चीन के मुकाबले कृषि-रसायन उद्योग 9 फीसदी से भी अधिक दर से हो सकता है विकसित

नई दिल्ली। घटती चीनी प्रतिस्पर्धा के बीच नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने उम्मीद जताई है कि आने वाले समय में भारत का कृषि-रसायन उद्योग मौजूदा दर की तुलना में अधिक गति से विकसित हो सकता है। गौरतलब है कि पिछले 5-6 सालों में इस उद्योग की विकास दर 8-9 फीसदी पर पहुंच गई है। एग्रो कैम फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसीएफआई) द्वारा बुधवार को नई दिल्ली में आयोजित सालाना आम बैठक के दौरान एक पैनल चर्चा में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा, ‘‘2016 के बाद से कृषि-रसायन सेक्टर की विकास दर उछाल के बाद 8-9 फीसदी पर पहुंच गई है और उद्योग जगत 10 फीसदी विकास दर तक पहुंच सकता है। इसे चमत्कारिक विकास दर कहा जा सकता है क्योंकि इसमें से ज़्यादातर बढ़ोतरी कोविड-19 महामारी के वर्षों के दौरान हुई है, जब उत्पादन गतिविधियां गंभीर रूप से बाधित थीं। चूंकि चीन से प्रतिस्पर्धा के और कम होने की संभावना है, ऐसे में कृषि-रसायन उद्योग काफी अधिक दर से विकसित हो सकता है।’’

 

कृषि- रसायन क्षेत्र के विकास में कृषि क्षेत्र की भूमिका पर रोशनी डालते हुए रमेश चंद ने कहा पिछले 10 सालों और पिछले 5-6 सालों में कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ है। उन्होंने कहा कि ‘‘हमने वाजपेयी जी के कार्यकल में कृषि क्षेत्र में 4 फीसदी विकास का लक्ष्य तय किया था, किंतु हमने वह विकास 10 साल में हासिल किया। भारत के सात प्रमुख राज्यों में 7 फीसदी से भी अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है तथा उत्पादन, सेक्टर की आय एवं किसानों की आय में इस तरह की बढ़ोतरी स्वतन्त्र भारत के इतिहास में, 7 या 10 सालों की किसी भी अवधि में भी कभी नहीं हुई है।’’

 

आयात दो प्रकार होते हैं। एक, जो निर्यात को समर्थन देने के लिए बेहद ज़रूरी है और दूसरा- जैसे हम बहुत अधिक मात्रा में खाद्य तेल का आयात करते हैं, जिसे कम करने के लिए हम अपनी अप्रयुक्त भूमि का उपयोग कर सकते हैं। जब प्रधानमंत्री मोदी जी आत्मनिर्भरता के बारे में बात करते हैं, उनका यह तात्पर्य नहीं होता कि आपको सभी प्रकार के आयात रोक देने चाहिए। कृषि रसायन क्षेत्र में कुछ आयात ज़रूरी हैं। पब्लिक डोमेन में उपलब्ध आंकड़ों की बात करें तो भारत रुपए 14000 करोड़ कीमत के कच्चे माल सहित कृषि रसायनों का आयात करता है और वहीं रुपए 43000 करोड़ का निर्यात किया जाता है। ‘‘इस तरह का आयात हमारे लिए हानिकारक नहीं है, किंतु चीन की स्थित इसे और कम करने के अच्छे अवसर प्रदान करती है।’’

 

 

एग्रो कैम फेडरेशन ऑफ इंडिय से आग्रह किया कि कृषि रसायन क्षेत्र में कारोबार को सुगम बनाएं और उद्योग जगत से सवाल उठाया कि क्यों पश्चिमी देश कृषि रसायन से हटकर बायो-पेस्टीसाईड की ओर रूख कर रहे हैं।

पैनल चर्चा में हिस्सा लेने वाले श्री परीक्षित मुन्ध्रा, चेयरमैन, एसीएफआई ने कहा, ‘‘हमारा एसोसिएशन उच्च गुणवत्ता के कृषि रसायनों को किफ़ायती दाम पर उपलब्ध कराकर किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए हम प्रोफेसर रमेश चंद और अन्य हितधारकों के कीमती सुझावों पर अमल करेंगे। अभिजीत बोस, महासचिव, एसीएफआई, ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए उद्योग जगत से कहा कि उन्हें भारत के कृषि उत्पादन को बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

इससे पहले एसीएफआई के महानिदेशक डॉ कल्याण गोस्वामी ने जानकारी दी कि एसीएफआई कृषि रसायन क्षेत्र के लिए अनुकूल प्रणाली के निर्माण हेतु कार्यरत है, जो कृषि रसायनों के निर्यात को बढ़ावा देगी तथा भारत को विदेशी निवेश के लिए आकर्षक गंतव्य के रूप में स्थापित करेगी। पीआई इंडस्ट्रीज़ के मैनेजिंग डायरेक्टर, मयंक सिंघल, एफएमसी इंडिया के अध्यक्ष रवि अन्नावरूप, बेयर क्रॉप साइंस हैड ऑफ आल्टरनेट बिज़नेस मॉडल्स अजीत सिंह तथा सिन्जेंटा के चीफ़ सस्टेनेबिलिटी ऑफिसर के सी रवि भी पैनल चर्चा में मौजूद थे।

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