सावधान! जनसंख्या विस्फोट के मुहाने पर भारत

निशिकांत ठाकुर

पिछले दिनों लंबे अंतराल बाद एक पुराने मित्र से बात हो रही थी। जीवन में आए उतार-चढ़ावों पर भी अंतरंग बातचीत हुई। चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि अपने परिवार को छोटा ही रखा है, इसलिए बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त और खुश हैं। उनकी शादी को कई वर्ष हो चुके हैं और फ़िलहाल बच्चे की कोई योजना भी नहीं है । उन्हीं के शब्दों में कहें तो वे ‘बच्चा पालने की ज़िम्मेदारियों और चिंताओं के बिना अपना जीवन जीना’ चाहते हैं। इसी मानसिकता को समझने के लिए, इन गंभीर मुद्दों को जानने के लिए कई रिपोर्टों को देखने के बाद जो बात समझ में आई, उसने रोमांचित कर दिया। विश्व के कई ऐसे विश्वविद्यालय हैं जहां जन-जन से जुड़े सभी प्रकार के विषयों और समस्याओं पर अनुसंधान किया जाता है। उन्हीं में से एक है स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, जिसके द्वारा विश्व जनसंख्या पर किए गए एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि विश्व में दूसरे स्थान पर रहने वाले देश भारतवर्ष की आबादी 78 वर्ष बाद अर्थात 2100 में 41 करोड़ घट जाएगी और जनसंख्या घनत्व भी कम हो जाएगा। वहीं चीन की आबादी 49 करोड़ पर सिमट जाएगी । रिपोर्ट की मानें तो उसमे कहा गया है कि जब जनसंख्या वृद्धि नकारात्मक होती है, तो उस आबादी के लिए ज्ञान और जीवन स्तर स्थिर हो जाता है, लेकिन यह शनै:—शनै: गायब भी हो जाता है, जो बेशक हानिकारक परिणाम भी है। आने वाले समय में भारत का जनसंख्या घनत्व काफी कम होने का अनुमान बताया गया है। आज भारत और चीन की आबादी एक जैसी दिखाई देती है, लेकिन घनत्व में बहुत बड़ा अंतर है। भारत में प्रति वर्ग किलोमीटर में औसतन 476 लोग रहते हैं, वहीं चीन में प्रति वर्ग किलोमीटर 148 लोग रहते हैं। भारत का जनसंख्या घनत्व 335 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर गिरने की उम्मीद की गई है और यह गिरावट पूरे विश्व की उम्मीद से कहीं अधिक होने का अनुमान है । भारतवर्ष जनसंख्या घनत्व अनुमान में गिरावट, देश की जनसंख्या कम होने के कारण है। संयुक्त राष्ट्र परियोजनाओं की ताजा रिपोर्ट है कि भारत की जनसंख्या वर्ष 2022 में जो लगभग 141 करोड़ है, वर्ष 2100 में घटकर 100 करोड़ के आसपास रह जाएगी।

विश्व की जनसंख्या और विशेष रूप से भारतीय जनसंख्या के हानि– लाभ और कारण को जानने का प्रयास किया तो वह और भी चौंकाने वाला है। मेडिकल जर्नल की पत्रिका में छपे एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में जन्म दर में कमी हो रही है और इसका मतलब है कि इस सदी के अंत तक विश्व के लगभग सभी देशों की जनसंख्या में कमी आएगी। पत्रिका की इस रिपोर्ट में समाज पर इसके पड़ने वाले प्रभाव का भी ज़िक्र है। यहां हम सात देशों के बारे में जानेंगे, जो जनसंख्या में हो रहे नाटकीय बदलाव की समस्या से जूझ रहे हैं और इससे निपटने के लिए क्या –क़दम उठा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस सदी के अंत तक जापान की जनसंख्या आधी हो जाएगी। वर्ष 2017 की जनगणना के अनुसार जापान की जनसंख्या 12 करोड़ 80 लाख थी, लेकिन इस शताब्दी के आख़िर तक ये घटकर पाँच करोड़ 30 लाख तक होने का अनुमान लगाया जा रहा है। जनसंख्या के हिसाब से जापान दुनिया का सबसे बुज़ुर्ग देश है, जहां , 100 साल से ज़्यादा उम्र–दराज के लोगों की संख्या भी सबसे ज़्यादा है। इस कारण जापान में काम करने की क्षमता रखने वालों की संख्या में लगातार घटती जा रही है जिसके कारण इस हालात के और अधिक ख़राब होने की आशंका जताई जा रही है।

जापान की ही तरह इटली में बुज़ुर्गों की संख्या बहुत है। साल 2019 के विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार इटली में 23 फ़ीसदी आबादी 65 साल से अधिक उम्र की है। साल 2015 में इटली की सरकार ने प्रजनन दर बढ़ाने की योजना शुरू की थी, जिसके तहत हर विवाहित जोड़ों को एक बच्चा होने पर सरकार की तरफ़ से 725 पाउंड, यानी क़रीब 69 हज़ार रुपये दिए जाते हैं। चीन ने अपने यहां बढ़ती आबादी और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले उसके दुष्प्रभाव को देखते हुए वर्ष 1979 में ‘वन चाइल्ड’ की योजना शुरू की थी। लेकिन, दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाला यह देश आज जन्म-दर में हो रही अत्यधिक कमी से जूझ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार अगले चार साल में चीन की आबादी एक अरब 40 करोड़ हो जाएगी, लेकिन सदी के अंत तक चीन की आबादी घटकर क़रीब 73 करोड़ हो जाएगी। वर्ष 1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद वहां की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हुई थी, लेकिन ईरान ने जल्द ही अपने यहां बहुत ही प्रभावी ढंग से जनसंख्या नियंत्रण नीति लागू कर दिया। पिछले दिनों ईरान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी दी थी कि ईरान में सालाना जनसंख्या वृद्धि दर एक फ़ीसद से भी कम हो गई है। मंत्रालय के अनुसार अगर इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो अगले 30 साल में ईरान दुनिया में सबसे बुज़ुर्ग देशों में एक हो जाएगा। ब्राज़ील में पिछले 40 वर्षों में प्रजनन दर में काफ़ी कमी देखी गई है। 1960 में ब्राज़ील में प्रजनन दर 6.3 थी जो हाल के दिनों में घटकर केवल 1.7 रह गई है। एक प्रमाणित रिपोर्ट की माने तो ब्राज़ील की आबादी 2017 में 21 करोड़ थी, जो 2100 में घटकर 16 करोड़ के क़रीब हो जाएगी।

और अब बात भारत की। रिपोर्ट की मानें तो साल 2100 तक भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। हालांकि, पत्रिका के शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत की आबादी में कमी आएगी और इस सदी के आख़िर तक भारत की आबादी एक अरब 10 करोड़ के आसपास हो जाएगी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी अभी एक अरब 41 करोड़ है। 1960 में भारत में जन्म-दर 5.91 थी जो अभी घटकर 2.24 हो गई है। दूसरे देश अपने यहां प्रजनन दर बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां लोगों से छोटे परिवार रखने की अपील की है। पिछले साल एक भाषण में मोदी ने कहा था, ‘जनसंख्या विस्फोट भविष्य में हमारे लिए कई तरह की समस्याएं पैदा करेगा. लेकिन एक ऐसा वर्ग भी है जो बच्चे को इस दुनिया में लाने से पहले नहीं सोचता है कि क्या वह बच्चे के साथ न्याय कर सकते हैं। उसे जो चाहिए, क्या वह उसे सब कुछ दे सकते हैं।’ प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि इसके लिए समाज में जागरूकता लाने की ज़रूरत है।

एक रिपोर्ट को मानें तो उसके अनुसार विश्व के कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां जनसंख्या विस्फोट होने वाला है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2100 तक सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में बसे अफ़्रीक़ी देशों की जनसंख्या तीन गुना बढ़कर क़रीब तीन अरब हो जाएगी। इस रिपोर्ट के अनुसार इस सदी के आख़िर तक नाइजीरिया की आबादी क़रीब 80 करोड़ हो जाएगी और जनसंख्या के कारण वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश हो जाएगा। रिपोर्ट यह भी कहती है कि उस वक़्त तक नाइजीरिया में काम करने वाले योग्य युवाओं एक बड़ी संख्या हो जाएगी और उनकी जीडीपी में भी बहुत वृद्धि होगी। लेकिन, बढ़ती जनसंख्या के कारण इसका बोझ देश के आधारभूत ढांचों और सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ रहा है। नाइजीरिया के अधिकारी अब इस बारे में खुलकर बोलने लगे हैं कि जनसंख्या को कम करने के लिए क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है। इन सारी रिपोर्टों को देखने का बाद समझ में यह बात नहीं आ रही है कि अपने उस मित्र की सोच से दुखी होऊं या उनकी समाज और देश के प्रति दूरदर्शिता पर फख्र करूं। अपने मित्र की बात को और गंभीरता से जब सोचने लगा तो ऐसा लगा कि यह किसी एक की बात नहीं बल्कि पढ़े –लिखे समाज के हर घर की कहानी हैं । अब उनकी यह सोच नही है कि ‘जितने हाथ काम की उतनी खुशहाली परिवार की ‘। बड़े शहरों का हाल तो यह है कि पति–पत्नी दोनो काम करते हैं फिर बच्चों की देखभाल कौन करे । इसलिए वे योजनाबद्ध तरीके से उन झमेलों से अपने को मुक्त रखना चाहते हैं और सुखी जीवन जीना चाहते हैं । इसी सोच , इसी योजना के तहत लगभग सभी युवा अब एक बच्चे या बिना बच्चे के ही परिवार को सीमित कर देते हैं ।

जो भी हो विश्व में युवाओं की मानसिकता जिस प्रकार समाज और देश के विकास लिए बदल रही है, इस पर भी एक अनुसंधान की आवश्यकता है। हो सकता है, इस पर भी कोई विश्वस्तरीय संगठन द्वारा अनुसंधान किया जा रहा हो। लेकिन, फिलहाल भारत की जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में है। जनसंख्या वृद्धि की दर जीवंत-जाग्रत बुद्धिमान-मनीषियों एवं विभूतियों के लिए एक चुनौती है जिसे उन्हें स्वीकार करना ही पड़ेगा। जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि के कारण संसार पर भुखमरी का संकट तीव्र गति से बढ़ रहा है। लंदन के विश्वविख्यात जनसंख्या विशेषज्ञ हरमन वेरी ने संसार को सावधान करते हुए लिखा है ‘सन् 2050 में संसार के हालत महाप्रलय से भी बुरी हो जाएगी। तब धरती पर न तो इतने लोगों के लिए पर्याप्त भोजन मिल सकेगा, न शुद्ध वायु न पानी न बिजली। देश की उत्पादकता ही राष्ट्रीय विकास का आधार है। जो भी हो, दोनों ही भयावह स्थिति डराने वाली है। समाधान तो समाज को जागरूक और शिक्षित करने से ही निकलेगा। इसके लिए सोचना देश के समस्त राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों को होगा कि ऐसी स्थिति में हम आप क्या करें और सरकार क्या करे?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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