बुराडी में धूमधाम से संपन्न हुआ छठ महापर्व


संध्या कुमारी
नई दिल्ली। यूं तो पूरे दिल्ली में इस बार छठ महापर्व का आयोजन पूरे धूमधाम से हुआ। बुराडी क्षेत्र में कई स्थानों पर श्रद्धालुओं ने छठ महापर्व के अवसर पर भगवान भास्कर को अघ्र्य दिया। हिंदू धर्म में ही एक मान्यता ये भी है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में ही हुई है। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले सूर्यपूत्र कर्ण ने माता को कलंक से मोक्ष दिलाने के लिए सूर्य भगवान की पूजा की थी। ये सर्व विदित है कि कर्ण सूर्य भगान के परम शिष्य थे। दानवीर कर्म घंटों कमर भर पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्ध्य दिया करते थे। यही वजह है कि आज भी लोग ये मानते हैं कि सूर्य की कृपा से ही कर्ण इतने महान योद्धा बने। तभी से छठ पूजा में पानी में खड़े होकर अर्ध्य देने की परंपरा शुरू हुई। छठ मनाने वालों में ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पानी में खड़े होकर अर्ध्य देने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
लोक कथाओं में ये भी बात सुनने को मिलती है कि माता सीता ने भी सूर्य देवता की पूजा की थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम और माता सीता जब 14 वर्ष वनवास में बीता कर अयोध्या लौटे थे, तब माता सीता और भगवान राम ने राज्य की स्थापना के दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्टी को उपवास रखा था और उस दिन सूर्य भगवान की अराधना की थी। इतना ही नहीं, कहा तो ये भी जाता है कि माता सीता ने महर्षि मुद्गल के कुटिया में रहकर लगातार छह दिनों तक सूर्य भगवान की उपासना की थी।
बाबा काॅलोनी पुश्ता के निकट छठी मैया बाबा सूर्यघाट समिति की ओर से छठ महापर्व का आयोजन किया गया। इस घाट पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु आए। क्षेत्रीय निगम पार्षद और कई स्थानीय नेताओं ने श्रद्धालुओं से कुशलक्षेम पूछा। अतिथियों ने छठी मैया बाबा सूर्यघाट समिति के अध्यक्ष सत्यनारायण सिंह और जय मां जनकल्याण समिति की अध्यक्ष संध्या कुमारी सहित समिति के तमाम पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं के मेहनत की सराहना की।
इस त्योहार में श्रद्धालु तीसरे दिन डूबते सूर्य को और चौथे व अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं। पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है जिसमें व्रती लोग स्नान के बाद पारंपरिक पकवान तैयार करते हैं। दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है, जब श्रद्धालु दिन भर उपवास रखते हैं, जो सूर्य अस्त होने के साथ ही समाप्त हो जाता है। उसके बाद वे मिट्टी के बने चूल्हे पर ‘खीर’ और रोटी बनाते है, जिसे बाद में प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है। पर्व के तीसरे दिन छठ व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देते हैं। चौथे व अंतिम दिन को पारन कहा जाता है। इस दिन व्रती सूप में ठेकुआ, सठौरा जैसे कई पारंपरिक पकवानों के साथ ही केला, गन्ना सहित विभिन्न प्रकार के फल रखकर उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं जिसके बाद इस पर्व का समापन हो जाता है।

 

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