“संवादी कार्यक्रम” पर सवाल दर सवाल

इतना गुस्सा, इतना दोहरा व्यक्तित्व और इतनी क्रांतिकारिता कहाँ से लाते हैं साईं.

पटना। मैं देख रहा हूँ कि दैनिक जागरण के ‘बिहार संवादी’ के बहिष्कार को लेकर फेसबुक पर चले अभियान के बाद बहिष्कार को आगे आये कुछ साहित्यकारों में गुस्सा जागरण से ज्यादा आह्वान और अभियान चलाने वालों पर है. मानो बड़ा अपराध उन्होंने कर दिया-उन्हें अनपढ़, फसादी और न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है. कुछ को आक्रोश है कि अभियान वालों ने निजी तौर पर उनसे अपील क्यों नहीं की. वे भूल जाते हैं उन अवसरों को जब इसी सोशल मीडिया पर फर्जी क्रोध के साथ वे प्रकट होते हैं, और हाँ मैंने भी और अन्यों ने निजी तौर पर भी संपर्क किया था. दरअसल जागरण के प्रति बहिष्कार का उनका निर्णय और अभियान उनके अपनी रिश्तेदारियों पर भारी जो पडा है. संवादी के आमंत्रितों का कुल-गोत्र और उसका अनुपात निकालकर देख लें.
तो हे चैम्पियन बनने वाले साहित्यकारों, क्या आपके बहिष्कार की अंदरुनी कथा खोल दूं-क्या दिन भर की आपकी बेचैनी और विरोध को डायल्यूट करने या किसी तरह मैनेज करने की अंतर्कथा खोल दूं. क्या स्पष्ट कर दूं कि कौन सा साहित्यकार इस असंवेदनशील पत्रकारिता की खबर सुनकर ‘जागरण संवादी’ के बचाव में क्या कह रहा था- मुंह मत खोलवाइये. मान गये आप बड़े क्रांतिकारी, सुपठ, विद्वान् और संवेदनशील साहित्यकार हैं-आपका मठ है, समूह है, प्रलेस, भूलेस, जलेस न जाने किन-किन नामों से. बेचारे बहिष्कार का अभियान चलाने वाले ठहरे गैंग विहीन-गैंगवार में टिकेंगे नहीं.
वह तो भला हो सुशील मानव का कि उन्होंने सबसे बातचीत का रिकार्ड रख लिया था. रात तक तो कोई स्टेटमेंट देने से ही इनकार करते रहे हैं आपके महान कविगण. पता चला कि रिकार्ड है. कुछ तो डिनर का लुफ्त तक ले आये. सुबह अंतरात्मा कैसे जागी, वह बताऊँ क्या?
छोडिये. याद करिये. कितनी दफा आपने बहिष्कार-बहिष्कार खेला है. क्या जयपुर के समानांतर साहित्य उत्सव को भूल गये, कि भूल गये उदय प्रकाश को दिये गये तानों को, क्या-क्या भूल गये, राजेन्द्र यादव को लालू प्रसाद का बहिष्कार करने की अपनी अपील भूल गये- आप सबको बरमेसर मुखिया चलता है, लालू प्रसाद नहीं. आप सब बनारस, छतीसगढ़ से लेकर जयपुर तक बहिष्कार-बहिष्कार खेलते हैं, लेकिन प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता के लिए जागरण के बहिष्कार की अपील या सम्बंधित खबर अभियान अनपढ़ों का ढकोसला लगता है.
ऐसा इसलिए कि आपके दुलरुओं का कार्यक्रम था ‘जागरण-संवादी’ कुल-गोत्र मठ सब गड़बड़ हो गया है न! मुबारक हो आपकी विद्वता. आपको सलाम! लेते रहिये श्रेय अपनी महानता का, लेकिन इधर आपके बहिष्कार के अन्तःपुर की कथा है उसे छोड़ दीजिये.

(संजीव चंदन जी के फेसबुक वाल से साभार)

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