जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग

सरकार को यह पता है कि ग्रामीण भारत की जनता सरकार से ना सिर्फ नाराज है वल्कि शहरो की अपेक्षा परेशान भी है। इसलिए ग्रामीण भारत को अपने वोट बैंक में शामिल करने के लिए इससे बड़ा मौक़ा और कोई नहीं हो सकता। इसीलिए पहली बार बजट को हिंगलिश में पेश किया गया ताकि ग्रामीण भारत सरकार की मंशा को जान सके। आपको बता दे कि इस साल से लेकर अगले साल तक दर्जन भर से ज्यादा चुनाव होने हैं।

अखिलेश अखिल

मोदी का यह बजट एक पोलिटिकल मैसेज है अमीर ,सूट बूट वालों ,शहरों के बड़े उपभोक्ता समूहों और निवेशकों के लिए। सन्देश यह है कि आपने बहुत कुछ पाया ,मजा लिया अब ग्रामीण भारत के गरीबो के कल्याण के लिए टैक्स दीजिये। सरकार का यह भी सन्देश है कि यह सरकार गरीब और ग्रामीणों की है। सरकार को यह पता है कि ग्रामीण भारत की जनता सरकार से ना सिर्फ नाराज है वल्कि शहरो की अपेक्षा परेशान भी है। इसलिए ग्रामीण भारत को अपने वोट बैंक में शामिल करने के लिए इससे बड़ा मौक़ा और कोई नहीं हो सकता। इसीलिए पहली बार बजट को हिंगलिश में पेश किया गया ताकि ग्रामीण भारत सरकार की मंशा को जान सके। आपको बता दे कि इस साल से लेकर अगले साल तक दर्जन भर से ज्यादा चुनाव होने हैं। बीजेपी को हर चुनाव में जीत हासिल करनी है। उसी जीत के फेर में सरकार ऐसा करते दिख रही है। अगर सरकार की इन योजनाओं से बीजेपी की हालत मजबूत होती है तो सोने पर सुहागा और नहीं भी होती है तो कम से कम गरीबो के साथ खड़ा होने वाली पार्टी तो कहलाएगी ही। जिसका लाभ बाद में मिलेगा। मोदी सरकार के इस बजट से खुसरो की वह पंक्ति याद आ रही है -”खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग ,जीत गयी तो पीया मेरे ,हारी तो पी के संग। ”
माना जा रहा है कि मोदी सरकार ने उस तबके को खुश करने की कोशिश कि जिसे उनसे सबसे ज्यादा शिकायत थी। जीएसटी और नोटबंदी के बाद सरकार गांव और किसानों के विकास पर जोर देना चाहती थी। इस बजट को उस दिशा में आगे बढ़ने का रोडमैप माना जा रहा है। इस रोड मैप का लाभ पार्टी को मिला तो भी ठीक वरना गरीबो के साथ होने का दम्भ। दोनों हाथ में लड्डू। बता दे बीजेपी पर हमेशा शहरी पार्टी होने का इल्जाम लगता रहा है साथ ही व्यापारियों और माध्यम वर्ग की पार्टी से नवाजा जाता रहा है। बीजेपी की एक और सोच है इस बजट के जरिये। उसे मालुम है कि शहरी इलाकों में बीजेपी की पैठ मजबूत है ही। उसके वोटर कहीं जाएंगे नहीं। थोड़े समय के लिए उन्हें लाभ ना पहुंचकर ग्रामीण भारत को लाभ पहुंचाया जाय तो लोग पार्टी में यकीन करके सब सह लेंगे।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम चुनाव के दौरान जब जनसभाओं को संबोधित करेंगे तो उनके पास उपलब्धियां गिनाने के लिए कई चीजें होंगी। बजट की इन घोषणाओं को भी मोदी अच्छे से भुना सकेंगे। बजट की घोषणाओं से संकेत मिल रहे हैं कि यह सिर्फ न्यू इंडिया का नहीं चुनाव की तैयारियों को बजट है। बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव में मिली कमजोर जीत और राजस्थान, पश्चिम बंगाल उप चुनाव में आये परिणामों के बाद पार्टी अपनी रणनीति बदलने की योजना बना रही है। चुनाव में मिली हार के बाद राजनीतिक विशलेषक इसे गांव और किसानों की अनदेखी का परिणाम बना रहे हैं। कौशल विकास योजना पर जोर, कृषि योजना के तहत किसानों पर फोकस, स्वास्थ्य बीमा से गांव के गरीबों को साधने की कोशिश मोदी सरकार की नयी रणनीति की ओर संकेत कर रही है।
मोदी सरकार ने जनधन और उज्ज्वला योजना की शुरुआत की लेकिन गरीबों तक कोई बड़ा लाभ नहीं पहुंचा। भाजपा उम्मीद कर रही है कि इस बजट से लोकसभा चुनाव में गरीबों को साधने में मदद मिलेगी। 10 करोड़ परिवार व लगभग 50 करोड़ लोगों को 5 लाख रुपये के बीमा कवर देने का सरकार ने एलान किया है। ‘ऑपरेशन फ्लड’ की तर्ज पर ‘ऑपरेशन ग्रीन’ का एलान हुआ। टमाटर, आलू और प्याज जैसे सालभर प्रयोग में आने वाले खाद्य वस्तुओं को बर्बादी से बचाने के लिए 500 करोड़ का आवंटन हुआ है। 2022 तक सबके पास अपना घर होगा जेटली ने बजट भाषण में इसका जिक्र किया। इस योजना के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय आवास बैंक के साथ मिलकर किफायती आवास निधि बनाएगी। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मौजूदा और अगले वित्त वर्ष में ग्रामीण क्षेत्रों में एक करोड़ से अधिक घरों का निर्माण होगा। किसान क्रेडिट कार्ड अब मछुआरों और पशुपालक को भी मिलेगा। इस कार्ड की मदद से उन्हें कर्ज मिलने में आसानी होगी। उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ महिलाओं तक गैस कनेक्शन पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। सौभाग्य योजना के तहत बिजली कनेक्शनों की संख्या को चार करोड़ परिवारों तक बढ़ाने का लक्ष्य है। मुद्रा योजना के लिए तीन लाख करोड़ रुपए की घोषणा हुई है। यह सब ऐसे नहीं है। यह सब चुनाव का अजेंडा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.