मेडजीनोम लैब्स ने ट्यूबरकुलोसिस, सीएनएस, सिस्टेमिक के लिए जेनेटिक टेस्ट की शुरुआत की


नई दिल्ली / टीम डिजिटल।  क्लिनिकल डेटा संचालित जेनेटिक डायग्नोस्टिक्स एवं ड्रग डिस्कवरी रिसर्च में लीडर, मेडजीनोम लैब्स ने ‘स्पिट एसईक्यू’ विकसित किया है, जो पहला संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण आधारित परीक्षण है और सीधे थूक से ट्यूबरकुलोसिस के बैक्टीरिया में मौजूद हर सिंगल म्यूटेशन का विस्तृत विश्लेशण प्रदान करता है, जो दवाईयों के लिए रजिस्टैंस निर्मित करता है। इस प्रगति के द्वारा डॉक्टरों को वर्तमान में एक महीने तक चलने वाली परीक्षण त्रुटि प्रक्रिया का पालन नहीं करना पड़ेगा और वो ट्यूबरकुलोसिस के मरीज को सबसे प्रभावशाली दवाई बहुत तेजी से और सटीक तरीके से प्रदान कर सकेंगे।

बता दें कि भारत में मल्टी ड्रग रजिस्टैंट (एमडीआर-टीबी) के मामले सर्वाधिक होते हैं। स्पिट एसईक्यू टीबी के मरीजों, क्लिनिशियनों और हैल्थकेयर एजेंसियों के लिए एक वरदान हो सकता है, जिसके द्वारा वो 2025 तक टीबी के उन्मूलन का भारत का सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) प्राप्त कर सकते हैं। यह टेस्ट टीबी करने वाले बैक्टीरिया, मायोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) की संपूर्ण जीनोम सीक्वेंसिंग है, जो बैक्टीरिया के जीनोम में म्यूटेशंस तक पहुंचकर क्लिनिशियन को यह निर्णय लेने में मदद करता है कि मरीज के लिए कौन सी दवाई काम करेगी।

असल में, इस टेस्ट को 100 से ज्यादा नमूनों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है, जहां इसने लाईन प्रोब ऐसे (एलपीए) की तुलना में 100 प्रतिशत सेंसिटिविटी और 98.04 प्रतिशत स्पेसिफिसिटी दर्ज की है। इनमें से 50 नमूनों के टेस्ट पी. डी हिंदुजा नेशनल हॉस्पिटल एवं मुंबई के मेडिकल रिसर्च सेंटर के सहयोग  से से हुए। यह हस्तलिपि प्रकाशन के लिए समीक्षा के अधीन है। आम तौर पर ड्रग रजिस्टैंस के विश्लेशण की प्रक्रिया लंबी होती है, जिसकी वजह से एमडीआर-टीबी के मरीज के लिए इलाज में विलंब हो जाता है।

यहां पर वर्तमान विशेशज्ञता द्वारा केवल 4 दवाईयों पर रजिस्टैंस की टेस्टिंग करने की अनुमति दी गई है, इसलिए मरीज को तब तक इंतजार करना पड़ता है, जब तक सभी संभावित दवाईयों पर टेस्टिंग पूरी नहीं हो जाती। ऐसी स्थिति में डायग्नोसिस के लंबे बदलाव का समय, बार बार की जाने वाली टेस्टिंग के कारण इलाज के दौरान बार बार परिवर्तन करने पड़ते हैं।

डॉ. कैमिला रोड्रीक्स, पी. डी. हिंदुजा  हॉस्पिटल ने कहा कि डायरेक्ट होल जीनोम सीक्वेंसिंग से 10 दिनों के अंदर सभी एंटी टीबी ड्रग्स के लिए ड्रग रजिस्टैंस म्यूटेशन की जानकारी मिल जाती है। जल्द ही यह टेक्नॉलॉजी एमडीआर-टीबी के मरीज के सही मैनेजमेंट को ऑप्टिमाईज करने में मदद करेगी। गौरतलब है कि डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में टीबी के 2ण्7 मिलियन मामले (टीबी$रिलाप्स) दर्ज किए गए थे और भारत में वैश्विक टीबी की 27 प्रतिशत मौतें दर्ज हुईं। दूसरी चैंकानेवाली बात यह है कि दुनिया में टीबी के 3.5 प्रतिशत नए मामलों और 18 प्रतिशत पहले इलाज किए जा चुके मरीजों को ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया द्वारा इम्युनिटी विकसित कर लेने के कारण फिर से पुनरावर्तन हुआ।

देश में उपलब्ध पारंपरिक टेस्ट हमें सीमित तरीके से रजिस्टैंस को पहचानने में समर्थ बनाते हैं। एमटीबी (मायोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) धीमे धीमे बढ़ता है और कल्चर ग्रोथ में 6 से 8 हफ्ते का समय लेता है, जिससे न केवल टीबी की डायग्नोसिस में विलंब होता है, बल्कि ड्रग रजिस्टैंस टेस्टिंग में भी विलंब होता है। स्पिट एसईक्यू एमटीबी की पहचान और ड्रग रजिस्टैंस का अनुमान लगाने के लिए एक कल्चर-फ्री डब्लूजीएस (होल जीनोम सीक्वेंसिंग) विधि है, जिसका बदलाव का समय 10 दिनों का है।

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