अयोध्या पहुंचने के एक दिन पूर्व आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की थी। योगी आदित्यनाथ ने श्री श्री रविशंकर से अपनी 40 मिनिट की बातचीत के बाद जो कुछ कहा उससे यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वे श्री श्री रविशंकर द्वारा की जा रही इस पहल के जरिए विवाद के कोई संतोषजनक समाधान के प्रति बहुत अधिक आशान्वित हैं।
कृष्णमोहन झा
अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए इस बार आर्ट आफ लिविंग के संंस्थापक श्री श्री रविशंकर ने पहल की है। उन्होंने बातचीत के जरिए इस विवाद का समाधान खोजने के लिए अचानक यह पहल करके सबको अचंभित भी किया है क्योंकि अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उन्हें यह पहल करने के लिए किसने प्रेरित किया सरकार ने अथवा इस विवाद से जुड़े पक्षकारों ने। हो सकता है कि यह उनका निजी फैसला हो परंतु पहल करने के लिए यही समय क्यों चुना यह जरूर उत्सुकता का विषय है। दशकों पुराने इस विवाद का समाधान मात्र कुछ दिनों की बातचीत से ही सुलझने की उम्मीद तो श्री श्री रविशंकर को भी नहीं रही होगी परंतु विभिन्न पक्षों के प्रतिनिधियों के साथ साहाद्र्रपूर्ण माहौल में बातचीत के बाद जब वे मीडिया से मुखातिब हुए तो उनका यही कहना था कि कई बार समाधान असंभव नजर आता है परंतु सभी संबंधित पक्ष बातचीत के जरिए इसे संभव बना सकते हैं। अयोध्या पहुंचने के एक दिन पूर्व आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की थी। योगी आदित्यनाथ ने श्री श्री रविशंकर से अपनी 40 मिनिट की बातचीत के बाद जो कुछ कहा उससे यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वे श्री श्री रविशंकर द्वारा की जा रही इस पहल के जरिए विवाद के कोई संतोषजनक समाधान के प्रति बहुत अधिक आशान्वित हैं। उनका यह कहना कि बातचीत के जरिए इस मसले का समाधान संभव होता तो बहुत पहले ही हो गया होता फिर भी कोई बातचीत की पहल करता है तो इसमें बुराई नहीं है यहीं संदेश देता है कि मुख्यमंत्री योगी भी यही चाहते है कि बातचीत के माध्यम से अगर इस दीर्घकालीन विवाद का कोई समाधान निकलने की उम्मीद नजर आ रही है तो बातचीत के ऐसे कई दौर भी चलाए जा सकते हैं और बातचीत से एक लाभ यह तो होता ही है कि दोनों पक्षों के बीच संवाद की प्रक्रिया पर विराम नहीं लगने पाता और अगर ऐसी बातचीत सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न तो वह संभावनाओं के नए द्वार भी खोल सकती है। श्री श्री रविशंकर ने स्वयं यह कहा है कि वे अयोध्या विवाद पर कोई फार्मूला लेकर नहीं है बल्कि उनके इस प्रवास का मकसद सबके साथ मिल बैठकर बात करना है। श्री श्री रविशंकर सभी पक्षों के प्रतिनिधियों से बातचीत का कार्यक्रम बनाकर अयोध्या पहुंचे थे परंतु विश्व हिन्दू परिषद और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बातचीत का उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। हनुमान गढ़ी के शीर्षस्थ महंत ज्ञानदास भी श्री श्री रविशंकर से बातचीत करने के लिए तैयार नहीं हुए। पहले नृत्यगोपालदास ने श्री श्री रविशंकर से एकांत चर्चा के बाद उनके प्रयास को सराहनीय बताया। उनका कहना था कि आपसी सहमति से मंदिर निर्माण हो इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता है। बाबरी मस्जिद के मुद्ई हाजी महबूब ने भी श्री श्री रविशंकर की पहल का स्वागत करते हुए कहा कि मसले का हल प्यार मोहब्बत से हो और 120 गुणा 90 फीट के विवादित स्थल को छोडक़र कही भी मंदिर निर्माण किए जाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। श्री श्री रविशंकर ने अचानक हुए अपने संक्षिप्त अयोध्या प्रवास में अनेक संगठनों के प्रतिनिधियों ने बातचीत के बाद यह तो स्वीकार किया कि यह एक जटिल मसला है और बातचीत के जरिए इसका शांतिपूर्ण समाधान निकल पाने की उम्मीदें भले धुमिल नजर आने लगी हो परंतु बातचीत का सिलसिला जारी रखकर ही असंभव को संभव बनया जा सकता है। श्री श्री रविशंकर ने यह तो स्पष्ट नहीं किया कि उनका अगला अयोध्या प्रवास कब होगा परंतु उनकी बातों से यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि वे यह सिलसिला दीर्घकाल तक जारी रखने की तैयारी कर चुके है।
श्री श्री रविशंकर के इस कथन पर निश्चित रूप से आश्चर्य व्यक्त किया जा सकता है कि उनके इस अयोध्या प्रवास के काफी समय पूर्व ही अयोध्या विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए उनके प्रयास शुरू हो चुके थे और उन प्रयासों से आशान्वित होकर ही उन्होंने अयोध्या प्रवास का कार्यक्रम बनाया। वैसे देश के तीन पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर, नरसिंहराव और अटल बिहारी बाजपेयी ने भी बातचीत के जरिए इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकालने की पहल की थी। इसके अलावा कोर्ट के बाहर बातचीत के जरिए इस विवाद का हल निकालने के लिए एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट स्वयं भी सभी पक्षकारों को अयोध्या विवाद का शांतिपूर्ण हल खोजने की सलाह दे चुका है। परंतु अब तक इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकालने की सारी कोशिशों पर सवालिया निशान भी लग चुके हैं।
आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक अयोध्या विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए सभी पक्षों के प्रतिनिधियों से बातचीत का सिलसिला जारी रखने के पक्ष में हैं भले ही सभी पक्षों की ओर से उन्हें अपनी इस पहल पर अनुकूल प्रतिक्रिया न मिली हो। पदमविभूषित राम भद्राचार्य ने तो श्री श्री रविशंकर की इस पहल पर सबसे पहला सवाल यही उठाया है कि उन्हें सभी पक्षकारों से बातचीत का अधिकार किसने दिया है और उनके द्वारा प्रस्तुत किसी समाधान को सर्वमान्य कैसे माना जा सकता है लेकिन श्री श्री रविशंकर अपने प्रयासों को विराम देने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने अयोध्या में एक दिन रुकने के बाद लखनऊ प्रवास पर जाने का कार्यक्रम बना लिया और दारूल उलूम फरंगी महल के रेक्टर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली तथा अन्य मुस्लिम नेताओं से विचारों का आदान प्रदान किया। बाद में मीडिया से बातचीत में आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक ने कहा है कि हम सभी कोर्ट का सम्मान करते है परंतु बातचीत के जरिए दिल से कोई समाधान निकालते है तो वह युगों युगों तक मान्य होगा।
श्री श्री रविशंकर की विभिन्न पक्षों के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद जो विचार व्यक्त किए हैं उनसे केवल यही प्रतिध्वनित होता है कि वे अपनी पहल को किसी एक नतीजे के बिन्दु तक ले जाने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं रख छोड़ेंगे परंतु पक्षकारों के बीच पुन: संवाद की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण निर्मित करने में तो उनकी इस भूमिका को निश्चित रूप से सराहनीय माना जाना चाहिए। सभी पक्षकारों के बीच सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में संवाद का सिलसिला निरंतर चलता रहे यह भी श्री श्री रविशंकर की एक उल्लेखनीय सफलता होगी।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)