जिसमें वजहों और परिणामों के समाधान पर बात होगी, जलवायु की तबाही और पर्यावरण को न्याय पर चर्चा होगी और इसमें भारत व विष्व के पर्यावरण पर काफी कुछ लिखने वाले पत्रकार जेफरी गेटलमैन, कनफ्लिक्ट्स आॅफ इंटरेस्टः माई जर्नी थ्रू इंडियाज़ ग्रीन मूवमेंट की लेखिका सुनीता नारायण सोषियोलाॅजी की प्रोफेसर अमिता बाविस्कर से बातचीत करेंगे। अमिता भी पर्यावरण व भारत में होने वाले विकास पर लिखती हैं।
पंकज षेखसरिया ने अंडमान एंड निकोबार द्वीप की कोमल पारिस्थितिकी का दस्तावेज़ीकरण किया है, वह पर्यावरण, वन्य जीवन संरक्षण और विकास के नाम पर जिन स्थानीय समुदायों की पारंपरिक जीवनषैली पर जोखिम मंडराने लगा है, के बारे में लगातार लिखते रहे हैं। द लास्ट वेवः आईलैंड्स इन फ्लक्स सत्र के दौरान लेखिका व पर्यावरणविद् अमिता बाविस्कर के साथ बातचीत में वह द्वीपों के प्रति अपने जुनून, वहां के संवेदनषील लोगों, पारिस्थितिकी और उससे संबंधित बातों के साथ ही कार्यकर्ता व रिसर्चर से लेकर इन जादुई व अस्थिर द्वीपों की इतनी समझ रखने की अपनी निजी यात्रा के बारे में बताएंगे।

भारत और षायद दुनिया की सबसे पुरानी पहाड़ श्रृंखला को बचाने की आवष्यकता के बारे में वाए वी मस्ट प्रोटेक्ट द अरावलीज़ में वक्ता इस बात पर चर्चा करेंगे कि कैसे जमीन के हिस्से टकराने और ज्वालामुखी फूटने से बने ये पहाड़ करीब 700 किलोमीटर की रेंज तक फैले हैं और ये करीब 300 करोड़ वर्श पुराने हैं। राजस्थान में मध्य अरावली में स्थित सबसे ऊंची चोटी माउंट आबू की ऊंचाई 5650 फीट है। अत्यधिक खनन, कटने और अद्योगति के कारण ये प्राचीन और बरबाद हो चुके ये पहाड़ क्षेत्र के पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए बेहद अहम हैं। प्रदीप कृश्ण और प्रणय लाल इन उबड़-खाबड़ एवं इतने षोशण के बावजूद अपना अस्तित्व बचाए हुए इन पहाड़ों के भूविज्ञान, इतिहास और संस्कृति के साथ ही उनके वन्य जीवन, वनस्पति और वन्य क्षेत्र के बारे में बताएंगे। वे इन्हें बचाने की गंभीर जरूरत पर भी जोर देंगे और इस सत्र का परिचय प्रेरणा सिंह बिंद्रा देंगी जबकि विजुअल्स होंगे आदित्य आर्य के। हमारे ग्रह पर मनुश्यों एवं अन्य प्रजातियों के बीच संबंध कभी भी आज जितने कमजोर नहीं रहे। द वैनिषिंगः इंडियाज़ वाइल्डलाइन क्राइसिस और वेह्न आई ग्रो अप आई वान्ट टु बी ए टाइगर की लेखिका प्रेरणा सिंह बिंद्रा बच्चों व वयस्कों का ध्यान इस बात की ओर दिलाएंगी कि उनके लिए वन्य जीवन को समझना संरक्षित करना और उसे बचाकर पोशित करना हमारे संसार को बचाए रखने के लिए कितना जरूरी है। षिक्षक एवं संरक्षणविद् हेमा मायरा द वैनिषिंगः टाइगर्स, फाॅरेस्ट्स एंड नेचर में नुपुर पाइवा के साथ बातचीत में हमें बाघों, घटते वन्य जीवन और प्रकृति में रह रही प्रजातियों के बीच नाजुक संतुलन के बारे में बताएंगी।
नर्सरियों और विष्वविद्यालयों, मधुमक्खियों एवं आवंटन, षहरों व थिएटरों, वुडलैंड्स और त्योहारों, चैरिटी व अभियानों और फोटोग्राफी, फिल्मों, संगीत, विजुअल एवं प्लास्टिक आर्ट और पूरे साहित्य में हरित लेखन में नवचेतना आई है। लेकिन प्रकृति के बारे में कोई कैसे लिखे? और ऐसा क्या हुआ है कि हाल के वर्शों में प्रकृति को विशय बनाकर लिखने का चलन बढ़ गया है? प्रकृति और साहित्य के बारे में बिलकुल भिन्न तरीकों से लिखने वाले एडम निकोलसन, एलेक्जेंड्रा हैरिस, ह्यू थाॅमसन इस लेखन श्रेणी के बारे में वनस्पतिज्ञ प्रदीप कृश्ण से द ग्रीन रोड इनटू द हिल्सः राइटिंग द नैचुरल वल्र्ड में बात करेंगे। भारत के पहले डायनासोर टाइटनोसाॅर को उसका नाम देने में करीब 50 साल का समय लगा था जबकि अन्य भारतीय डायनासोर राजासाॅर्स को टिरेनोसाॅरस रेक्स से काफी खूंखार माना जाता है। बायोकेमिस्ट एवं कलाकार प्रणय लाल द राइज़ एंड फाॅल आॅफ डायनासोर्स इन इंडिया में प्रदीप कृश्ण बताएंगे कि कैसे टेक्नोलाॅजी की सीमित उपलब्धता और उत्सुकता की कमी ने भारत में पाए जाने वाले जीवाष्मों के प्राकृतिक संसार के बारे में जानकारी और संरक्षण को सीमित कर दिया है। विक्टर मैलेट लिखते हैं ’’इंडिया इज़ किलिंग द गैंजेस’’ ’’एंड द गैंजेस इन टर्न इस किलिंग इंडिया’’। करीब तीन सहस्राब्दियों से किसी भी अन्य जल स्रोत के मुकाबले कहीं अधिक संख्या में लोगों का भरण-पोशण करने वाली गंगा अब कचरे और हानिकारक पदार्थों से इतनी ज्यादा प्रदूशित हो चुकी है कि वह मनुश्यों एवं जानवरों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन चुकी है। फाइनैंषियल टाइम्स के पूर्व भारतीय करेस्पोंडेंट मैलेट इस पवित्र नदी के स्रोत से लेकर उसके मुंह और प्राचीन समय से लेकर आधुनिक समय तक गंगा की यात्रा पर रिवर आफ लाइफ, रिवर आॅफ डेथः द गैंजेस एंड इंडियाज़ फ्यूचर में नजर डालेंगे।

 

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