कोई पत्थर से न मारे…

कमलेश भारतीय

पानीपत। बुरी खबर है । पानीपत में कष्ट निवारण समिति की बैठक से निकलने के बाद गाड़ी में सवार दाढी वाले बाबा को पत्थर से निशाना बनाया , दो युवकों ने । गाडी का फ्रंट वाला शीशा चकनाचूर हो गया पर सौभाग्यशाली रहे अनिल विज कि पूरी तरह सुरक्षित रहे । पुलिस की भारी मौजूदगी में यह हरकत हो जाना , पुलिस बल की नाकामी ही साबित करती है । उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में दो युवक कैसे पत्थर हाथ में लिए निकल आए ? अनिल विज जी पुलिस बल और ऐसी कानून व्यवस्था पर क्या कहेंगे ?
दूसरी बात जब ऐसी वारदात होने लगती हैं , तब सरकार की लोकप्रियता भी सामने आ जाती हैं । जो मंत्री स्वयं सुरक्षित नहीं , दूसरों को क्या सुरक्षा प्रदान करेंगे ?
दोनों युवकों के बारे में यह बात सामने आ रही हैं कि वे बेरोजगारी से पीडि़त थे और मंत्री जी से मिल कर अपना कष्ट बयान करना चाह रहे थे । मौका नहीं मिला तो धयनाकर्षित करने के लिए पत्थर दे मारा । कितना गलत तरीका अपनाया । लोकतंत्र में बात रखने का सबको हक है लेकिन पत्थर मारने का नहीं । कोई यह भी कह रहा है कितना दोनों युवक नशे की हालत में थे । हो सकता है पर यह नौबत क्यों आई ? नेता जनता से दूर क्यों भागते हैं या मिलने से क्यों कतराते हैं ?
कबीर ने ठीक ही कहा हैंं :
दुख में सुमिरन सब करें
सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करें
दुख काहे को होय ?
यही बात नेताओं की हैंं । विपक्ष में रहते जनता से जुडाव के लिए कार्यक्रम चलाते हैं लेकिन सत्ता में आते ही उसी जनता के लिए समय नहीं रहता । फिर चुनाव में उलाहने मिलते हैं । तब दुख होता हैंंंं । जनता और नेताओ के बीच निरंतर संवाद बना रहना चाहिए । यही कला नेताओ को लोकप्रिय बनाती हैंंंं ।

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