कूड़ा उठाने वाले बनेंगे पर्यावरण योद्धा

नई दिल्ली। शहर की सड़कों, गलियों में आपने बहुत से लोगों को घरों के बाहर से कचरा उठाते अकसर देखा होगा, जिनमें ज्यादातर बच्चे होते हैं। ये मैले कुचैले बच्चे अकसर सामाजिक उपेक्षा और अपमान झेलते हैं। इन बच्चों के पास न तो शिक्षा का उजाला है और न ही एक बेहतर जीवन की उम्मीद। ऐसे में क्या है इनका भविष्य?

एक गैर सरकारी संगठन ने इस सवाल का जवाब देने की कोशिश के तहत देश में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने और कूड़ा बीनने वाले बच्चों को शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक संरक्षण देने का बीड़ा उठाया है और इन्हें भविष्य के ‘पर्यावरण योद्धा’ बनाने की दिशा में एक अनुपम पहल की है। संगठन द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा केन्द्रों में दो हजार से ज्यादा बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

भारतीय प्रदूषण नियंत्रण संघ (आईपीसीए) के संस्थापक और निदेशक आशीष जैन कहते हैं, “रैग-पिकर्स कठिन जीवन जी रहे हैं। वे कचरा इकट्ठा करने के साथ ही उसकी छंटाई करके जैसे तैसे जीवन यापन करते हैं। वे बिना नौकरी की सुरक्षा, वेतन या गरिमा के काम करते हैं, सड़कों पर गरीबी, अपमान और दुर्व्यवहार सहते हैं तथा अक्सर बीमारियों के संपर्क में आते हैं।”

आईआईटी दिल्ली से पढ़ाई करने के बाद आशीष जैन ने 2001 में भारतीय प्रदूषण नियंत्रण संघ की स्थापना की और प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के अभियान में जुट गए। जैन बताते हैं कि इस अभियान के तहत कबाड़ियों और कूड़ा बीनने वालों पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्होंने बताया कि उत्तर भारत में और मुख्य रूप से दिल्ली, नोएडा और गुड़गांव में दो हजार से ज्यादा परिवार कूड़ा बटोरने का काम करते हैं और इनमें बड़ी संख्या में बच्चे हैं। इन लोगों को इस कूड़े में से उपयोगी सामान और प्लास्टिक को अलग करने के काम में लगाया गया। कूड़े से निकलने वाला प्लास्टिक भी दो तरह का होता है। इसमें पीईटी यानि प्लास्टिक बोतलों का 70% से 80% तक रिसाइकिल होता है जबकि एमएलपी यानि मल्टी लेयर प्लास्टिक जैसे चिप्स, चॉकलेट और पैकजिंग का प्लास्टिक कूड़ा होता है।

उन्होंने बताया कि कूड़े की छंटाई के बाद इन लोगों से संघ यह प्लास्टिक खरीद लेता है और उसे रिसाइकिल प्लांट भेज दिया जाता है। प्लास्टिक कूड़े के बदले में पैसा मिलने से यह अधिक उत्साह से ज्यादा से ज्यादा कूड़ा एकत्र करने का प्रयास करते हैं। इससे एक ओर इनकी आर्थिक मदद होती है और दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है।

जैन बताते हैं कि इन लोगों को समाज में एक बेहतर मुकाम दिलाने के लिए संघ ने इनकी शिक्षा की दिशा में भी प्रयास किया है। कूड़ा जमा करने के काम में चूंकि पूरा परिवार लगा रहता है इसलिए इनके बच्चों को स्कूल जाने का वक्त नहीं मिलता। इस कमी को पूरा करने के लिए संघ ने 2013 में दिल्ली और एनसीआर में रैग-पिकर्स के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया।

राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से संबद्ध इस संघ द्वारा संचालित तीन शिक्षा केन्द्रों में 2000 से ज्यादा कूड़ा बीनने वाले बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन बच्चों को प्रशिक्षित शिक्षकों और वालंटियर्स द्वारा शिक्षा दी जाती है। इन बच्चों की शिक्षा और भोजन का सारा खर्च आईपीसीए वहन करता है। बड़ी नौकरी और मोटी तनख्वाह का लालच छोड़कर समाज और पर्यावरण को बेहतर बनाने के काम में जुटे आशीष जैन को उम्मीद है कि एक दिन उनका यह अभियान सफल होगा और आज कूड़ा बीनकर गुजर बसर करने वाले यह लोग एक दिन सफल पर्यावरण योद्धा होंगे और देश के विकास में अपनी हिस्सेदारी निभाएंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published.