नई दिल्ली। महामारी के दौरान चमत्कार दुर्लभ हो गए हैं लेकिन जब-जब दिखे हैं, तब-तब इंसान के अदम्य साहस और हर मुश्किल को पार करने के उसके जज़्बे का परिचय दिया है। फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने ऐसे ही एक दुर्लभ मामले में तीन बेहद नाजुक मरीज़ों, जिनमें एक मां और समय पूर्व जन्मे उसके दो नवजात शामिल हैं, की बेहद चुनौतीपूर्ण सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। यह मामला है श्रीमती सोनी का जिनकी आंत में एक ब्लॉकेज को हटाने के अलवा सी-सैक्शन भी किया गया जिसके परिणामस्वरूप समय से 14 सप्ताह पहले उनका प्रसव हुआ उन्होंने दो जुड़वां शिशुओं को जन्म दिया। जुड़वां शिशु चमत्कारी रूप से बच गए, हालांकि एक के शरीर में कुछ जटिलताएं पैदा हो गई थीं जिन्हें डॉ विवेक जैन, डायरेक्टर एवं हैड ऑफ डिपार्टमेंट, नियोनेटोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग के नेतृत्व वाली टीम ने सफलतापूर्वक दूर कर दिया। कोविड-19 महामारी के चलते उत्पन्न चुनौतियों और अस्पताल को कोविड सुविधा में बदले जाने के बावजूद, फोर्टिस के डॉक्टर इन तीन का बहुमूल्य जीवन बचाने में सफल रहे।
जब श्रीमती सोनी को आंतों में ब्लॉकेज की शिकायत के चलते अस्पताल लाया गया तो वह 26 हफ्तों की गर्भवती थी। उनके आंतों की ब्लॉकेज को दूर करने के लिए शुरू में पारंपरिक विधियों का इस्तेमाल किया गया ताकि गर्भावस्था को जारी रखा जा सके। लेकिन ये उपाय कारगर साबित नहीं हुए। तब मरीज़ की एक साथ दो सर्जरी की गईं – एक तो उनकी आंतों की ब्लॉकेज हटाने के लिए और दूसरी प्रसव के लिए सी-सैक्शन। चूंकि सर्जरी के वक्त गर्भ सिर्फ 26 सप्ताह का था, ऐसे में पूरी संभावना थी कि शायद गर्भस्थ शिशुओं का न बचाया जा सके। इस बारे में श्रीमती सोनी और उनके पति को पूरी जानकारी और परामर्श दिया गया। इस बीच, श्रीमती सोनी की जीवनरक्षा के लिए ये दोनों सर्जरी की गईं जो बेहद जटिल थीं लेकिन श्रीमती सोनी और उनके जुड़वां शिशुओं को बचा लिया गया।
डॉ विवेक जैन, डायरेक्टर एवं हैड ऑफ डिपार्टमेंट, नियोनेटोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने “प्रसव के बाद, जुड़वा शिुशओं को वेंटिलेटर पर रखा गया और उनके फेफड़ों को परिपक्व बनाने के लिए दवाएं दी गईं तथा कस्टमाइज़्ड कृत्रिम पोषण भी दिया गया। लेकिन प्रसव के तीसरे दिन एक शिशु में जटिलता उत्पन्न हो गई जब उसे इंटेस्टाइनल परफोरेशन की शिकायत हुई, यह बिल्कुल मां की शुरुआती परेशानी की तरह थी। ऐसे में इलाज के लिए तत्काल सर्जरी जरूरी थी, लेकिन समय से पहले जन्में इस शिशु का वज़न सिर्फ 1000 ग्राम था, ऐसे में उसके जीवित रहने की संभावना काफी कम थी। पहली सर्जरी में पेट के साइड में एक थैली बनायी गई और आंतों का जख्म भरने के लिए छोड़ दिया गया। इसके 6 से 8 हफ्ते के बाद दूसरी सर्जरी की गई जिसमें आंतों में बने छेद को बंद किया गया और इसे सिल दिया गया। दोनों सर्जरी के बीच समय धीरे-धीरे बीत रहा था और यह काफी तकलीफदेह भी था। इस बीच, यह शिशु अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता रहा और उसे डिस्ट्रेस, सेप्सिस, रेस्पिरेटरी फेलियर तथा हाइपोटेंशन जैसी शिकायतें भी हो गई थीं। लेकिन इसके बावजूद, शिशु चमत्कारी रूप से बच गया और जन्म के बारह हफ्ते बाद उसे अभिभावकों को सौंपा गया। यह किसी दिव्य चमत्कार से कम नहीं था कि समय से पहले अपरिपक्व जन्मे शिशु ने दो जटिल सर्जरी को सहन किया और जीवित रहा।”
इन जुड़वां शिशुओं के पिता श्री सोनी का कहना है, ”मुझे लगा था कि मैं अपनी पत्नी और अजन्मे बच्चों को फिर कभी देख नहीं पाऊंगा। मैं काफी घबराया हुआ था और सारी उम्मीद खो चुका था। मैं लगातार प्रार्थना करता रहा था और वही मेरा एकमात्र सहारा थी। फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग के डॉक्टरों का शुक्रिया करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं जिन्होंने मेरे नवजातों और पत्नी का जीवन बचाया है। मैंने हर दिन अपनी पत्नी और नवजातों को अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ते देखा था। वह बहुत दर्दनाक दौर था, लेकिन हम इससे बाहर निकल सके और आज हमारे शिशु पहले से ज्यादा संभल चुके हैं। डॉ विवेक जैन और उनकी टीम के समर्पण, निष्ठाभाव और चौबीसों घंटे लगातार निगरानी का ही नतीजा है कि हम अपने जुड़वां नवजातों के साथ घर लौट सके हैं। डॉक्टरों का आभार जताने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। उन्होंने जो कुछ किया वह वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं था।”
डॉ महिपाल भनोत, ज़ोनल डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने कहा, ”जब यह मामला हमारे पास आया तो हमारे अस्पताल को कोविड-19 सुविधा के तौर पर निर्धारित किया जा चुका था। अस्पताल में कोविड मरीज़ों की भर्ती के लिए तैयारियां चल रही थीं। हमारे पास कार्यबल, संसाधनों की कमी थी और हम काफी प्रतिबंधों में रहकर काम करना पड़ रहा था। फिर भी हमने आईसीएमआर, राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सभी मानकों तथा दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए श्रीमती सोनी को भर्ती किया। उनके इलाज में जो स्टाफ तैनात था वह कोविड वार्डों में तैनात कर्मियों से एकदम अलग था। तमाम चुनौतियों के बावजूद, हमारे डॉक्टरों ने यह सुनिश्चित किया कि मरीज़ को आवश्यकतानुसार इलाज उपलब्ध हो। हमें अपने डॉक्टरों के समर्पण भाव पर गर्व है और हम आगे भी इसी प्रकार उत्कृष्ट सेवाएं उपलब्ध कराते रहेंगे।”