ईरान, भारत और अफगानिस्तान के बीच चाबहार बंदरगाह आज से खुल गया. ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने इस रणनीतिक ट्रांजिट रूट के पहले फेज का उद्घाटन किया.
अभिषेक कुमार
भारत को ईरान और अफगानिस्तान से सीधे जोड़ने वाला चाबहार बंदरगाह (Chabahar port) आज से खुल गया. ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने इस रणनीतिक ट्रांजिट रूट के पहले फेज का उद्घाटन किया. इस ऐतिहासिक मौके पर भारत की ओर से कैबिनेट मंत्री पी राधाकृष्णन मौजूद रहे. पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के बरक्स चाबहार पोर्ट भारत के लिए बेहद अहम है. इस पोर्ट को सामरिक नजरिये से पाकिस्तान और चीन के लिए भारत का करारा जवाब माना जा रहा है. इस अतिमहत्वपूर्ण रूट के उद्घाटन से एक दिन पहले ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ के साथ राजधानी तेहरान में बैठक कर चाबहार प्रोजेक्ट से जुड़े कई मुद्दों पर बातचीत की थी. अफगानिस्तान की तोलो न्यूज के मुताबिक रविवार सुबह ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने सुबह बंदरगाह का उद्घाटन किया.
चाबहार बंदरगाह का सीधा फायदा भारत के कारोबारियों को होगा. भारतीय कारोबारी अपना सामान बिना किसी रोक-टोक के सीधे ईरान तक भेज पाएंगे. यहां से भारतीय सामान पहुंचने के बाद इसे अफगानिस्तान और मध्य एशिया के कई देशों में पहुंचाया जा सकेगा. अब तक इन देशों में जाने के लिए पाकिस्तान रास्ता रोक रहा था. चाबहार बंदरगाह शुरू होने से भारतीय सामानों के एक्सपोर्ट खर्च काफी कम हो जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक एक तिहाई कम हो जाएगा. साथ ही समय भी काफी बचेंगे. पाकिस्तान और चीन से रिश्ते अच्छे नहीं होने के चलते भारत एशिया के दूसरे देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने की कोशिश में जुटा है. ईरान और अफगानिस्तान से व्यापार बढ़ने के चलते स्वभाविक है कि इन देशों की भारत से दोस्ती और भी मजबूत होंगे.
ओमान की खाड़ी में चाबहार बंदरगाह ने अपनी क्षमता तीन गुना तक बढ़ा ली है. इसके साथ ही पड़ोसी पाकिस्तान में बन रहे ग्वादर बंदरगाह के लिए भी यह चुनौती पेश करता है. 34 करोड़ डॉलर में बनकर तैयार हुए चाबहार बंदरगाह को रेवलूशनरी गार्ड से संबद्ध कंपनी खातम अल-अनबिया (Khatam al-Anbia) ने किया है. यह सरकार की निर्माण परियोजनाओं की ईरान की सबसे बड़ी कंट्रैक्टर कंपनी है. अच्छी बात यह है कि निर्माण कार्य में भारत की सरकारी कंपनी भी शामिल रही. चाबहार बंदरगाह ने ईरान को हिन्द महासागर के और करीब ला दिया है. यह पाकिस्तान की सीमा से मात्र 80 किमी की दूरी पर है. ग्वादर पोर्ट को भी यह चुनौती देता है, जिसे चीनी निवेश के दम पर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बनाया जा रहा है. आशंका जताई जा रही है कि ग्वादर पोर्ट का इस्तेमाल भविष्य में चीन अपने नौसैनिक जहाजों के लिए कर सकता है.
इस विस्तार से इस बंदरगाह की क्षमता तीन गुना बढ़ जाएगी और यह पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में निर्माणाधीन गवादर बंदरगाह के लिए एक बड़ी चुनौती होगा. पिछले महीने भारत ने अफगानिस्तान को गेहूं से भरा पहला जहाज इसी बंदरगाह के रास्ते भेजा था. ईरान मध्य एशिया में और हिंद महासागर के उत्तरी हिस्से में बसे बाजारों तक आवागमन आसान बनाने के लिए चाबहार पोर्ट को एक ट्रांजिट हब के तौर पर विकसित करने की योजना बना रहा है. पिछले साल भारत ने चाबहार पोर्ट और उससे जुड़े रोड और रेल मार्ग के विकास के लिए 50 करोड़ डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई थी.
साभार: जी न्यूज