ऐतिहासिक विरासत और भौगोलिक पर्यटन का केंद्र है राजगीर-नालंदा

नई दिल्ली । भारत का पूर्वी राज्य बिहार एक समय में मगध के नाम मशहूर था. मध्यकालीन भारत में मगध पर शासन करने वाले मौर्य वंश, गुप्त वंश और सुंग वंश का शासन का पूरे भारत पर था. इससे ना केवल मगध के शासकों की वीरता का अंदाजा होता है बल्कि इलाके की सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक रीति रिवाजों की संपन्नता का भी पता चलता है. मध्यकालीन दौर में मगध शिक्षा का भी एक प्रमुख केंद्र था.

बहुत सारे विदेशी यात्रियों ने मगध का दौरा किया था. उनमें चीनी यात्री ह्वेन सांग भी शामिल थे. उन्होंने लिखा है कि पश्चिम दुनिया के सभी विश्वविद्यालयों से भी पुराना विश्वविद्यालय नालंदा में मौजूद था. राजगीर, गया, बराबर और नागार्जुनी गुफाएं, गहलौर और जहानाबाद बेल्ट के आसपास पुरात्तात्विक, ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टिकोण से नयनाभिराम जगहों पर बिहार गर्व कर सकता है.
छोटानागपुर के चट्टानी इलाके में स्थित गया-राजगीर का ज्वालामुखी वाला तलछटीय बेल्ट और उसके आसपास का क्षेत्र जियो टूरिज्म के हिसाब से भी उपयुक्त है.
राजगीर के उत्तरी हिस्से में, प्राचीन वस्तुओं के साथ ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) द्वारा हाल ही में तलाशे गए ज्वालामुखीय तलछटी है जो दुलर्भ भूवैज्ञानिक खूबियों से भरा हॉटस्पॉट है, इसे राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक के तौर पर संरक्षित करने का भी प्रस्ताव है. यहां की ज्वालामुखीय चट्टानें और लौह अयस्क के बने झालर जैसी आकृतियां आकर्षण को बढ़ा देती हैं. इसके अलावा राजगीर के पास तोपवन, अग्निकुंड और ब्रह्मकुंड जैसे जैसे कई गर्मपानी के स्रोत हैं. यह भूवैज्ञानिक तौर पर निकले झरने हैं और पर्यटकों के लिए यह किसी शानदार आकर्षण जैसा है. यहां की चट्टानों पर रथ के निशान बने हुए हैं जिसका पौराणिक महत्व के साथ साथ भूवैज्ञानिक व्याख्या भी संभव है.
चुरी, गुलनी और जगन्नाथपुर में ज्वालामुखी के लावे से बनी बेसाल्ट चट्टानों के विस्तार को देखना नयनाभिराम अनुभव है. चुरी गांव में इसे जिस तरह से संरक्षित किया गया है वह इसके भौगोलिक पुरातात्विक धरोहर होने का अहसास कराता है. बराबर-नागार्जुनी मैग्मेटिक कांप्लैक्स की चट्टानों में टाइटेनियम और मैग्नीशियम अयस्क भी पाए जाते हैं.

राजगीर के अंत में घोड़ाकटोरा झील है, यह देखने में बेहद मनमोहक है. छोटी पहाड़ियों से घिरी झील को देखना दिलकश नजारा होता है. राजगीर में ही नालांदा यूनिवर्सिटी के खंड्डर और चूने पत्थर और धातु से निर्मित विश्व शांति स्तूप हैं. इन्हें पहले से ही वर्ल्ड हैरिटेज साइट में शामिल किया जा चुका है, इनकी अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता है.

विश्व शांति स्तूप, मौर्य कालीन स्थापत्य है. ग्रेनाइट और बेसाल्ट की पत्थरों से 80 फीट ऊंची भगवान बुद्ध की इस प्रतिमा से जुड़ी ढरों कहानियां हैं जो इसका आकर्षण बढ़ाती हैं. बराबर और नागार्जुन मानवनिर्मित गुफाएं जिससे मध्यकालीन स्थापत्य कला की झलक मिलती है. यह देश में अपने आप में अनोखे वास्तुशिल्प का उदाहरण है. ये गुफाएं अपने समय में काफी फैशनबल मानी जाती थीं. गुफाओं की ग्रेनाइट चट्टानों में उस दौर की संपन्नता के अवशेष और शिलालेख दिखाई देते हैं. कौआडोल की ग्रेनाइट चट्टानों पर मौजूद शिलालेख, उस दौर के सबसे संरक्षित अवशेष हैं. देवी देवता, उनकी जीवनशैली, संस्कृति, धर्म और  पूजा अर्चना और बहुत सारी कहानियां इन पत्थरों पर अंकित है, इससे मूर्तिकार की विलक्षण प्रतिभा का अंदाजा होता है.

बिहार में भौगोलिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह इलाका एक बेहतरीन उदाहरण हो सकता है. इसकी वजह इस इलाके को देखना शानदार भौगोलिक अनुभव के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्यात पुरातात्विक विशेषताओं से रूबरू होना है. ऐतिहासिक महत्व की जगह पर प्रकृति की ऐसी छटा का दूसरा उदाहरण शायद ही कहीं देखने को मिले.

गया, बौद्ध गया, राजगीर और नालंदा आपस में मिलकर पर्यटकों के लिए एक शानदार हब बनाते हैं. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अहमियत के चलते देश दुनिया के पर्यटकों की इसमें खासी दिलचस्पी भी होगी. प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से भी यह पूरा क्षेत्र मनमोहक है. ऐसे में इस पूरे इलाके के भौगोलिक पर्यटन केंद्र के तौर पर उभरने की पूरी संभावना है.

 

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