आंतरिक सुरक्षा की बात करते एडवोकेट भूपेंद्र प्रताप सिंह

पुस्तक समीक्षा


नई दिल्ली। आज भले ही हम कुछ क्षेत्रों में अग्रणी हो गए हों, लेकिन बार-बार हमारी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठते ही रहते हैं। कभी सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद और जम्मू कश्मीर में आंतरिक आतंकवाद आज बड़े आंतरिक सुरक्षा के मसले बन चुके हैं। बहुत कुछ इन्हीं समस्याओं को अपनी पुस्तक ‘इंडिया : इंटरनल सेक्युरिटी (चैलेंजेंज एंड सॉल्यूशन)’ में लेखक भूपेंद्र प्रताप सिंह शिद्दत से उठाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट भूपेंद्र प्रताप सिंह देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर सशंकित एवं चिंतित तो जरूर हैं, लेकिन अपनी पुस्तक में उन्होंने इन समस्याओं को हल करने की दिशा में सरकारी कोशिशों, उसकी विफलताओं पर तो फोकस किया ही, इन समस्याओं का हल ढूंढ़ने का प्रयास भी किया है। देश की आंतरिक सुरक्षा के खतरे के प्रति आगाह करते हुए भूपेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी पुस्तक में आज के युवाओं को भी निशाना बनाया है, जो राष्ट्र की मुख्यधारा एवं विकास में सहभागी बनने के बजाय हिंसा, अलगाववाद, आतंकवाद, नक्सलवाद, धार्मिक विद्वेष, मॉब लिंचिंग जैसे कृत्यों में अपनी भागीदारी बढ़ा रहे हैं। लेखक ने युवाओं के इस भटकाव के लिए रोजगार की कमी को तो मुख्य वजह बताया ही है, उन्हें सही मार्गदर्शन न मिलने को भी बड़ी वजह बताया है। पिछले कुछ वर्षो से जम्मू कश्मीर में चल रहे अघोषित गृह युद्ध जैसी आंतरिक सुरक्षा समस्या से निपटने के लिए लेखक केंद्र और राज्य सरकार को कूटनीतिक और सैनिक, दोनों स्तर की बड़ी कार्यवाही करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। लेखक चिंता जताते हैं कि समय रहते यदि इस समस्या पर लगाम नहीं लगाई गई, तो न केवल कश्मीर की वादियां यूं ही खून से लथपथ होती रहेंगी, बल्कि इसका बुरा असर देश के अन्य हिस्सों में भी देखने को मिल सकता है।

लेखक भूपेंद्र प्रताप सिंह की नजर में आतंकवाद के बाद भारत की आंतरिक सुरक्षा की एक बड़ी चुनौती नक्सलवाद भी है, क्योंकि भारत में प. बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ एक सशस्त्र विद्रोह आज आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, ओडिशा, झारखंड, बिहार सहित कई राज्यों तक फ़ैल चुका है। इसके तहत अशिक्षित और आदिवासी युवाओं को बहला-फुसला कर अपने अधिकारों के नाम पर सिस्टम का विरोधी बना दिया जाता है। मन में कुंठा और विद्रोह का भाव लिए राह से भटके युवा हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं। लेखक का मानना है कि सरकार और इन समुदाय के लोगों द्वारा बातचीत या उनकी मांगों को स्वीकार कर नक्सलवाद की समस्या को समाप्त किया जा सकता है।

लेखक की नजर में सांप्रदायिकता भी आंतरिक सुरक्षा की बड़ी चुनौती है। जबकि, हमारा इतिहास इस बात का गवाह है कि प्राचीन काल से आज तक हजारों जातियों और समुदायों, विचारधाराओं के लोग भारत आए और भारत की इस संस्कृति के साथ रच-बस गए, इन्हें अपना लिया। इस देश का प्रत्येक नागरिक चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई किसी समुदाय से आता हो, हमेशा आपस में मिल-जुलकर रहना चाहते हैं। लेकिन, कुछ राजनेता और कट्टरपंथी राजनीतिक दल जाति और धर्म के नाम पर हमें बांटकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं। ये चंद लोग भारत में सांप्रदायिकता का जहर घोलकर अपना उल्लू सीधा करने लगे हैं। इसी तरह अलगाव भी अपने आप में अशुभ शब्द है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए, हर समय भारत में एक नए राज्य की मांग होती रहती है और अलग राज्य बनाने की जिद और इसी जिद को लेकर उग्र प्रदर्शन, हड़तालें और तोड़फोड़ की जाती है। इसके अलावा भाषावाद एवं क्षेत्रवाद की समस्याएं भी देश की आंतरिक सुरक्षा को हमेशा आघात पहुंचाती रहती है।

दरअसल, लेखक भूपेंद्र प्रताप सिंह मानते हैं कि आज हालात ऐसे हैं कि बाहरी और आंतरिक सुरक्षा में भेद करना कठिन हो गया है। हमारी सुरक्षा को वास्तविक खतरा गुप्त कार्रवाइयों, विद्रोही और आतंकी गतिविधियों से है। लेखक का मानना है कि आतंकवाद और माओवादी विद्रोह से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में सुधार बेहद जरूरी हैं। देश के कुछ सर्वाधिक संवेदनशील भागों में आतंकवाद और माओवादी विद्रोह से निपटने के लिए स्थायी तंत्र स्थापित करने पर भी लेखक जोर देते हैं। लेखक का मानना है कि प्रभावित क्षेत्रों में आम लोगों के संरक्षण के लिये महत्वपूर्ण कदम उठाने के साथ ही शांति योजनाएं चलाई जानी चाहिए। सुरक्षा बलों को संचार के आधुनिकतम साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। लेखक इस बार की जरूरत पर भी जोर देते हैं कि आम आदमी को भी इस बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले मामलों में उन्हें शामिल करना चाहिए। अंत में लेखक कहते हैं कि इन नीतियों के कार्यान्वयन को अमलीजामा पहनाए बिना आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से निपटना बेहद मुश्किल होगा।

पुस्तक : इंडिया इंटरनल सेक्युरिटी ;चैलेंजेंज एंड सॉल्यूशन
लेखक : भूपेंद्र प्रताप सिंह

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