नई दिल्ली। अखिल भारतीय लोक कला महोत्सव का साहित्य अकादेमी सभागार में संगोष्ठी एवं पुरस्कार वितरण एवं लोक कलाश्री स मान अर्पण समारोह के साथ संपन्न हुआ। यह समारोह 25 मई से दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि स्थानों पर आयोजित किए गए थे। संस्कृति मंत्रालय एवं इसके अधीन अन्य संस्थाओं के सहयोग से आयोजित इस कला महोत्सव में दक्षिण भारत, ज मू कश्मीर, राजस्थान एवं उत्तराखंड के कई नृत्य दल शामिल थे। साहित्य अकादमी सभागार में आयोजित संगोष्ठी के प्रमुख वक्ता थे प्र यात कवि लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना नलिनी एवं साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव।
प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना नलिनी ने अपने वक्तव्य में कहा कि संस्कृति हमारी पहचान है। सभी के पास अभिव्यक्त करने के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है किंतु कलाओं द्वारा अभिव्यक्त किए जाने वाले विचार हमेशा सकारात्मक और समाज को प्रेरणा देने वाले होते हैं। हमारे लोक उत्सव हमारी अभिव्यक्ति के ही प्रतीक हैं7 लोक कलाएं हमारे आनंद का स्रोत हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से ही लोक कलाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा और लोक कलाएं जीवित रह पाएंगी। कवि एवं आकाशवाणी दिल्ली के पूर्व निदेशक लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने कहा कि इन लोक कलाओं की वजह से भारत की 5000 वर्ष पुरानी स यता आज तक जीवित है। उन्होंने कई उदाहरणों से स्पष्ट किया कि अब अनेक लोक कलाएं उपयुक्त संरक्षण न होने के कारण नष्ट होने की कगार पर हैं। अत: उन्हें बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने साहित्य अकादमी द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में बताते हुए कहा कि वर्तमान समय में लोककलाओं का संवर्धन एवं संरक्षण बेहद जरूरी है। लोक कलाओं के आधार पर ही हम अपनी प्राचीन संस्कृति और उसकी उपयोगिता से परिचित होते हैं। उन्होंने आगे भी इस तरह के आयोजन में साहित्य अकादमी द्वारा भरपूर सहयोग का आश्वासन दिया।
कार्यक्रम का आरंभ सरस्वती वंदना एवं नगाड़ा वादन के बाद शुरू किया गया। संगोष्ठी के बाद प्रमुख नृत्य दलों को सामूहिक रूप से पुरस्कृत किया गया एवं उसके बाद प्रमुख कलाकारों को लोक कलाश्री स मान से स मानित किया गया।