प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल के चार वर्ष पूर्ण होने पर विशेष
कृष्णमोहन झा
समय बीतते देर नही लगती। केंद्र में मोदी सरकार ने चार साल पूरे कर लिए,लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भी वैसे ही है जैसे चार साल पहले जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।देश मे बदलाव लाने की जो ललक उनमे उस समय थी ,उसमें किंचित भी बदलाव इन चार वर्षों में नही आया है और न ही कठिन चुनौतियों से निपटने में उनके साहस में कोई कमी आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंदर मौजूद ऊर्जा एवं स्फूर्ति पर पहले भी आश्चर्य किया जाता था औऱ चार साल बाद भी वही फुर्ती व साहस मोदी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के परिचायक बने हुए है।अपने नेतृत्व कौशल से उन्होंने चार साल पहले जिस लोकप्रियता के शिखर पर आसीन होने का गौरव प्राप्त किया था, वह निरंतर जारी है। इस हकीकत को.उन्होंने बार -बार प्रमाणित भी किया है। चार साल पहले वे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेता के रूप में थे , आज भी उनसे ये खिताब छीनने में किसी भी राजनेता को सफलता नही मिली है। अपनी जादुई लोकप्रियता के चलते हवा का रुख अपनी और करने की क्षमता आज भी पिछले चार वर्ष की तरह ही है। इन चार सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह साबित करने में कोई कसर नही छोड़ी है कि वे लीक से हटकर चलने में विश्वास रखते है। सफल राजनेताओं के समूह में उनकी विशिष्ट पहचान बन चुकी है।
पीएम मोदी ने देश की सीमाओं से बाहर जाकर भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है। विश्व के शक्तिशाली देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी उनकी राय जानने के लिए उत्सुक रहते है। उनकी आवाज अंतरराष्ट्रीय जगत में अनसुनी नही रह सकती।वे हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पूरे दम खम के साथ खड़े दिखाई देते है। वे अपने विचारों का लोहा मनवाने के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते है। मोदी का यह आत्मविश्वास देश के अंदर एवं बाहर एक सा दिखाई देता है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व मे केन्द्र की वर्तमान सरकार की उपलब्धियों को झुठलाने की या उनपर सवाल खड़ा करने की कोशिशों पर तो कभी विराम नही लगा, परंतु इन कोशिशों से वे कभी विचलित नही हुए है। विचलित न होना शायद यह उनके स्वभाव में ही नही है। नोटबन्दी एवं जीएसटी जैसे निर्णय भली भांति इस बात को साबित करते है।वे आलोचनाओं से नही घबराते और जहाँ तक होता है वे आलोचनाओं का सटीक जवाब भी देते है। पीएम मोदी आलोचकों के लिए कभी कभी ऐसी पहेली बन जाते है ,जिसका हल खोज पाना कठिन प्रतीत होने लगता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा ही अपनी विशिष्ट कार्यशैली से यह साबित किया है कि वे यथास्थिति वाले प्रधानमंत्री नही है।उनकी कार्यशैली में परिस्थितियों को बदलने की ललक स्पष्ट देखी जा सकती है।उन्होंने अपने मंत्रिमंडल टीम में बड़े फेरबदल करने में कोई संकोच नही किया।वे किसी मंत्री को उपकृत करने के इरादे से अपनी टीम में शामिल नही करते है,बल्कि हर मंत्री से अधिकतम कार्यक्षमता के अंदर सर्वोत्तम प्रदर्शन की अपेक्षा रखते है।अगर कोई मंत्री अपेक्षाओं पर खरा उतरने में नाकाम रहता है तो उसका विभाग बदल देते है या उसे मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता भी दिखा देते है। उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू जब मोदी सरकार के सदस्य थे, तब उन्होंने पीएम मोदी के सख्तमिजाजी के बारे में विनोदप्रिय लहजे में एक बार यह टिप्पणी की थी कि मोदी न खुद सोते है न अपने मंत्रियों को सोने देते है। वे मंत्रियों से यही अपेक्षा रखते है कि वे जनता की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे। वे बार बार कह चुके है कि वे प्रधानमंत्री नही जनता के प्रथम सेवक है और हमेशा यही बना रहना चाहता हूं। अब जिस देश का प्रधानमंत्री स्वयं को जनता का प्रधन सेवक माने उसके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को जनसेवक की भूमिका का निर्वहन करने के लिए सदैव तैयार रहना लाजिमी है। पीएम मोदी ने जनता से सीधे संवाद कर उनकी परेशानियों को जानने एवं उसे हल करने की हरसंभव कोशिश की है। उन्होंने अपने जनकल्याणकारी कार्यक्रमों से यह संदेश हमेशा दिया है कि वे जनता की तकलीफों से अच्छी तरह वाकिफ है एवं उसे दूर करने के लिए वे कृतसंकल्पित है। उनकी सरकार द्वारा विगत चार वर्षो में पेश किए गए आम बजट में उनकी यह चिंता साफ देखी जा सकती है।
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार के गठन के बाद देश मे भाजपा के प्रति लोगो का रुझान बड़ा है। वर्तमान में 20 से अधिक राज्यों में भाजपा की सरकारे है। उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में तीन दशकों के बाद भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने में सफल हुई है। पार्टी ने मुख्य विपक्षी एवं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को मात्र पंजाब,पांडिचेरी, मिजोरम जैसे तीन राज्यों में समेट दिया है। कर्नाटक चुनाव में दूसरे नंबर पर आने के बाद राजनीतिक पैतरेबाजी के दम पर कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सत्ता जरूर पा ली है,लेकिन इस गठबंधन के भविष्य पर अभी से आशंकाएं व्यक्त की जा रही है। त्रिपुरा में वामपंथी मोर्चें के हाथों से सत्ता की बागडौर छीन लेना आश्चर्यजनक उपलब्धि है। जम्मू कश्मीर में जब भाजपा ने पीडीएफ के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई ,तब अनेकों सवाल उठाए गए किन्तु अभी तक दोनों पार्टियों के बीच जो तालमेल बना हुआ है उसने विरोधी दलों को भी अचंभित कर दिया है। इससे यह आशंका भी निराधार साबित हो गई कि जम्मू कश्मीर में यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नही कर पाएगी। कर्नाटक में कमल खिला चुकी भाजपा अन्य दक्षिणी राज्यों में सत्ता की दहलीज पर पहुचने के लिए पूरे दमखम के साथ तैयार हो चुकी है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंदी अब मार्क्सवादी पार्टी नही बल्कि भाजपा हो गई है। हाल ही में हुए पंचायत चुनावों में भाजपा ने दूसरे नंबर पर आकर तृणमूल सुप्रीमों ममता बनर्जी की चिंताएं बड़ा दी है। आगामी लोकसभा चुनाव में अब ममता की राह 2014 की तरह आसान नही होगी।
विश्व की सबसे बडी राजनीतिक पार्टी बन चुकी भाजपा देश की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बन चुकी है। कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज अन्य दलों के पास फिलहाल तो नही है।पार्टी को इस मुकाम पर पहुचाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को जाता है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की बात करे तो इन चार वर्षों में पीएम मोदी ने लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपना दबदबा कायम किया है। संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के मुद्दे पर अब भारत की आवाज को अनसुनी नही किया जाता है। पाकिस्तान को आतंकवाद के पोषक के रूप में कठघरे में खड़े करने में जो सफलता मिली है,यह उस दबदबे का परिचायक है। पाकिस्तान को अलग -थलग करने के बाद भी उसके साथ मैत्री संबंधों की पुनर्स्थापना के प्रयासों में मोदी कभी पीछे नही हटे।उन्होंने हमेशा इसके लिए प्रयास किए। सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा उन्होंने पाकिस्तान को यह कड़ा संदेश भी दिया कि भारत ने सारे विकल्प खुले रखे है।इजराइल ,जापान,जर्मनी आदि देशों से दोस्ताना संबंधों का नया युग प्रारंभ करने में उन्होंने सफलता पाई है।भारत का मुख्य प्रतिद्वंदी होने के बावजूद चीन भारत के साथ हमेशा टकराव से बचता रहा है। इसे पीएम मोदी की कूटनीतिक सफलता माना जाएगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)