लाट साहब की सक्रियता से मप्र में सियासी भूचाल की आहट!

महेश दीक्षित

राज्यपाल के पद को लेकर अभी तक यह माना जाता रहा है कि यह शोभा का पद है। तथा राज्यपाल का काम राजभवन में रहना, विधान सभा और सम्मेलनों को कभी-कभार संबोधित करना, परेडों का मुआयना करना, राज्य के अतिथियों के साथ दावतों में शरीक होना और सरकारी दस्तावेजों पर दस्तखत करना भर है। लेकिन पद एवं गोपनीयता की संवैधानिक शपथ लेने के बाद मप्र की नवनियुक्त लाट साहब (राज्यपाल) आनंदबेन पटेल जिस तरह से एक्शन में हैं, उनके तेवरों और भाव-भंगिमाओं को लेकर अलग-अलग तरह के राजनीतिक मंतव्य निकाले जा रहे हैं। कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। तमाम राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं। इसी के साथ इन सवालों के इर्द-गिर्द एक और राजनीतिक विमर्श एक नई शक्ल में शुरू हो गया है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीमती आनंदबेन पटेल को किसी बड़े बदलाव या फिर शिवराज सरकार की निगरानी की मंशा से मप्र में राज्यपाल बनाकर भेजा है? क्योंकि राज्यपाल की शपथ लेने से पहले जिस तरह से आनंदीबेन प्रोटोकाल की अनदेखी कर बस से गुजरात से मप्र आईं, शपथ लेने के बाद जिस तरह से राजभवन में निर्माणाधीन ऑडिटोरियम का निरीक्षण करते हुए अधिकारियों को हड़काते हुए उन्होंने कहा, मैं गुजरात में सात साल पीडब्ल्यूडी मंत्री रही हॅूं, मुझे पता है कि भवन कैसे बनते हैं? इसके बाद उनका अचानक आंगनबाड़ी केंद्र का निरीक्षण करने जाना, बच्चों की समस्याएं और आंगनबाड़ी की कमियां जानना और फिर पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी से मिलने जाना…महामहिम की इन सब गतिविधियों से यह सवाल उठना लाजिमी है कि, कहीं यह आने वाले दिनों में मप्र में किसी सियासी भूचाल की आहट तो नहीं है?
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि श्रीमती आनंदीबेन पटेल को विधानसभा चुनाव-2018 के आठ महीने पहले राज्यपाल बनाकर मप्र भेजने के पीछे पीएम नरेंद्र मोदी की दूरंदेशी राजनीति मंशा है। ऐसा कहा जाता है कि पीएम मोदी आंतरिक रूप से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को तब से पसंद नहीं करते हैं, जब सार्वजनिक तौर पर भाजपा के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवानी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को देश का भावी प्रधानमंत्री कहकर मोदी की अनदेखी की थी। हालांकि, शिवराज कहीं से कहीं तक अब मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं, लेकिन शिवराज मप्र के गांव-गांव में जिस तरह से लोकप्रिय हैं, मोदी को उनकी यह लोकप्रियता कहीं न कहीं खटकती रही है। व्यापमं घोटाला, इसके पहले और बाद में कई ऐसे मौके भी आए, जब सियासी हलकों में यह हवा चली कि मप्र में बड़ा बदलाव हो सकता है, पर शिवराज का राजनीतिक कद इतना बड़ा है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद चाहते हुए भी उन्हें डिगाया नहीं जा सका।
अब पीएम मोदी की सबसे करीबी और गुजरात की आयरन लेडी आनंदीबेन को मप्र का राज्यपाल बनाए जाने के साथ मप्र में सियासी बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार राज्यपाल आनंदीबेन की सक्रियता के मायने और संकेत यह भी हैं कि यदि कुछ स्वाभाविक बदलाव करना पड़ा, तो उन्हें (आनंदीबेन) अभी से मध्यप्रदेश को समझने भेज दिया गया है। संभवत: इसलिए श्रीमती आनंदीबेन राज्यपाल ताजपोशी के पहले दिन से एक्शन मोड में हैं। तथा समाज के सभी वर्गों से मेल-मिलाप कर मप्र की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मसलों की जानकारी लेने के साथ रोजाना भ्रमण-निरीक्षण के बहाने शिवराज सरकार की निगरानी करने में लग गई हैं। पर राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि नए राज्यपाल के जरिए शिवराज सरकार की निगरानी तो हो सकती है, लेकिन विधानसभा चुनाव-2018 के पहले शिवराज को छेडऩे का मतलब भाजपा के लिए मध्यप्रदेश खोना भी हो सकता है। शायद इसलिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मप्र आगमन के समय दो-टूक कह गए थे कि 2018 तक शिवराज ही मप्र के मुख्यमंत्री रहेंगे। खैर, नई राज्यपाल की सक्रियता आगे क्या-क्या राजनीतिक रंग दिखाती है यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि उनकी भाव-भंगिमाओं ने मप्र के भाजपाई बड़े सियासतदारों के पेशानी पर चिंताएं जरूरी बढ़ा दी हैं।

 

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