शहरी महिलाओं में अधिक है मधुमेह

दिल्ली। मधुमेह, जो पहले केवल अमीर और समृद्ध लोगों को प्रभावित करने वाला एक विकार माना जाता था, अपने पंख फैला रहा है और आज भारत में लगभग 7 करोड़ शहरी और ग्रामीण लोग इससे प्रभावित हैं। कुल 1.21 अरब की आबादी में, इस कंडीशन से प्रभावित लोगों में से लगभग आधी महिलाएं हैं। स्थिति इस कारण से और गंभीर हो जाती है कि समाज में डाइबिटीज पीड़ित महिलाओं को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता है। मधुमेह से पीड़ित महिलाएं शारीरिक और मानसिक रूप से कई समस्याओं का सामना करती हैं, और अक्सर इन्हें शादी करने में भी मुश्किल होती है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अक्सर मधुमेह से संबंधित तीव्र उपचार प्राप्त नहीं होता है। महिलाओं में जटिलताएं और चेतावनी के संकेत भी कठिन होते हैं, जिसके चलते अक्सर इलाज में देरी हो जाती है और इस कारण से उनकी मृत्यु भी हो सकती है। इस बारे में डॉ संजय कालड़ा – सलाहकार एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, भारती हॉस्पिटल करनाल और वाइस प्रेसीडेंट, साउथएशियन फेडरेशन ऑफ एंडोक्राइन सोसाइटीज, ने कहा कि उच्च बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई), कमर की चैड़ाई, कमर-हिप अनुपात, सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर, फास्टिंग ग्लूकोज और कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की समस्या वाली महिलाओं को मधुमेह का खतरा अधिक रहता है। मधुमेह का पता चलते ही महिलाओं को न केवल मानसिक और मनोवैज्ञानिक आघात से गुजरना पड़ता है, बल्कि भारतीय समाज में इसे अच्छा भी नहीं माना जाता, विशेषकर यदि वे विवाहयोग्य आयु वर्ग में हों। समाज में दोष देने, नकारात्मक नतीजे निकालना, रूढ़िबद्धता, बहिष्कार करना, अस्वीकृति और भेदभाव आदि का गलत चलन मौजूद है। मधुमेह वाली महिला को समाज में जागरूकता की कमी के कारण शादी करने में कठिनाई हो सकती है। ऐसा इसलिए कि लोगों को लगता है कि इलाज पर खर्च करना पड़ेगा, गर्भावस्था में समस्या आयेगी और घर के काम करने की क्षमता पर असर पड़ेगा। इस सबके कारण यह भी हो सकता है कि लड़की के परिवार द्वारा इस समस्या का खुलासा ही न किया जाये। इन सभी कारणों से अंततः महिला को डिप्रेशन हो सकता है।
डाइबिटीज के कारण जो समस्याएं उत्पन्न्ा हो सकती हैं वे हैं – जननांग में संक्रमण, पॉलीसिस्टिक डिम्बग्रंथि सिंड्रोम, यौन रोग और मूत्र नली में संक्रमण। पर्याप्त देखभाल की कमी के कारण खराब मैटाबोलिज्म गड़बड़ा सकती है, उत्पादकता में कमी आ सकती है और मौत का खतरा भी बढ़ सकता है। डॉ. कालड़ा के अनुसार, हालांकि, महिलाओं में मधुमेह के लक्षण पुरुषों के समान हैं, लेकिन उनमें से कुछ अलग भी होते है।ं इनको समझने से समय पर इसकी पहचान और उपचार में मदद मिल सकती है। इस तथ्य पर जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है कि मधुमेह से पीड़ित महिलाओं को जीवन शैली में बदलाव के साथ एक सामान्य सामान्य जीवन जीना चाहिए। वे स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं और डिलीवरी भी सामान्य हो सकती है। महिलाओं को अपनी रक्त शर्करा का परीक्षण नियमित रूप से कराना चाहिए, नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए और मधुमेह के जोखिम को कम करने के लिए फल और सब्जियों से अच्छा कार्बोहाइड्रेट प्राप्त करना चाहिए
वक्त की मांग यह है कि डाइबिटीज वाली महिलाओं को इस स्थिति से मुकाबला करने में सक्षम बनाने के लिए उनके परिवार और दोस्तों के साथ मनोवैज्ञानिक संपर्क बनाया जाना चाहिए। इससे उन्हें सामाजिक समर्थन मिल सकता है और स्थिति को प्रबंधित करने में आसानी होगी। एक तत्काल आवश्यकता यह भी है कि मीडिया, सेमिनार, पोस्टर, समूह चर्चा और शिक्षा के माध्यम से इस कंडीशन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किये जायें। डॉक्टरों से सलाह लेने और परामर्श करने, महिलाओं के लिए समर्थन समूह गठित करने और शारीरिक गतिविधियों के लिए सुविधाएं जुटाने जैसे कदमों से इन महिलाओं की मदद की जा सकती है। समाज के पिछड़े वर्गों की महिलाओं के आसपास जागरूकता के लिए कार्यक्रम चलाये जाने की आवश्यकता है।

 

 

 

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