
नई दिल्ली / टीम डिजिटल। भाजपा और कांग्रेस दो प्रमुख दलों द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए टिकट घोषित करने पर जो दृश्य सामने आए वे बहुत कुछ सोचने को मजबूर करते हैं । क्या किसी पार्टी का पूर्व अध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष के आवास के सामने टिकटों की घोषणा से पहले ही हंगामा कर सकता है ? दूसरे करोडों रुपये के लेन देन की बात कह सकता है ? अपनेआप को मानव बम कहकर क्या कहने की मंशा है ? यानी यही कि मैं तो तबाह हो चुका , अब पार्टी को तबाह और बर्बाद करूंगा ।
सही बात कही थी गुलाम नवी आजाद ने चंडीगढ में सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यभार संभालने के अवसर पर । उन्होंने कहा था कि मैं यह सोचता हूं कि अध्यक्ष पांच साल के लिए होना ही नहीं चाहिए । बल्कि दी तीन साल के लिए होना चाहिए ताकि परिवर्तन को सहज स्वीकार कर सके ।अब यही अशोक तंवर ने साबित किया । वे कोई उम्र भर के लिए अध्यक्ष थोडे बनाये गये थे ।समय पूरा हुआ बल्कि उससे ज्यादा समय वे अध्यरक्ष रहे । यह क्या कम है ? फिर गिला कैसा ? आपने 1,73 लाख सदस्य जोडने का दावा किया लेकिन कितने लाख कल सोनिया गांधी के आवास के बाहर प्रदर्शन कर दूर कर दिए यह सोचा है ? विरोधियों को , चैनलों को आपने भरपूर मसाला दिया ।
यह सोचा है कि कितना नुकसान अपनी पार्टी का कर दिया जिसने आपको छह।साल अध्यक्ष पद दिए रखा । काश , आपको कल ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता तो हाईकमान के आवास के बाहर किए प्रदर्शन का आपको अहसास होता । फिलहाल अशोक तंवर का नाम टिकटों की सूची से बाहर है । यदि टिकट न मिला तो यह भी कम सजा नहीं होगी ।
यह भी सोचिए कि विचारधारा का कोई मतलब रह गया है ?इधर टिकट घोषित होती है , उधर दलबदल के लिए दरवाजे खटखटाने लगते हैं ।कैसी विचारधारा ? कैसी मोदी या सोनिया में आस्था ? किसके प्रति जवाबदेह ? सब मनमर्जी का सौदा रह गया । हिसार में देख लीजिए । प्रो छत्रपाल भाजपा से वंचित । जोगीराम सिहाग टिकट से वंचित और विरोध का सुर शुरू । इसी प्रकार विनोद भ्याणा को टिकट ।
यह दलबदल का सम्मान नहीं तो क्या है ? चरखीदादरी में पूर्वमंत्री सतपाल सांगवान और पूर्व राज्यसभा सांसद कांग्रेस टिकट न मिलने पर जजपा ज्वाइन करते हैं और एकदम सुपात्र बन जाते हैं टिकट पाने के । आपके कार्यकर्ता कब तक दरियां उठाएं ? चौ वीरेंद्र की धर्मपत्नी प्रेमलता को टिकट लेकिन राव इंद्रजीत की बेटी आरती राव राह ताकती रह गयी ।
क्यों ? दूडाराम भाजपा में आते ही टिकट के अधिकारी हो जाते हैं । कैसे ? जिताऊ उम्मीदवार चाहिएं , विचारधारा गयी भाड में । कौन पूछता है विचारधारा , आदर्शवाद और उसूलों को ? अपने उसूल , विचारधारा को लेकर राजनीति में कोई जगह नहीं मिलेगी ।अवसरवादिता के साथ आइएगा । सब मिलेगा । जो चाहोगे , वही मिलेगा ।जय हो नये जमाने की राजनीति की ।