गुरुदासपुर की हार भाजपा के लिए खतरे की घंटी

पंजाब की गुरदासपुर सीट के लिए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की प्रचण्ड जीत से गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की चुनावी संभावनाएं एकदम बलवती हो उठी है ऐसा मान लेना भी उचित नहीं होगा। गुजरात में भाजपा के हाथों से सत्ता की बागडोर छीन लेने का कोई सुनहरा स्वप्र अगर कांग्रेस ने अभी से संजों रखा है तो इस सुनहरे स्वप्न को साकार करने की ताकत अभी भी उसके पास नहीं है।

कृष्णमोहन झा

पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रतयाशी की प्रचण्ड मतों से हुई जीत से निश्चित रूप से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का मनोबल एकाएक ऊंचा हो गया होगा। राहुल गांधी इन दिनों हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभाले हुए हैं और भारतीय जनता पार्टी तथा केन्द्र सरकार पर तीखे प्रहार कर रहे हैंं। यद्यपि पंजाब में कांग्रेस पार्टी की जीत के लिए अधिक श्रेय के हकदार तो मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ही हैं जिन्हें गत विधानसभा चुनावों में पार्टी ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया था और उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ा। इसलिए अगर गुरदासपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी की जीत हासिल करने में सफलता अर्जित की है तो इसका सीधा सा मतलब यही है कि पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता आज भी उतनी ही है जितनी गत राज्य विधानसभा चुनावों के समय थी। बल्कि लोकसभा चुनाव में पार्टी की जीत इसलिए भी विशेष मायने रखती है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी के रूप में फिल्म स्टार विनोद खन्ना निर्वाचित हुए थे जिनके निधन के कारण यह उप चुनाव कराया गया। भाजपा के हाथ से यह सीट निकल जाना उसके लिए हताशा का कारण बनना स्वाभाविक है क्योंकि 1998 के बाद विनोद खन्ना ने लगातार चार बार इस लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की थी और 2009 में उन्होंने यह सीट गंवाकर 2014 के लोकसभा चुनावों में पुन: इस क्षेत्र के मतदाताओं का विश्वास जीतने में सफलता अर्जित की परंतु उनके निधन से उपजी सहानुभूति की लहर के होते भी भाजपा के हाथ से यह सीट निकल गई तो उसके लिए यह हार निश्चित रूप से चिंता का विषय है। अगर भाजपा ने अपनी इस परंपरागत सीट के लिए उपचुनाव में मात्र कुछ हजार मतों के अंतर से ही यह सीट खोई होती तो वह खुद को सांत्वना दे सकती थी परंतु लगभग 2 लाख मतों से भाजपा प्रत्याशी की हार के कारण तो भाजपा को अपने अंदर ही खोजने होंगे। भाजपा शायद यह अनुमान लगाने को भी विवश हो सकती है कि केन्द्र सरकार के नोटबंदी एवं जीएसटी जैसे कदमों की भी इस हार में कुछ न कुछ भूमिका अवश्य रही है। इन दो कदमों से व्यापारियों एवं किसानों की परेशानियों में वृद्धि भी भाजपा की हार की बड़ी वजह हो सकती है ऐसा अगर वह नहीं मानती तो निश्चित रूप से इन दो कदमों के कारण उपजी आत्ममुग्धता की स्थिति आगे चलकर और भी नुकसान पहुंचा सकती है। पंजाब की गुरदासपुर सीट के लिए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की प्रचण्ड जीत से गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की चुनावी संभावनाएं एकदम बलवती हो उठी है ऐसा मान लेना भी उचित नहीं होगा। गुजरात में भाजपा के हाथों से सत्ता की बागडोर छीन लेने का कोई सुनहरा स्वप्र अगर कांग्रेस ने अभी से संजों रखा है तो इस सुनहरे स्वप्न को साकार करने की ताकत अभी भी उसके पास नहीं है। गुजरात में लगातार चार चुनावों में विजय हासिल कर चुकी भाजपा को कड़ी चुनौती पेश करने की कोशिशों में जुटी कांग्रेस पार्र्टी के लिए गुरदासपुर लोकसभा सीट जीतना एक ताजे हवा के झोंके जैसा अवश्य है जिससे उसके अंदर मौजूद उमंग, उत्साह और ऊर्जा में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी हुई होगी। हिमाचल प्रदेश में तो उसे अभी भीतरघात की आशंकाएं सता रही हैं। इससे उबर कर ही वह पंजाब में मिली प्रचण्ड जीत से उपजे उत्साह उमंग और अतिरिक्त ऊर्जा से पार्टी की संभावनाओं को बलवती बना सकती है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

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