अब डीटीसी बसों का किराया बढ़ाने की तैयारी

नई दिल्ली। योगेंद्र यादव के नेतृत्व वाली नवगठित राजनीतिक पार्टी स्वराज इंडिया ने राजधानी दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के संदर्भ में एक बड़ा खुलासा किया है। पार्टी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अनुपम ने मेट्रो के बाद अब दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) बसों का किराया बढ़ाये जाने की दिल्ली सरकार की योजना का पर्दाफाश किया। मेट्रो रेल के बाद अब डीटीसी बसों का किराया बढ़ाकर ओला ऊबर जैसे प्राईवेट कंपनियों को पूरा फ़ायदा पहुंचाने की अलिखित सरकारी योजना का खुलासा करते हुए स्वराज इंडिया ने इस बाबत प्रेस को कागज़ात भी दिखाए। सरकार के अपने कागजों से ही दिल्ली सरकार कटघरे में खड़ी दिखती है। दिल्ली परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक और दिल्ली सरकार के परिवहन सचिव ने लिखित तौर पे मेट्रो रेल के किराया निर्धारण समिति को बताया था कि मेट्रो का किराया बढ़ाने के बाद डीटीसी बसों का किराया भी बढ़ा दिया जाएगा। दावों को साबित करते हुए स्वराज इंडिया ने मेट्रो रेल किराया निर्धारण समिति की सिफारिशों वाली रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जिससे यह स्पष्ट होता है कि मेट्रो किराया बढ़ने का हवाला देकर दिल्ली सरकार ने डीटीसी बसों का किराया बढ़ाने की योजना पहले से ही बना रखी थी। यहाँ तक कि समिति ने मेट्रो किराया बढ़ाने के पीछे डीटीसी की योजना को अपनी सिफ़ारिश में एक आधिकारिक तर्क के रूप में पेश किया है।
ज्ञात हो कि पिछले दो महीनों से मेट्रो किराया वृद्धि पर राजनीतिक नूराकुश्ती, ड्रामेबाज़ी और जमकर बवाल किया जा रहा है। दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के प्रति केजरीवाल सरकार के दोगलेपन को उजागर करते हुए अनुपम ने डीटीसी बस किराये में किसी भी तरह की वृद्धि का विरोध किया। एक तरफ़ जहाँ दिल्ली परिवहन निगम की स्थिति चरमराई हुई है, वहीं बस सेवा में सुधार करने के बजाए सीधा किराया बढ़ा देना दिल्ली की जनता पर एक और करारा हमला है। आंकड़े बताते हैं कि जहाँ प्रति किलोमीटर परिचालन का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है, वहीं बस सवारियों की संख्या में लगातार कमी आयी है। वित्त वर्ष 2013 -14 में 43.47 लाख सवारियों की संख्या, अगके साल घटकर 38.87 लाख हो गयी। वर्ष 2015-16 में रोज़ाना सफ़र करने वाले सवारियों की संख्या 35.37 लाख और वर्ष 2016-17 में तो यह आंकड़ा और भी घटकर 30.33 लाख तक गिर गया।
इन्हीं कारणों से दिल्ली परिवहन निगम की बदहाली के किस्से चर्चा का विषय बने रहते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की पर्यावरण और जनहित में बसों का बहुत अहम योगदान है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित ईपीसीए ने भी दिल्ली सरकार को बसों की संख्या और सेवा में बढ़ोत्तरी करने के निर्देश दिए थे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने युद्ध स्तर पर बसों की संख्या बढ़ाने को कहा। लेकिन दिल्ली सरकार पर इस अहम मुद्दे का कोई ख़ास असर नहीं पड़ा।
आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से डीटीसी बस सेवा की गुणवत्ता, संख्या और सुविधाओं में गिरावट आई है। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में कहा था कि दिल्ली को वर्ष 2001 तक 10,000 बसों की आवश्यकता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2007 में कम से कम 11,000 बसों की ज़रूरत पर बल दिया। मतलब दिल्ली को कम से कम 11 हज़ार बसों की ज़रूरत आज हर हाल में है। लेकिन अफ़सोस कि डीटीसी और क्लस्टर बसों को मिलाकर भी दिल्ली को आज कुल 5482 (3789+1693) बसों से ही गुजारा करना पड़ रहा है। पिछले तीन साल में बसों की संख्या में तो और भी कमी आई है।
दिल्ली मास्टर प्लान 2021 के अनुसार राजधानी दिल्ली के लिए वर्ष 2020 तक सार्वजनिक और व्यक्तिगत परिवहन में 80:20 के बंटवारे का लक्ष्य रखा गया है। और इस लक्ष्य को तभी प्राप्त किया जा सकेगा जब सार्वजनिक परिवहन की 73% आवश्यकता बसों से पूरी की जाए। यानी कि दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए साल 2020 तक 15000 बसों की ज़रूरत है। 16 मार्च 2017 को शाम 4 बजे दिल्ली सचिवालय में डीटीसी बोर्ड की बैठक हुई जहाँ कर्मचारियों एवं बसों की संख्या में लगातार आ रही गिरावट रिपोर्ट की गयी। चिंता भी जताई गई कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो वर्ष 2025 तक डीटीसी के पास एक भी बस नहीं होगी और 5052 रेगुलर ड्राइवर सहित मात्र 6517 कर्मचारी बचेंगे। विस्तृत चर्चा के बाद डीटीसी बोर्ड ने दिल्ली सरकार को भी स्थिति से अवगत कराया।
सरकार के पास बस ख़रीदने के पूरे पैसे थे। पर्यावरण सेस के जरिये इक्कट्ठा की हुई राशि भी थी। ईपीसीए के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बसें खड़ी करने के लिए पूरी जगह है। 8000 बसों तक के लिए तो अभी ही जगह है और यदि सरकार बस डिपो के लिए मल्टी-लेवल पार्किंग की व्यवस्था कर ले तो डिपो की समस्या का पूरी तरह निदान हो जाएगा। लेकिन इन गंभीर समस्याओं और इतने सुझाओं के बाद भी दिल्ली सरकार ने बसों की ख़रीद नहीं की और राजधानी की परिवहन व्यवस्था से मज़ाक करते रहे। शायद सरकार तब तक नई बसें सड़क पर नहीं लाना चाहती थी जब तक कि डीटीसी किराया न बढ़ा लिया जाए।
दिल्ली सरकार की बदनीयत पर प्रकाश डालते हुए स्वराज इंडिया महासचिव अजित झा ने बताया कि मेट्रो किराया बढ़ाने की प्रक्रिया से भी दिल्ली सरकार पूर्णतः अवगत थी और डीटीसी बसों का किराया बढ़ाने के लिए इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। यहाँ तक कि मेट्रो का किराया बढ़ाये जाने के पीछे किराया निर्धारण समिति ने आधिकारिक तौर पर एक कारण यह भी बताया है कि दिल्ली की डीटीसी बसों का किराया बढ़ाने की तैयारी चल रही है। अजित झा ने कहा कि मेट्रो और डीटीसी की बदहाली के कारण ही दिल्ली की सड़कों पर भारी जाम की स्थिती बनी रहती है। वायु प्रदूषण का हर साल जानलेवा स्तर तक पहुंच जाना आम बात हो गई है। दिल्लीवासियों के लिए जहाँ आवागमन महंगा और दुर्गम हुआ है, वहीं सड़क दुर्घटनाओं में इज़ाफ़ा हुआ है।
स्वराज इंडिया ने मांग किया कि दिल्ली सरकार राजधानी की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को आम जनता की पहुँच से दूर करने की बजाए व्यापक, मजबूत और सुविधाजनक बनाने के उपाय करे। पार्टी ने दिल्ली सरकार से आग्रह किया है कि किराया बढ़ाने की अपनी इन योजनाओं पर रोक लगाए। मात्र 6 महीने में दो बार मेट्रो किराया बढ़ने के झटके से उबरने की कोशिश कर रही दिल्ली की जनता पर एक और हमला न करे सरकार।

 

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