दबे पांव शिकस्त ने दी दस्तक

दरअसल, बीजेपी के गढ़ में सेंध मारकर कांगे्रस ने अपनी जमीन तैयार की है। एक नई पटकथा लिखी। राहुल ने अपनी ही पार्टी में आत्मविश्वास जगाने का काम किया। लोगों को यह विश्वास जगाया अपना काम बेहतर तरीके से करते रहने से एक न एक दिन उसकी पहचान जरूर होती है। हमें अगर हीरे की तरह चमकना है, तो खुद को लगातार तराशना होगा। अपनी खोट दूर करनी होगी और खुद को परिष्कार करना होगा। जी हां, कोई भी व्यक्ति अपने गुणों से ही ऊपर उठता है, ऊंचे स्थान पर बैठने से नहीं। कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा। यह पतित जीवन धन की शिलाओं से न ही सत्ता के वृक्षों को रुका जा सकेगा, बल्कि यह कर्म करते रहने से रुक सकता है।

निर्मलेंदु
कार्यकारी संपादक, राष्ट्रीय उजाला

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली है। गुजरात में बीजेपी ने जहां छठीबार जीत हासिल की, वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने कांग्रेस को भारी अंतर से हरा हिमाचल प्रदेश पर कब्जा कर लिया। इन दोनों जीत से बीजेपी के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी बेहद ही उत्साहित और खुश नजर आए, लेकिन इस बार पार्टी के सीटों का आंकड़ा दहाई के अंकों तक ही सीमित होकर रह गया। जिस राज्य में मुख्यत: 2 पार्टियों में ही मुकबला हो, वहां वोटशेयर में 2-3 फीसदी के अंतर से भी एकतरफा परिणाम आ जाते हैं। लेकिन गुजरात में कांग्रेस पर करीब 8 प्रतिशत वोटों की बढ़त के बावजूद बीजेपी 99 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी। यह अति आश्चर्य चुनाव है।
कहीं पर बीजेपी की 2 सीटों पर एक लाख से ज्यादा अंतर से जीत हुई है, तो कहीं 35 सीटों पर बीजेपी के जीत का अंतर 40,000 से ज्यादा रहा। वहीं अगर कांगे्रस की बात करें, तो सिर्फ मांडवी से कांग्रेस को 40 हजार से ज्यादा अंतर से जीत मिली। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि यह बीजेपी की अस्थायी जीत है। एक तरह से उन्होंने इसे नैतिक हार बताया। उन्होंने यह भी कहा कि गुजरात ने अत्याचार, डर और आम लोगों के साथ हुए अन्याय के खिलाफ मतदान किया है और 2019 के चुनाव के लिए बिल्ली के गले में घंटी बांध दी है। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि क्या मोदी के करिश्मे से भाजपा का बेड़ा पार हो पाएगा? अगर इस को इस तरह से कहें कि भाजपा ने सत्ता तो पाई है, लेकिन कांग्रेस को संजीवनी बूटी मिली, तो शायद गलत नहीं होगा। जनादेश के निहितार्थ यह कहना भी गलत नहीं होगा कि अब भाजपा की जिम्मेदारी और, और ज्यादा बढ़ गई है। ऐसे में एक सवाल और उठता है कि क्या सचमुच यह विकास की जीत है? क्योंकि इस सच से हम सब रूबरू हो चुके हैं कि कहीं, कहीं बीजेपी के गढ़ में कांगे्रस ने सेंध मारी है, जो कि आशा के विपरीत है।

दरअसल, बीजेपी के गढ़ में सेंध मारकर कांगे्रस ने अपनी जमीन तैयार की है। एक नई पटकथा लिखी। राहुल ने अपनी ही पार्टी में आत्मविश्वास जगाने का काम किया। लोगों को यह विश्वास जगाया अपना काम बेहतर तरीके से करते रहने से एक न एक दिन उसकी पहचान जरूर होती है। हमें अगर हीरे की तरह चमकना है, तो खुद को लगातार तराशना होगा। अपनी खोट दूर करनी होगी और खुद को परिष्कार करना होगा। जी हां, कोई भी व्यक्ति अपने गुणों से ही ऊपर उठता है, ऊंचे स्थान पर बैठने से नहीं। कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा। यह पतित जीवन धन की शिलाओं से न ही सत्ता के वृक्षों को रुका जा सकेगा, बल्कि यह कर्म करते रहने से रुक सकता है। और शायद इसीलिए राहुल ने कहा था कि पीएम के गुस्से को हम प्यार से हराएंगे। यह एक विश्वास है जो कि राहुल अपनी पार्टी में लोगों में इन्जेक्ट करना चाहते हैं। शायद राहुल का महामंत्र यही है कि धैर्य, मेहनत और काबिलियत एक न एक दिन रंग जरूर लाएगी।
दरअसल, इसी संदर्भ में यदि हम यह कहें कि गुजरात की जनता बीजेपी से खुश नहीं है, तो शायद गलत नहीं होगा, जबकि ज्यादातर पत्रकार, वरिष्ठ पत्रकार, चाहे वे अखबार में हों, या चैनल में, वे यही राग अलाप रहे हैं कि मोदी का मैजिक चल गया, लेकिन यदि सच्चाई की धड़ातल पर हम जाएं, तो हमें यह स्वीकारना ही पड़ेगा कि 22 साल के किले के प्राचीर की नींव कांगे्रस ने थोड़ी-सी हिला तो दी है। पंद्रह से ज्यादा सीटें निकाल लाना बहुत बड़ी बात है, जबकि बीजेपी ने 150 से ज्यादा सीटों का दावा किया था। दावे फेल हो गये और एक छोटी सी शिकस्त ने दस्तक दी। भले ही खुलेआम हम यह न मानें और लोगों के सामने इसे लेकर तर्क न करें, लेकिन हमें यह मानना पड़ेगा कि दबे पांव कांगे्रस ने रंग में भंग डाल ही दी। संक्षेप में कहें, तो यही सच है कि कांगे्रस ने भाजपा से कुछ सीटें जबरदस्ती हासिल कर ली। भाजपा के किले में घुसकर कुछ सैनिकों को मार गिराया और दरअसल, यह पीएम मोदी के लिए चिंता का विषय है। हिमाचल प्रदेश में भी बीजेपी की ही जीत हुई। अमित शाह अपने भाषण में कह रहे हैं कि यह विकास और मोदी जी की नीतियों की जीत है, लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या यह सचमुच विकास की जीत है, क्योंकि बीजेपी ने 15 से ज्यादा सीटें लूज की है। बीजेपी की जीत पर शिवसेना ने प्रहार करते हुए कहा कि गुजरात मॉडल लड़खड़ा गई और राहुल ने लगा ली लंबी छलांग। हां, शायद वह ठीक कह रही है, क्योंकि जीत तो भाजपा की हुई है, लेकिन चर्चा राहुल के लंबी छलांग की हो रही है। चाय की दुकानों और अड्डेबाजों के बीच यही चर्चा का विषय है कि पप्पू अब पप्पू नहीं रहा। पप्पू पास हो गया है। राहुल गांधी पप्पू कोमा से बाहर आ चुके हैं, ऐसे में यदि यह कहें कि मोदी जी के लिए जिÞंदगी उतनी आसान नहीं रही, तो शायद गलत नहीं होगा। लोग एक वाक्य में हंसते हुए कह रहे हैं, हां, हम सबों का पप्पू परीक्षा में पास तो हो ही गया।
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि एक समय देश की राजनीति में जो स्थान कांग्रेस का था, वह अब भाजपा ने ले लिया है। गुजरात के नतीजों ने बता दिया कि बीजेपी की हवा धीमी पड़ गई है, मोदी के कुछ सिपाही ध्वस्त हो गये हैं, मचलती लहरें ठंडी पड़ गई हैं। 2019 में क्या होगा, यह उसकी शुरुआत है। भाजपा के लिए यह खतरे की घंटी के संकेत हैं। राहुल गांधी ने हार्दिक जैसे सभी युवा नेताओं को साथ लेकर गुजरात का युद्ध लड़ा और जीतते-जीतते थोड़ा पीछे रहे गए। लोगों ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि शक्तिमान भाजपा को इन बच्चों ने करीब 100 तक रोक दिया। यह बड़ी बात है। यह भी एक तरह से जीत ही है। कांग्रेस मुक्त हिंदुस्तान का सपना पूरा नहीं हुआ है। बीजेपी के लिए यह चेतावनी है। कहीं और चर्चा चल रही थी। एक व्यक्ति ने कहा, गुजरात में कांग्रेस जबरदस्त संघर्ष के बाद हार गई है। मुकाबला किसी मामूली ताकत से नहीं था, लेकिन कांगे्रस का संघर्ष काबिले तारीफ रहा। भक्तों की निगाह में भले ही भाजपा जीत गई हो, लेकिन जीत असल में कांग्रेस की हुई है।
दरअसल, विकल्पहीनता का लाभ, आजादी के बाद से निरन्तर सीधे-साधे हिन्दुओं को मिला है। आप मानें, या ना मानें, सच तो यही है कि गुजरात में अगर बीजेपी की सरकार बनी है, तो वह सिर्फ मोदी के कारण। आखिरी दौर के कैंपेन में मोदी ने मेहनत न की होती, तो पार्टी की कम से कम 20 सीटें और कम हो जातीं। यह एक तरह से दुस्साहश है और यह दुस्साहस वही कर सकते हैं। जी हां, सच तो यही है कि सीमा से बाहर जाकर धर्म और जाति के आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए जो सत्तालोलुप्ता चाहिए, वह देश के अन्य किसी नेता में है ही नहीं। दरअसल, मोदी का यह मारण-अस्त्र ही अंतत: गुजरात में कांगे्रस के लिए मरणअस्त्र बन गया। वैसे, अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग भी काम आ गई।
लेकिन हां, यह भी एक सच है कि जनादेश के आगे सबको झुकना ही पड़ता है। वैसे, भाजपा को इस पर आत्मचिंतन करना चाहिए कि उसकी सीटें क्यों कम हुईं? फिलहाल, भाजपा को मोदी मैजिक का सहारा है, शायद इसीलिए प्रतिकूल स्थितियों में भी वह विजय प्राप्त कर रही है। मगर आदर्श स्थिति वही होगी, जब ऐसे हालात पैदा ही ना हों। भाजपा को ऐसा शासन देने की योजना बनानी चाहिए, जिससे लोग उत्साह के साथ उसे अपनी पहली पसंद बनाते रहें। खुश होकर वोट दें। सीना तान कर वोट दें कि हां मैंने भाजपा को वोट दिया है। भाजपा का संकल्प सही है, वह देश को आगे बढ़ा रही है। मतदाताओं ने फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को स्पष्ट जनादेश दिया। कांग्रेस के लिए ये गहरी मायूसी की खबर है, जबकि उसके नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने को गुजरात में पूरी तरह झोंक दिया था। इस बात के लिए तो उनकी तारीफ हुई कि उन्होंने जोशीला प्रचार अभियान चलाया और गुजरात में कभी मृतप्राय समझी जाने वाली कांग्रेस को लड़ाई में ला खड़ा किया। लेकिन आखिरकार उनकी पार्टी को लगभग तीन फीसदी वोट और कुछ सीटों की बढ़ोतरी के साथ ही संतोष करना पड़ा। हां, यह हम जरूर कह सकते हैं कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही। अब आपको एक और राज की बात बताते हैं। गुजरात के इन 4 सीटों पर आज तक नहीं जीती बीजेपी। जहां एक ओर बोरसद से कांग्रेस के उम्मीदवार राजेन्द्र सिंह परमार ने जीत दर्ज की, तो वहीं दूसरी ओर महुधा में नहीं खिल पाया कमल। एक और सच — आज तक व्यारा सीट से कोई चुनाव नहीं जीत पाई है बीजेपी। इस बार भी झगाड़िया सीट से छोटूभाई ने ही जीत हासिल की। सच तो यही है कि दिग्गजों का हाल भी कहीं-कहीं अच्छा नहीं रहा। अल्पेश ठाकोर, जो कि राजनीति में क ख ग सीख रहे हैं, उन्होंने पाटण जिले के राधनपुर सीट से जीत दर्ज की। मतलब यही हुआ कि वहां बीजेपी से लोग नाखुश हैं। लोगों की कसौटी पर खरी नहीं उतरी बीजेपी।
एक चर्चा लोगों में यह भी चल रही है कि गुजरात में तीन कांगे्रस नेताओं की मदद से बीजेपी को जीत मिली। एक, मणिशंकर अय्यर, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीच कहा था, दो, कपिल सिब्बल का विरोधी वकील के तौर पर अदालत में आना और सुनवाई टालने के लिए दलील देना, कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। तीन, कांग्रेस के एक नेता सलमान निजामी ने ट्विटर पर देश के सैनिकों का बलात्कारी कह कर अपमान किया है। उन्होंने लिखा है कि हर घर से अफजल निकलेगा। हालांकि कांगे्रस ने अपने बचाव के लिए यह कहा कि कांगे्रस उन्हें जानती तक नहीं। दरअसल, यह कहावत बहुत मशहूर है कि कमान से निकला तीर और मुंह से निकली बात लौट कर वापस नहीं आते। उसका असर कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में होता ही है।
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर टिप्पणी करते हुए सीताराम येचूरी ने कहा गंदी राजनीति के कारण बीजेपी ने जीता गुजरात। इस कथन का मतलब यही हुआ कि विपक्ष इस गुस्से और विरोध का पूरा फायदा नहीं उठा पाया। दरअसल, येचुरी ने यह भी कहा था कि चुनावी नतीजे बीजेपी की नीतियों के खिलाफ लोगों के गुस्से को दर्शाते हैं। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि गुजरात के लोगों ने विकास के गुजरात मॉडल के लिए वोट नहीं किया था, बल्कि इसके खिलाफ किया था, क्योंकि जीएसटी और नोटबंदी के कारण उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था। अब सवाल यह उठता है कि क्या बीजेपी ने चुनाव के दौरान सचमुच सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कार्ड खेला था, ताकि जीएसटी और नोटबंदी के खिलाफ लोगों के गुस्से को पार्टी के खिलाफ वोटों में तब्दील होने से रोका जा सके। और अगर यह सच है, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि आनेवाले 2019 के लोकसभ चुनाव में सांप्रदायिक धु्रवीकरण की यह गंदी राजनीति काम नहीं आएगी, क्योंकि जनता अब यह समझ चुकी है कि सत्ता में रहनेवाली सरकार को कब और कैसे हटानी है।

 

 

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