Hindi Poem, कवि ने कविता घर में घर का विलग मर्म समझाया है

नई दिल्ली। घर क्या होता है? कभी इस पर गौर किया है? बहुत तो मानते हैं चार दीवारों का मकान। हम मानते ये ईंट-दीवारों से नहीं। वहां रहने वालों से बनता है। झुग्गी भी तो आंगन है। ये तो रहने वालों के साथ ही बनता है। कुछ तो कोठी में रहते हैं, पर अपनों से बहुत दूर। क्या उसे आप आंगन कह सकते हैं? बिना प्यार और अपनेपन के क्या आंगन ??? घरौंदे-आंगन का विलग मर्म समझाया है कवि डाॅ. एम. डी. सिंह की Hindi Poem घर में।

मौलिक कविता का पदार्पण

Hindi Poem – कवि बनने के लिए संजीदा होना लाज़िमी है। जिस इंसान के पास वैचारिक मंथन का ख़जाना होगा वही ज़िंदगी के हर अच्छे, हर बुरे फलसवे को समझ पाएगा। जब वह ऐसे भावों को कागज़ पर उतारता है तो मौलिक साहित्य का जन्म होता है। यह मौलिकता कहानी, उपन्यास, कविता, लघु कहानी, संस्मरण…कुछ भी हो सकता है।

 

कोने-कोने में अपनत्व जुड़ा

घर और मकान में अंतर है। घर बसाया जाता है और मकान बनाया जाता है। मकान में आदमी रह सकता है, घर में अकेले नहीं रहता। घर वह है जहां व्यक्ति के साथ उसकी पत्‍‌नी, माता-पिता और बच्चे हों। घर वह है जहां आत्मीयता हो, प्रेम हो, अपनत्व हो, जिस घर में इन तत्वों का अभाव है वह घर नहीं।

 

Hindi Poem – घर

पिता का छोटा सा आंगन
मानो भरा पूरा शहर
मां की लोरियां
बच्चों की किलकारियां
भाई बहनों की हंसी
दादा दादी का आशीर्वाद
आगत का आव भगत
पथिक को विश्राम

 

नन्हे से बक्से में, तह-तह बैठे

पाँव समेटे लोग
सलवटों से खुश
पिता की छाती आकाश
मां की बांहें क्षितिज
हर शब्द का अर्थ
हर अर्थ में खुशी
अब बच्चों का घर अपना है
माता- पिता के लिए सराय
बहनों के लिए चांद भाइयों के लिए सपना है
एक बड़े से बक्से में
कुछ सिक्के झगड़ते हैं


कवि डॉ एम डी सिंह

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