
श्री लाल मणि महतो को अग्रिम स्तर के ब्लड कैंसर की शिकायत के साथ अस्पताल लाया गया था। उन्हें अग्रिम स्तर के कैंसर के लिए कीमोथेरेपी दी गई। श्री महतो का वज़न काफी तेज़ी से कम होने लगा। इस बीमारी के कारण का पता नहीं था, रांची में एक डॉक्टर से सलाह लेने पर पता चला कि उन्हें खून का नुकसान हो रहा था लेकिन उसका कारण पता नहीं चल सका। मरीज़ के खून का स्तर नियंत्रित करने के लिए उन्हें फोलिक एसिड दिया गया लेकिन मरीज़ की स्थिति और खराब होने लगी। जल्द ही हर 20 दिन में उनके ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई। रांची में कई डॉक्टरों से सलाह लेने के बाद उन्हें ब्लड कैंसर का पता चला। उनकी समस्या का एकमात्र समाधान बोन मैरो ट्रांसप्लांट था। उन्हें डॉ. राहुल भार्गव के पास लाया गया जिन्होंने सफलतापूर्वक सर्जरी की।
डॉ. राहुल भार्गव, निदेशक, हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने कहा, “ब्लड कैंसर का पता चलना मुश्किल है, दूसरी बात यह कि एक बार पता चलने पर भी कोई दवा नहीं है और बीएमटी ही एकमात्र उपाय है। बीएमटी की प्रक्रिया शुरू की गई, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स को शरीर से बाहर निकाला गया। मरीज़ नवजात शिशु की तरह हो गया और उनमें संक्रमण का खतरा बढ़ गया। ऐसी स्थिति में मरीज़ को स्थिर करना एक चुनौती है। एक अन्य शरीर से स्टेम सेल को मरीज़ के शरीर में स्थानांतरित किया गया और सफल ट्रांसप्लांट के लिए शरीर का इसे स्वीकार करना ज़रूरी होता है। जहां तक बात डोनर की है तो इसमें कोई जोखिम नहीं होता है। डोनर को सिर्फ 300 मिली ब्लड स्टेम सेल दान करना होता है और इसमें डरने की कोई बात नहीं होती। मरीज़ बहुत ही भाग्यशाली थे क्योंकि आम तौर पर डोनर मैच 30 फीसदी होता है लेकिन इस मामले में बहन और भाई का मैच 100 फीसदी रहा। डोनर को डोनेशन के अगले ही दिन डिस्चार्ज कर दिया गया। मरीज़ को अस्पताल से सफलतापूर्वक डिस्चार्ज किया जा चुका है और वह सामान्य जीवन जी रहे हैं।”