महबूबा मुफ्ती ने ठोकी भारतीय सेना की पीठ

जम्मू: जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने हालात का हवाला देते हुए कश्मीर में विवादित सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को हटाने से इनकार कर दिया. उन्होंने भारतीय सेना की तारीफ की और कहा कि हमारे देश की सेना पूरी दुनिया में ‘‘सबसे अनुशासित’’ है. मुफ्ती ने कहा कि कश्मीर की बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के कारण ही घाटी में सेना की तैनाती में बढ़ोतरी हुई है. भारतीय सेना दुनिया में सबसे ज्यादा अनुशासित है. वे सुरक्षा व्यवस्था बेहतर करने में लगे हुए हैं. उन्हीं की वजह से हमलोग आज यहां पर है. हमारी सेना ने काफी बलिदान दिये हैं.
यहां चर्चा कर दें कि सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत पिछले दिनों यह कह चुके हैं कि अफस्पा पर किसी पुनर्विचार या इसके प्रावधानों को हल्का बनाने का वक्त नहीं आया है. भारतीय सेना गड़बड़ी वाले जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में काम करते समय मानवाधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त सावधानी बरतने का काम करती है.
अब सवाल उठता है कि आखिर अफ्सपा कानून है क्‍या ? सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) 1958 में संसद द्वारा पारित किया गया था और तब से यह कानून के रूप में काम कर रही है. आरंभ में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में भी यह कानून लागू किये गये थे, लेकिन मणिपुर सरकार ने केंद्र सरकार के विरुध चलते हुए 2004 में राज्‍य के कई हिस्‍सों से इस कानून को हटा दिया.जम्‍मू-कश्‍मीर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) 1990 में लागू किया गया था. राज्‍य में बढ़ रही आतंकी घटनाओं के बाद इस कानून को यहां लागू किया था. तब से आज तक जम्‍मू-कश्‍मीर में यह कानून सेना को प्राप्‍त हैं. इसके बाद भी राज्‍य के लेह-लद्दाख इलाके इस कानून के अंतर्गत नहीं आते हैं.
इस कानून के तहत जम्‍मू-कश्‍मीर की सेना को किसी भी व्‍यक्ति को बिना कोई वारंट के तशाली या गिरफ्तार करने का विशेषाधिकार है. यदि वह व्‍यक्ति गिरफ्तारी का विरोध करता है तो उसे जबरन गिरफ्तार करने का पूरा अधिकार सेना के जवानों को प्राप्‍त है. अफ्सपा कानून के तहत सेना के जवानों को किसी भी व्‍यक्ति की तलाशी केवल संदेह के आधार पर लेने का पूरा अधिकार प्राप्‍त है. गिरफ्तारी के दौरान सेना के जवान जबरन उस व्‍यक्ति के घर में घुस कर संदेश के आधार पर तलाशी ले सकते हैं. सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) के तहत सेना के जवानों को कानून तोड़ने वाले व्‍यक्ति पर फायरिंग का भी पूरा अधिकार प्राप्‍त है. अगर इस दौरान उस व्‍यक्ति की मौत भी हो जाती है तो उसकी जवाबदेही फायरिंग करने या आदेश देने वाले अधिकारी पर नहीं होगी. संयुक्‍त राष्‍ट्र के मानवाधिर आयोग के कमिश्‍नर नवीनतम पिल्‍लई ने 23 मार्च 2009 को इस कानून के खिलाफ जबरदस्‍त आवाज उठायी थी और इसे पूरी तरह से बंद कर देने की मांग की थी. उन्‍होंने इस औपनिवेशिक कानून की संज्ञा दी थी. दूसरी ओर सेना के जवानों का कहना है कि चूंकी जम्‍मू-कश्‍मीर में जवानों को हर समय जान की जोखिम रहती है. इस कारण से उनके पास ऐसे कानून का होना वाजिब है.

 

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