iodine कितना जरूरी है मानव जीवन के लिए ?

दीप्ति अंगरीश

जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर के अनुसार, भारत में लगभग 20 करोड़ लोगों में आयोडीन की कमी से होने वाले विकार (आईडीडी) का खतरा है। इनके अलावा 7.1 करोड़ लोग गॉइटर (गलगंड) और अन्य आईडीडी से पीड़ित हैं। दुनिया भर में यह आंकड़ा 2 अरब है। आईडीडी किसी को भी अपना शिकार बना सकता है, लेकिन 6 से 12 आयु वर्ग के बच्चे-किशोर सबसे ज्यादा प्रभावित रहते हैं। आईडीडी का सबसे बुरा असर जीवन के पहले 1000 दिनों में और गर्भाधान से 2 वर्ष की आयु तक होता है।
विश्व आयोडीन अल्पता दिवस अथवा वैश्विक आयोडीन (iodine) अल्पता विकार निवारण दिवस प्रतिवर्ष 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने के पीछे उद्देश्य आयोडीन के पर्याप्त उपयोग के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना और आयोडीन की कमी के परिणामों पर प्रकाश डालना है। विश्व भर में आयोडीन अल्पता विकार प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गई है। आज के परिदृश्य में विश्व की एक तिहाई आबादी को आयोडीन अल्पता विकार से पीड़ित होने का ख़तरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के अनुसार लगभग 54 देशों में आयोडीन अल्पता अभी तक मौजूद है।
यदि समय पर इलाज नहीं किया जाए, तो आयोडीन की कमी से हार्ट संबंधी बीमारियां हो सकती हैं जैसे- हार्ट का बढ़ा हुआ आकार और हार्ट फेल होना। वहीं इसकी कमी से महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या हो सकती हैं, जैसे-अवसाद और बांझपन। आयोडीन की कमी वाली महिलाओं के प्रेग्नेंट होने की संभावना 46 फीसदी कम होती है। गर्भवती महिलाओं में थायराइड हार्मोन की कमी का असर बच्चे पर पड़ता है। नवजात जन्म से कमजोर होगा। वहीं गर्भपात, मृत बच्चों का जन्म और जन्म से ही होने वाली असामान्यताओं का जोखिम बढ़ जाता है।
Iodine आयोडीन एक पोषक तत्व है, जो शरीर में थायरॉयड नामक रसायन बनाने के लिए आवश्यक होता है। थायरॉइड ही शरीर के समग्र विकास को नियंत्रित करता है। श्वास लेने और हृदय गति से लेकर शरीर के वजन और मांसपेशियों की शक्ति तक, सब कुछ बेहतर कार्य करे  यह आयोडीन पर निर्भर करता है। जब आयोडीन का स्तर बहुत कम होता है, तो नींद आने लगती है। मरीज ध्यान लगाकर काम नहीं कर पाता है। जोड़ों या मांसपेशियों में दर्द के साथ डिप्रेशन होने लगता है। कुल मिलाकर भले ही आयोडीन बहुत थोड़ी मात्रा में जरूरी हो, लेकिन इसकी कमी शरीर को बड़ा नुकसान पहुंचाती है। वयस्कों को आमतौर पर प्रति दिन 150 माइक्रोग्राम (एमसीजी) आयोडीन की आवश्यकता होती है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रति दिन 200 एमसीजी जरूरी है।

हमारे शरीर में आयोडीन का निर्माण नहीं होता, यानी हमें आहार के रूप में ही इसे शरीर में पहुंचाना होता है। आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रंथि का आकार असाधारण रूप से बढ़ जाता है।’ अन्य खाद्य पदार्थों के साथ आयोडीन युक्त नमक इसका विकल्प है, लेकिन राजस्थान, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में इसके सेवन की मात्रा देश में सबसे कम है। इंडिया आयोडीन सर्वे 2018-19 के अनुसार, ‘भारत में 85.6 फीसदी लोगों को आयोडीनयुक्त नमक के बारे में जानकारी है और 74.6 फीसदी यह जानते हैं कि इसकी कमी से कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं।’ यही कारण है कि हर वर्ष 21 अक्टूबर को आयोडीन डेफिशिएंसी डे के रूप में मनाया जाता है, ताकि लोगों को जागरूक बनाया जा सके।
मछली, अंडे, मेवे, मीट, ब्रेड, डेयरी उत्पाद और समुद्री शैवाल, कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिनमें प्रचूर आयोडीन होता है।  यदि आहार से पर्याप्त आयोडीन की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, तो डॉक्टर इसके सप्लिमेंट की सलाह देते हैं। आयोडीन नमक इसका एक तरीका है। लेकिन ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में आयोडीन नमक का सबसे कम इस्तेमाल होता है। यहां महज 65.5 फीसदी घरों में ही आयोडीन युक्त नमक खाया जाता है। इसके बाद तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश हैं। यानी इन राज्यों को आयोडीन की कमी से बचाना है तो आयोडीन युक्त नमक का सेवन बढ़ाना होगा।

21 अक्टूबर विश्व आयोडीन अल्पता दिवस पर विशेष

एक व्यक्ति को जीवनभर में एक छोटे चम्मच से भी कम आयोडीन की आवश्यकता पड़ती है। चूंकि आयोडीन शरीर में जमा नहीं रह सकता इसे दैनिक आधार पर लेना पड़ता है। रिसर्च से पता चला है कि महिलाओं को गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान अपने आहार में पर्याप्त आयोडीन नहीं मिलता।
आयोडीन की कमी से आप मानसिक तथा शारीरिक तौर पर प्रभावित हो सकते हैं। इसके आम लक्षण हैं त्वचा का सूखापन, नाखूनों और बालों का टूटना, कब्ज़ और भारी और कर्कश आवाज़ । इनमें से कुछ लक्षण गर्भावस्था में आम पाए जाते हैं इसलिए इस बारे में डाक्टर से सलाह लेना सुरक्षित है।
आयोडीन की कमी से वज़न बढ़ना, रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ना और ठंड बर्दाश्त न होना आदि लक्षण होते हैं। वस्तुत: आयोडीन की कमी से मस्तिश्क का धीमा होना और दिमाग को क्षति आदि हो सकते हैं जिन्हें समय से रोका जा सकता है।
आयोडीन की लगातार कमी से चेहरा फूला हुआ, गले में सूजन (गले के अगले हिस्से में थाइराइड ग्रंथि में सूजन) थाइराइड की कमी (जब थाइराइड हार्मोन का बनना सामान्य से कम हो जाए) और मस्तिश्क की कार्यप्रणाली में बाधा आती है।
गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी से गर्भपात, नवज़ात शिशुओं का वज़न कम होना,शिशु का मृत पैदा होना और जन्म लेने के बाद शिशु की मृत्यु होना आदि लक्षण होते हैं। एक शिशु में आयोडीन की कमी से उसमें बौद्धिक और विकास समस्यायें जैसे कि मस्तिश्क का धीमा चलना, शरीर का विकास कम होना, बौनापन, देर से यौवन आना, सुनने और बोलने की समस्यायें तथा समझ में कमी आदि होती हैं।
भारत में नेशनल आयोडीन डिफिशन्सी डिसऑर्डर कंट्रोल प्रोग्राम (एनआईडीडीसीपी) लागू किया जा रहा है। इसका उद्देश्य है – आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों को रोकना, नियंत्रित करना और जड़ से खत्म करना। इस प्रोग्राम के तहत आयोडीन युक्त नमक की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आईडीडी सेल और आईडीडी निगरानी प्रयोगशालाओं की स्थापना की जा रही है।

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