70 प्रतिशत भारतीय माँ नाखुश

नई दिल्ली।  महिलाओं के लिए भारत का सबसे बड़ा यूजर-जनेरेटेड कंटेंट प्लेटफार्म है-मॉमस्प्रेसो। बीते दिनों मदर्स डे के अवसर को ध्यान में रखते हुए अप्रैल 2018 के अंतिम हफ्ते में 1,200 शहरी भारतीय माताओं पर एक अध्ययन किया है। ‘मॉम्स हैप्पीनेस इंडेक्स 2018’ शीर्षक के इस अध्ययन के जरिये रुढ़ियों से परे जाकर यह जानने की कोशिश की कि क्या शहरों में रहने वाली भारतीय माताएं वास्तव में खुश हैं? साथ ही साथ यह भी जानने की कोशिश की गई कि उनकी समग्र खुशी को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं। असल में, मॉम्स्प्रेसो-वोक्स पोपुली स्टडी का उद्देश्य ‘माँ’ नामक व्यक्तित्व के पीछे के असली व्यक्तित्व को जानना था। उस पर क्या गुजरती है, वह क्या सोचती है, उसे दूसरों से क्या चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण उन सभी पहलुओं को जानना था जिससे उसे समग्र रूप से कैसे खुश किया जाए। इसमें आ रही समस्याओं और बाधाओं का पता लगाना भी महत्वपूर्ण था।
स्टडी के मुख्य निष्कर्ष चौंकाने वाले थे। करीब 70 प्रतिशत भारतीय माताओं ने खुद को नाखुश बताया। माताओं ने सबसे ज्यादा भारता (31.1%) वह किस तरह की माँ हैं इस अवधारणा को दी। इसे ही उन्होंने खुशी का मुख्य चालक भी बताया। रोचक बात यह है कि 73 प्रतिशत माताएं सोचती हैं कि वे एक माँ के तौर पर ग्रेट नहीं हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि उनके बच्चे (56%) और उनके पति (37%) उन्हें एक महान माँ के तौर पर रेट करेंगे। इंडेक्स के अनुसार, उनकी खुशी के अन्य चालकों में उनकी खुद की शादी, वित्तीय सशक्तिकरण का स्तर, किसी भी दिन में मिलने वाले व्यक्तिगत समय, कार्यस्थल पर मिलने वाले सहयोग और उनके सहकर्मियों या साथियों के समूह की भूमिका भी अहम रही। जहाँ तक सबसे ज्यादा तनाव वाली बातों का सवाल है, ज्यादातर माताओं के लिए अपने बच्चों का इंटरनेट और गैजेट का बहुत ज्यादा इस्तेमाल परेशान करता है। उनकी खान-पान की व्यवस्था करना, अनुशासन, शैक्षणिक प्रदर्शन और एक्स्ट्रा-करिकुलर गतिविधियाँ उसके बाद आती हैं।
वहीं, 59 प्रतिशत माताओं ने स्वीकार किया कि वे अपने विवाह से खुश नहीं हैं और सबसे नाखुश महिलाओं ने कहा कि पिछले एक साल में उन्हें उनके पति से एक बार भी तारीफ नहीं मिली थी। ध्यान देने वाली सबसे रोचक बात यह है कि बूढ़ी माताएं (48%), युवा माताओं के मुकाबले ज्यादा खुश थीं। कामकाजी महिलाएं (52%) काम न करने वाली समकक्षों के मुकाबले ज्यादा संतुष्ट नजर आई।
अध्ययन के संदर्भ में मॉमस्प्रेसो के सह-संस्थापक और सीईओ विशाल गुप्ता ने कहा कि मॉमस्प्रेसो ने हमेशा से भारतीय माताओं के एक महिला के तौर पर सफर में सहयोग देने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है। मदर्स डे के उपलब्ध पर, हमने कई ब्रेन-स्टॉर्मिंग सेशन किए कि किस तरह हम ऐसा कुछ करें जो इस दिन के बाद भी तार्किक और उपयोगी बना रहे। जब हम हमारे प्लेटफार्म पर मौजूद कंटेंट में चले गए और हर दिन भारतीय महिलाएं जिस तरह की खुशी, थकान, चुनौतियों और यूफोरिया महसूस करती है, उसे पढ़ने के बाद हमारे पास एक ही सवाल निकलकर आया कि ह्यक्या भारतीय माताएं खुश हैं? इस महत्वपूर्ण सवाल का जवाब तलाशने की कोशिस में हम मॉम्स हैप्पीनेस इंडेक्स तक पहुंचे। इसका उद्देश्य संवाद और बहस करना था कि माताएं किन परिस्थितियों का सामना करती है। वह क्या सोचती हैं। उन्हें क्या चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण, उन्हें कैसे खुश किया जा सकता है। हमें उम्मीद है कि यह सर्वे न केवल बहस को बढ़ावा देगा बल्कि असली स्थिति के बारे में जागरुकता बढ़ाएगा। जिससे आज की आधुनिक भारतीय माँ  की आकांक्षाओं और जरूरतों का पता चल सकेगा।
वहीं, वोक्स पोपुली रिसर्च के डायरेक्टर राजी बोनाला ने कहा कि इससे पहले के अनुसंधान से हमें पता है कि माताएं क्षमता से अधिक काम करती हैं। लेकिन हम उसकी तीव्रता को देखकर चकित रह गए थे। यह कहने के बाद हमारे पास अब मॉमस्प्रेसो.कॉम जैसे भरोसेमंद सर्वे का मजबूत डेटा है। जो बताता है कि भारतीय माताओं की भूमिका तेजी से बदली है। वह अब ड्यूटी-ओरिएटेंड मां से एक ऐसे व्यक्ति में तब्दील हो रही है, जो सशक्तिकरण और सामाजिक पहचान चाहती है। जो उसके परिवार को अलग मुकाम पर ले जाना चाहती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.