रहस्मयी कबीरा बाबा,20 किलो की ‘चाबी’ से खोलते हैं अहंकार का ‘ताला’

प्रयागराज। बाबाओं की दुनिया बहुत रहस्मयी है।पवित्र संगम क्षेत्र में आने वाले ऐसे ही कई संतों से मुलाकात आपको निस्संदेह गंभीर दार्शनिक विचारों की ओर ले जाएगी।’हिन्दुस्थान समाचार’ ने भी रायबरेली से आये एक ऐसे ही बाबा से मुलाकात की जो मन में बसे अहंकार का ताला अपनी 20 किलो की ‘चाबी ‘ से खोलने का दावा करते हैं। करीब 50 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके बाबा अपनी भारी-भरकम चाबी को लेकर पूरे देश में घूम रहे हैं। उनका न कोई आश्रम है और न ही एक ठिकाना। वह घूमते हुए अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।

बाबा ने   बताया कि वह पूरे देश का पैदल ही भ्रमण करते हैं,इस महाकुंभ के पहले वह 2019 में अर्धकुंभ में यहां आए थे। अपनी भारी-भरकम चाबी के बारे में वह कहते हैं कि उन्होंने सत्य की खोज की है। लोगों के मन में बसे अहंकार का ताला वह अपनी बड़ी सी चाबी से खोलते हैं और वह लोगों के अहंकार को चूर-चूर कर उन्हें एक नया रास्ता दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानने वाले कबीरा बाबा कहते हैं कि आध्यात्म की ओर पूरी दुनिया भाग तो रही है, लेकिन आध्यात्म कहीं बाहर नहीं है बल्कि वो इंसान के अंदर ही बसा है। कबीरा के नाम से जाने जाने वाले हरिश्चंद्र विश्वकर्मा का बचपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव हो गया था।’हिन्दुस्थान समाचार’ से बात करते हुए उन्होंने कहा कि जब वह 16 साल के हुए तो उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत से लड़ने का फैसला कर लिया और घर से निकल गए।

 

कबीर पंथ से जुड़े होने के कारण बाबा को उनके लोग कबीरा भी कहते हैं। रायबरेली के रहने वाले बाबा का नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है।

पूरे देश मे घूमने के बाद उनको अहसास हुआ कि लोगों को सामाजिक बुराइयों से बचाने के लिए उन्हें कोई साधारण तरीका अपनाया होगा।अब यह 20 किलो की चाबी ही है जिसके सहारे वह लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं।उन्होंने अपनी चाबी के बारे में बताते हुए कहा कि इस चाबी में आध्यात्म और जीवन का राज छिपा है,हालांकि इस चाबी के राज के बारे में लोग जानना नहीं चाहते है, क्योंकि इसके लिए किसी के पास समय नहीं है और कहते हैं कि अगर वह किसी को रोककर कुछ कहते हैं तो लोग यह कहकर मुंह फेर लेते हैं कि बाबा मेरे पास छुट्टे पैसे नहीं हैं। शायद लोगों को लगता है कि मैं उनसे पैसे मांग रहा हूं। इस सबके बावजूद बाबा निराश नहीं हैं और कहते हैं कि वह इस चाबी के माध्यम से लोगों तक अपनी बात पहुंचाते रहेंगें और यही उनकी साधना है।

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