माधव, शाह और सरमा की तिकड़ी से भाजपा सबसे मजबूत

नई दिल्ली। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद साफ हो गया कि इस इलाके में भारतीय जनता पार्टी बेहद मजबूत होती जा रही है. त्रिपुरा में माणिक सरकार को वाम किले का सबसे मजबूत पहरेदार माना जा रहा था. लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई वाली भाजपा ने इस किले को भी ढहा दिया. 20 सालों से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे माणिक सरकार को विदा होना पड़ा.
नगालैंड में भी भाजपा अपने नए सहयोगी के साथ मिलकर सरकार बनाती दिख रही है. मेघालय के भी जो नतीजे आए हैं, उसमें जोड़-तोड़ करके अगर भाजपा सरकार बना लेती है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर जरूर उभरी है, लेकिन वह भी बहुमत से दूर है. करीब-करीब ऐसी ही स्थिति साल भर पहले मणिपुर में बनी थी और वहां भाजपा ने जोड़-तोड़ करके अपनी सरकार बना ली थी. बताया जा रहा है कि मणिपुर में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले भाजपा नेता और असम सरकार के मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा को पार्टी ने मेघालय में सरकार बनाने के लिए तैनात कर दिया है. मेघालय में भी अगर भाजपा का दांव ठीक चला तो वह गठबंधन सरकार बना सकती है.
अगर ऐसा होता है तो पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में सिर्फ मिजोरम ही ऐसा राज्य बचेगा जहां भाजपा सरकार में हिस्सेदार नहीं रहेगी. वैसे इस क्षेत्र की सियासत जिस तरह से चल रही है और जो सूचनाएं आ रही हैं उनके मुताबिक इस साल के अंत में प्रस्तावित मिजोरम विधानसभा चुनावों के बाद इस आठवें राज्य में भी भाजपा सत्ता में आ सकती है.
ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि पिछले कुछ सालों में पूर्वोत्तर में आखिर ऐसा क्या हुआ कि इस क्षेत्र में भाजपा इतनी मजबूत हो गई है. भाजपा में कभी बेहद अहम पद पर रहे एक वरिष्ठ नेता की बातों से इस क्षेत्र में भाजपा की पहले की स्थिति का अंदाज होता है. वे कहते हैं, ‘एक दौर ऐसा था कि इन राज्यों में भाजपा को चुनावों के लिए पर्याप्त संख्या में उम्मीदवार नहीं मिलते थे.’ उनके मुताबिक पार्टी में अगर कुछ सक्षम कार्यकर्ता होते भी थे तो वे भाजपा की एक पार्टी के तौर पर संभावनाओं के अभाव में दूसरी पार्टियों में चले जाते थे. लेकिन पिछले कुछ सालों में उसी पूर्वोत्तर में न सिर्फ दूसरे दलों के चुने हुए विधायक भाजपा में शामिल हुए हैं, बल्कि भाजपा एक-एक करके आज अधिकांश राज्यों की सत्ता में है.
पूर्वोत्तर में भाजपा की इस मजबूत स्थिति के लिए दो-तीन बातों को जिम्मेदार माना जा सकता है. पहली है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता. इस क्षेत्र में भाजपा के विस्तार के लिए पार्टी के कई नेता नरेंद्र मोदी की बढ़ती अपील को जिम्मेदार मानते हैं. यहां के लोगों के बीच नरेंद्र मोदी यह विश्वास जगाने में कामयाब रहे हैं कि दशकों से इस क्षेत्र की जो उपेक्षा हुई है, उसे दूर करने का काम तब ही हो सकता है जब पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा की सरकार बने. इन राज्यों के लोगों से बात करने पर पता चलता है कि भले ही देश के दूसरे राज्यों में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता 2014 के स्तर से नीचे गई हो, लेकिन इस क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है.
पूर्वोत्तर में भाजपा की इस तरक्की के लिए संगठन के स्तर पर पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोशिशों को भी जिम्मेदार माना जा रहा है. भाजपा ने इन राज्यों के लिए संघ से आए अपने तेजतर्रार महासचिव राम माधव को लगाया. खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इन राज्यों में खासी दिलचस्पी ली. अमित शाह और राम माधव की कोशिशों से हेमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और उनका आना पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में गेमचेंजर साबित हुआ. 2016 में भाजपा को असम में सरकार बनाने में कामयाबी मिली.
माधव, शाह और सरमा की तिकड़ी ने उत्तर पूर्व में भाजपा को मजबूत करने के मकसद से उत्तर पूर्व जनतांत्रिक गठबंधन बनाया. इसके जरिए भाजपा ने पूर्वोत्तर की छोटी-बड़ी पार्टियों को अपने साथ जोड़ा और आपसी समन्वय का काम हेमंत बिस्वा को सौंपा. इस वजह से पूर्वोत्तर के राज्यों में कई पार्टियां भाजपा के साथ जुड़ीं. उत्तर पूर्व में भाजपा के मजबूत उभार के लिए राजनीतिक विश्लेषक और यहां तक कि भाजपा के कुछ नेता भी हेमंत बिस्वा को भी श्रेय देते हैं. हेमंत बिस्वा सरमा की पहचान एक कुशल राजनीतिक प्रबंधक की है. उनकी राजनीतिक प्रबंधन शैली अमित शाह की शैली से मिलती-जुलती है. इसमें येन-केन-प्रकारेण सरकार बनाना प्रमुख है. पिछले साल मणिपुर में अगर भाजपा सरकार बना पाई तो उसके लिए जरूरी व्यवस्थाओं का श्रेय पार्टी हेमंत बिस्वा सरमा को ही देती है. यही वजह है कि मेघालय में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में भी भाजपा सरकार बनाने के लिए वहां पार्टी ने हेमंत बिस्वा को लगाया है. कुल मिलाकर उत्तर पूर्व में वे भाजपा की एक बड़ी पूंजी बनकर उभरे हैं.
त्रिपुरा में माणिक सरकार को बेहद मजबूत माना जाता रहा है. आठ-दस महीने पहले तक त्रिपुरा से जो रिपोर्ट मिल रही थी, उसके मुताबिक माणिक सरकार का हारना बेहद मुश्किल लग रहा था. लेकिन भाजपा को इस राज्य में दो-तिहाई बहुमत मिला. त्रिपुरा की गंभीर तैयारी का संकेत भाजपा ने बिप्लव कुमार देब को सात जनवरी, 2016 को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दिया था. तब तक विप्लव की एक पहचान तो थी, लेकिन पार्टी ने कोशिश करके इसे राज्यव्यापी बनाया.
लेकिन त्रिपुरा में भाजपा की जीत के असल शिल्पी पार्टी के त्रिपुरा प्रभारी सुनील देवधर हैं. उन्हें 2014 के आखिरी दिनों में प्रभारी बनाकर त्रिपुरा भेजा गया था. देवधर की पहल पर ही बिप्लव को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था. संघ प्रचारक रहे देवधर ने भाजपा और संघ के साथ-साथ उसके सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ताओं के बीच एक बेहतर समन्वय स्थापित करने का काम किया. इसके जरिए उन्होंने घर-घर जाकर प्रचार करने की रणनीति अपनाई. इससे एक तरफ पार्टी लोगों तक सीधे पहुंची तो दूसरी तरफ हाई वोल्टेज प्रचार का काम नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने किया. इन सबका परिणाम यह हुआ कि देश में सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री की पहचान रखने वाले माणिक सरकार को त्रिपुरा में शून्य से खड़ी हुई भाजपा ने उखाड़ फेंका.
अगर अगले एक-दो दिन में मेघालय भी भाजपा के पाले में आ जाता है तो फिर मिजोरम ही पूर्वोत्तर में भाजपा के लिए आखिरी मोर्चा बच जाएगा.

 

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