अनुसूचित जनजाति क्षेत्र में घट रहा भाजपा का जनाधार

भोपाल ब्यूरो

भोपाल। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भाजपा अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष फग्गन सिंह कुलस्ते के संसदीय क्षेत्र मण्डला में लगातार भाजपा का जनाधार कम होता जा रहा है यह कहे कि अब कुलस्ते का प्रभाव भी बरकरार नहीं है। हाल ही में राज्यसभा में भेजी गई मंडला जिला पंचायत अध्यक्ष रही संपत्तिया उइके के जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 14 नारायण गंज में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इस क्षेत्र में कांग्रेस समर्थित प्यारी बाई गोठरिया ने भाजपा समर्थित उम्मीदवार को 3200 वोटों से हरा दिया। भाजपा के लिए यह हार सबसे बड़ी शर्मनाक है क्योंकि भाजपा के जिलाध्यक्ष रतन ठाकुर, राज्यसभा सांसद संपत्तिया उइके, पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते और उनके विधायक भाई रामप्यारे कुलस्ते का कर्म क्षेत्र है। इतने प्रभावशाली लोगों की मौजूदगी के बावजूद भी हार ने भाजपा के सामने चिंता की लकीरें खींच गई है। ये पहला अवसर नहीं है अब इस क्षेत्र में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। इसके पहले भी निवासनगर पंचायत में कांग्रेस के चैन सिंह बरको ने भाजपा के प्रत्याशी को भारी मतों से हरा दिया है। इसी तरह मंडला नगरपालिका चुनाव में भाजपा के कथित कद्दावर नेता भाजपा को जीत नहीं दिला सके थे। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भी मंडला विधानसभा सीट पर भाजपा की प्रत्याशी संपत्तिया उइके को कांग्रेस के संजीव उइके ने भारी मतों से हराया था।
भाजपा का गढ़ माने जाने वाले इस संसदीय क्षेत्र में भाजपा की पकड़ कमजोर पड़ चुकी है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसारी सिंह के हाथों हार का स्वाद चखने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते 2014 में मोदी लहर में बड़ी मेहनत से जीते थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही यह कयास लगाये जा रहे थे कि कुलस्ते को मोदी अपने मंत्रीमंडल में शामिल कर लेंगे। इसकी खास वजह यह थी कि मोदी ने लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान मंडला से प्रारंभ किया था। कुलस्ते अटलजी के शासनकाल में केन्द्रीय राजयमंत्री रह चुके थे। कुलस्ते के भारी प्रयासों के बाद मोदी ने अपने पहले मंत्रीमंडल विस्तार में 5 जुलाई 2016 को अपने मंत्रीमंडल में राज्यमंत्री के रूप में शामिल कर स्वास्थ्य विभाग का दायित्व सौंपा था। उनके मंत्री बनने से क्षेत्र के लोगों में काफी उत्साह था लोगों का मानना था कि कुलस्ते मण्डला संसदीय क्षेत्र में कुछ विशेष कार्य करवाने में सफल हो पायेंगे, लेकिन अपने एक वर्ष के कार्यकाल में वे कोई भी उपलब्धिजनक कार्य नहीं करा सके। कुलस्ते की उदासीनता की वजह से मोदी ने 2017 में हुए मंत्रीमंडल फेरबदल में उन्हें मंत्री पद से हटा दिया।
मंडला क्षेत्र में लगातार हो रही हार से भाजपा के सामने कुलस्ते पर भरोसा करना इतना आसान नहीं होगा। मण्डला में भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष रतन सिंह ठाकुर को निष्क्रियता की वजह से बदले जाने की चर्चा लंबे समय से चल रही है। इनके साथ ही लोकसभा चुनावों में भाजपा कुलस्ते की जगह नये चेहरे की तलाश में है। कुलस्ते की जगह जिन लोगों पर इंटेलिजेंस की रिपोर्ट ली जा रही है उनमें मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे, अनुसूचित जनजाति वित्त आयोग के अध्यक्ष शिवराज शाह, डिण्डौरी जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति धुर्वे, पूर्व पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री देवसिंह सैयाम प्रमुख है। कुलस्ते अपनी बेटी और दामाद को भी पार्टी में सक्रिय करने का प्रयास कर रहे है। लेकिन अभी तक सफल नहीं हो सके है।
गुजरात चुनाव के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी अभी से प्रारंभ कर दी है। मोदी स्वयं अपने भाजपा सांसदों की रिपोर्ट मांग रहे है इसके अतिरिक्त कुछ एजेंसी हायर की गई है जो गुप्त तौर पर सांसदों की रिपोर्ट कार्ड तैयार करने में लगी है। कुछ स्थानों में जहां भाजपा सांसदों की रिपोर्ट सही नहीं है वहां उनके विकल्प की तलाश भी एजेंसी द्वारा की जा रही है। तैयार किये जा रहे रिपोर्ट कार्ड में सांसदों के लिये यह भी महत्वपूर्ण है कि लोकसभा में उनकी उपस्थिति कितनी रही। उनके द्वारा कुल कितने प्रश्न संसद में किये गए। प्रधानमंत्री द्वारा प्रारंभ की गई योजनाओं में सांसद की कितनी भागीदारी रही, आदर्श ग्राम योजना की वर्तमान स्थिति कैसी है। इन सारे रिपोर्टों में कुलस्ते की स्थिति शून्य रही है और यही गुप्त रिपोर्ट की वजह से विकल्प की तलाश प्रारंभ हो गई।
वैसे कुलस्ते को भी यह भनक लग गई है कि मंडला संसदीय क्षेत्र में नये चेहरे की तलाश प्रारंभ हो गई है। वे इसलिए इस समय अपनी सक्रियता मण्डला विधानसभा क्षेत्र में अधिक किये हुये है। कुलस्ते समर्थकों का मानना है कि कुलस्ते शिवराज का बेहतर विकल्प हो सकते है। इसलिए पार्टी उन्हें राष्ट्रीय राजनीतिक से प्रदेश राजनीति में सक्रिय करने का मन बना चुकी है। कयासों का दौर जारी है, लेकिन भाजपा के लिये यह खतरे की घंटी से कम नहीं है कि बड़ी मुश्किल से प्राप्त किया हुआ आदिवासी वोटर भाजपा के हाथों से फिर कांग्रेस के हाथ पर विश्वास जताने लगा है। भाजपा और कुलस्ते दोनों के लिए ही यह सीट बड़ी प्रतिष्ठा की है यदि इस बार भाजपा ने अपना चेहरा नहीं बदला तो लोकसभा चुनाव में जीतना इतना सरल नहीं होगा।

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