पटना। पटना में आयोजित होने वाली साहित्य उत्सव बिहार संवादी विवादों में आ गया है। इसको लेकर जगह जगह विरोध किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर विरोध में व्यापक अभियान चलाया जा रहा है। जानकारी अनुसार इन लोगों को कहना है कि मैथिली बिहार की एकमात्र संवैधानिक भाषा है। इसका इतिहास रामायण काल से रहा है। लेकिन इस साहित्य उत्सव में इसे बोली कह कर अपमानित किया जा रहा है। उधर इस कार्यक्रम के आज शुरूआत होते ही युवा वर्ग का आक्रोश देखने को मिला। उल्लेखनीय है कि इस साहित्य महोत्सव में मैथिली भाषा को बोली वाले सत्र में रखा गया है।
पिछले करीब पखवारा भर से बिहार और झारखंड के अलावा देशभर के साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों के बीच ‘बिहार संवादी’ को लेकर एक उत्सकुता देखने को मिल रही है। साहित्य, कला और संस्कृति के लगभग हर मंच पर ‘बिहार संवादी’ को लेकर चर्चा हो रही है। बिहारियों के इस अपने साहित्य उत्सव को लेकर बिहार की माटी से जुड़े लेखकों, पत्रकारों, कलाकारों में तो उत्साह है ही, इनको चाहनेवाले लोग भी इस आयोजन को लेकर खासे उत्साहित हैं। दैनिक जागरण की मुहिम ‘हिंदी हैं हम’ के तहत दो दिनों के इस ‘बिहार संवादी’ में सत्रों की संरचना इस तरह से की गई है कि ज्ञान की इस भूमि से पूरे देश को संदेश जाए। सत्रों को साहित्य, कला, फिल्म, धर्म आदि विषयों को लेकर इस तरह से रचा गया है कि साहित्य की कमोबेश हर विधा पर विशेषज्ञों के बीच मंथन हो, संवाद हो, और उससे जो ठोस निकले उससे समकालीन साहित्य को एक नई दिशा मिले।
बिहार संवादी में साहित्य और सत्ता के संबंध, बिहार की कथाभूमि, रचनात्मकता का समकाल, सीता के अनेक मिथकों और पौराणिक कथाओं, हाशिए के साहित्य जिसमें दलित और अल्पसंख्यक साहित्य पर फोकस होगा, भाषा और बोली के द्वंद्, धर्म और साहित्य का रिश्ता, सिनेमा में बिहारी प्रतिभा, मीडिया की चुनौतियां आदि विषयों पर बातचीत होगी। इन क्षेत्रों के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है।
सोशल मीडिया पर कुछ लोगों की प्रतिक्रिया और विचार देखें:
#दैनिक जागरण संवादी का पहला दिन बिहार के लोगों से नहीं, खाली कुर्सियों से ‘साहित्य’ विमर्श में बिता। लोगों से संवाद करो Dainik Jagran, उत्सव लोगों से है तुम्हारे दंभ और अहंकार का उत्सव कब तक चलेगा? आइना सामने है!
सुनिए और देखिए जरा गौर से, मैथिली मचान ने कुछ समाद भेजा है आपकोDainik Jagran , अभी भी समय है।
सेवा में
श्री संजय गुप्त
प्रधान संपादक, दैनिक जागरण समूह
विषय- आपके अखबार द्वारा आयोजित एक समारोह के जरिये देश के करोड़ों मैथिली भाषियों को अपमानित किये जाने के संबंध में
महाशय,
आज दिनांक 21-04-2018 से पटना में आपके अखबार समूह का आयोजन बिहार संवादी शुरू हुआ है. इस आयोजन के एक सत्र ने देश के करोड़ों मैथिली भाषी लोगों की भावनाओं को आहत किया है. जैसा कि आपको विदित होगा कि मैथिली को भारतीय संविधान ने अपनी अष्टम सूची में शामिल कर विशिष्ट भाषा का दर्जा दिया हुआ है. मगर इस आयोजन में मैथिली को हिंदी की बोली कह कर उसे अपमानित करने और उसकी स्थिति को लघु बनाने की कोशिश की जा रही है. हमारे बार-बार सूचित किये जाने के बावजूद आयोजन के कर्ताधर्ता इस विषय में सकारात्मक कदम नहीं उठा रहे.
इस वजह से बिहार के मैथिली भाषियों में गहरा आक्रोश है. आपको ज्ञात हो कि कई वक्ताओं ने इस आयोजन का बहिस्कार किया हुआ है. सोशल मीडिया पर इस आयोजन के खिलाफ जबरदस्त कैंपेन चला हुआ है. मैथिली भाषा युवा आयोजन स्थल पर पहुंचकर इसका विरोध कर रहे हैं. जगह-जगह मैथिली भाषा आपके अखबार की प्रतियां जला रहे हैं. तसवीर संलग्न है. यह तय किया जा रहा है कि वे अब कभी दैनिक जागरण अखबार नहीं पढ़ेंगे. न कभी इस अखबार को प्रेस विज्ञप्ति भेजेंगे, न ही उसकी खबरों का संज्ञान लेंगे.
यह सब आपको इसलिए सूचित किया जा रहा है, क्योंकि अभी भी वक्त है. कल आयोजन का दूसरा चरण होने वाला है. आपका अखबार समूह चाहे तो उस सत्र को जिसमें मैथिली को बोली बताया गया है, रद्द कर और मैथिली भाषियों से क्षमा मांग कर इस स्थिति से उबर सकता है. अन्यथा आपके अखबार के बहिस्कार का मैथिली भाषियो का निर्णय अटल है.
आशा है आप इस पत्र पर संज्ञान लेंगे.
भाषा शहीद
तुम एक श्रीरामेलू मारोगे, हम सौ खड़े हो जायेंगे। इस तपती गर्मी में सड़क पर बैठे इन युवाओं की बात तक सुनने को बहरा आयोजक तैयार नहीं। वाह! वाह! बिहारियों का अपना साहित्योत्सव! अब तो अपने कब्र खोदो ये कैसा जनवादी साहित्य, लोक ही नहीं तो साहित्य कैसा? डूब मरो Dainik Jagran