शाह के निर्देशों पर अमल क्या चुनाव बाद…?

राघवेंद्र सिंह

भोपाल। बारात दरवाजे पर खड़ी है। घरातियों में लड़की के पिता,भाई,मामा,चाचा,ताऊ और तमाम रिश्तेदारों सहित भाई बहनों के मित्र तक ईवेन्ट में जुटे हुए हैं पर कुछ काम होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। न तो पंडाल लगा है न पंगत की तैयारी है और न ही बारातियों की अगवानी के लिए सिर पर कलश सजाए मंगल गीत गातीं कन्याएं और महिलाएं भी नजर नहीं आ रहीं। बड़े घर की औरतों की तरह लोग लुगाईयें सजने धजने में लगी हैं। सभी समझ रहे हैं सब काम ईवेन्ट कंपनी को ठेके पर दे रखा है। सो सब वे ही कर लेंगे। मगर रिश्ते में मानदान का बड़ा महत्व होता है। जब तक समधी और समधिनें द्वारचार पर स्वागत न करें तो फिर काहे की बारात कैसी शादी और कैसे फेरे…
लोकतंत्र में जब साल चुनावी हो तो सियासी दलों के लिए बेटी के ब्याह से कम महत्वपूर्ण नहीं होता है। इसमें सत्ता पर काबिज दल और उसके नेता बारातियों से लेकर अतिथियों तक का स्वागत सत्कार नंबे डिग्री झुककर करते हैं और जरूरत पड़ने पर दूल्हा यानि मतदाता के खुर्राट जीजा और नखरैल फूफाओं का तो चरणों में सिर के साथ पगड़ी रखकर भी स्वागत करते हैं। मगर सत्ता में शामिल नेतागण ईवेन्ट मैनेजरों और उनकी टीम पर इतने निर्भर हो गए हैं कि भाजपा जैसी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह छह महीने पहले जो निर्देशों की फेहरिस्त पढ़ गए थे उसका अभी तक अता पता नहीं है। इसकी कलई तब खुली जब राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री सौदान सिंह तीन दिन के दौरे पर मध्यप्रदेश आए। उन्होंने जो सवाल किए उसपर प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान संगठन महामंत्री सुहास भगत औऱ उनकी टीम सनाके में थी। कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने पर सौदान सिंह ने कहा क्या अध्यक्ष के निर्देशों पर अमल चुनाव बाद होगा। उनके प्रति प्रश्न से संगठन के दिग्गज बगले झांकते नजर आए। यहीं से शुरू होती है प्रदेश भाजपा और उसके नेताओं के ढीठपन की कहानी। इससे पार्टी हाईकमान को सहज ही अंदाजा लग जाएगा कि दिसंबर 18 में होने वाले चुनाव में जिन मतदाताओं की बारात पार्टी के दरवाजे लगने वाली है उनके लिए रेड कार्पेट तो दूर पानी का पूछने वाला कोई नजर नहीं आ रहा है। बारातियों के नाराज होने पर क्या दुर्गति होगी यह हाल ही में संपन्न हुए कोलारस और मुंगावली विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की हार से साबित हो गया है। थोड़ा पीछे जाएं तो अटेर से लेकर चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा को बारातियों ने खारिज किया था। ऐसे में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते अमित शाह ने चुनाव जीतने के जो नुस्खे सुझाए थे उन पर सत्ता में आने से पहले भाजपा 2003 तक अमल करती रही है। उन्ही का नतीजा है कि एंटी इंकमबेंसी के बाद भी 2013 का चुनाव भी उसने जीता और भारी बहुमत से सरकार बनाई। असल में पार्टी की हालत खराब है ये खबरें लंबे समय से आलाकमान तक पहुंच रही हैं। भाजपा शासित तीन हिन्दी भाषी राज्य- मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता संगठऩ सबके हाल बेहाल हैं। अमित शाह ने इसी फीडबैक के आधार पर छह महीने पहले कार्यकर्ता और जनता का दिल जीतने के बहुत मामूली मगर असरदार नुस्खे बताए थे। जिनमें कार्यकर्ता सम्मेलन,जिला और मंडल स्तर पर समस्या निदान शिविर और भाजपा के सदस्यों का सम्मेलन प्रमुख थे। शाह ने यह सब इसलिए कहा था कि गुजरात में नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते इस तरह का जमीनी अभ्यास किया था। यही वजह थी कि गुजरात में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को कोई हरा नहीं पाया। सौदान सिंह ने प्रदेश नेताओं से चर्चा के दौरान कहा था कि कार्यकर्ता सम्मेलन और समस्या निदान शिविर से जनता की समस्याएं सुलझेंगी और कार्यकर्ताओं को यह आभास होगा कि अपनी सरकार है जिसमें उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों को शिविर में लाकर सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया। इसके पीछे का गणित यह है कि एक तो कार्यकर्ता में सरकार को लेकर अपनापन आएगा उसकी नाराजगी दूर होगी और वह जिन लोगों से पार्टी के लिए वोट मांगता है उनकी समस्याएं सुलझाकर वह यह साबित करेगा कि हमारी सरकार है तो वह हमारी सुनती भी है। असल में पिछले पांच सालों में भाजपा को मतदान केन्द्रों पर मजबूत करने के साथ जिताने वाला कार्यकर्ता नाराजगी से आगे बढ़कर बागी होने की स्थिति में आ गया है। उसके बगावती तेवरों को कोई मुख्यमंत्री और पार्टी नेतागण बदल पाने में पिछले चार उपचुनावों में तो असफल ही साबित हुए हैं। इस नजाकत को समझते हुए पार्टी हाईकमान चिंतित है मगर उसकी चिंता में प्रदेश इकाई शामिल और सहमत होती हुई नजर नहीं आती। यही वजह है कि सौदान सिंह की तीन दिन यात्रा वैसे तो रूटीन दौरे में शामिल की जा रही है लेकिन चुनावू साल में इसका जबरदस्त महत्व है। उनके फीडबैक के बाद पार्टी हाईकमान यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा कि अमित शाह के निर्देशों की एक राज्य में धज्जियां उड़ा दी जाएं। पार्टी के शुभचिंतक अपेक्षा कर रहे हैं कि अब कोई बड़ा बदलाव होगा। लेकिन संगठन में शामिल लोग इसे बुरी आशंका मान रहे हैं। अभी तक शाह एंड कंपनी भी मध्यप्रदेश समेत राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार और संगठन के स्तर पर कोई धमाकेदार निर्णय नहीं कर पाई है। इसे शाह के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है। एक बात साफ है कि अमित शाह कोई भी निर्णय मोदी से हरी झंडी मिलने के बाद ही लेते हैं या उनकी सहमति के बिना पत्ता भी नहीं हिलाते हैं। अच्छी बुरी खबरों के बीच मध्यप्रदेश को लेकर अनिर्णय के हालात हैं। पार्टी में अनिश्चितता और कार्यकर्ताओं में बेचैनी का माहौल और भी गहरा कर दिया है। सबको पता है प्रदेश प्रभारी के रूप में नए नेता की तलाश लंबे समय से हो रही है। पार्टी को न तो नए प्रभारी मिले हैं और पुराने प्रभारी सक्रिय हैं। राजस्थान के बाद सबसे खराब हालत छत्तीसगढ़ भाजपा की भी है। जो सुधार मध्यप्रदेश के लिए जरूरी है उनकी जरूरत छत्तीसगढ़ में उतनी गंभीरता से महसूस की जा रही है। सौदान सिंह छग के प्रभारी हैं इसलिए जो बातें मप्र के नेताओं के लिए की है उसे छग में भी लागू किया जाना महत्वपूर्ण है।नहीं तो परउपदेश की तरह उनकी बातों को माना जाएगा।
भाजपा की तरह कांग्रेस में भी नेतृत्व के मामले में अनिश्चितता का माहौल है। चुनाव के लिए कोई दूल्हा तय नहीं हो रहा है। नेतृत्व के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर कमलनाथ,अजय सिंह राहुल शेरवानी सिलवाए घूम रहे हैं। इधर राहुल गांधी की ताजपोशी होने के बाद भी मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कौन चुनावी चेहरा होगा, कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए चिंता में डाले हुए है। इन तीनों राज्यों में पार्टी के नेताओं ने जनता के हित में पिछले पन्द्रह वर्षों में खून बहाना तो दूर पसीना तक बहाने से परहेज किया है। ऐसी सुस्ती और सियासत के मामले में वितरागी हुए नेता अब फिर लड़की के पिता और भाई बनने की बजाए दूल्हा बने फिर रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस की हालत पर मशहूर शायर दुष्यंत कुमार का ये शेर खासा मौजू है-
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं

 

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