मात्र 6 से 7 फीसदी वोट की लड़ाई लड़ती बीजेपी -कांग्रेस

आंकड़ों को गौर से देखें तो साफ़ हो जाता है कि गुजरात में भले ही बीजेपी की सरकार पिछले दो दशक से बनती रही है लेकिन हर चुनाव में बीजेपी का आधार वोट घटता रहा है। कांग्रेस का आधार वोट बढ़ता रहा है। यह खेल 2002 से ही जारी है। पिछले 2012 के चुनाव में भाजपा का वोट काँग्रेस के मुकाबले करीब 9 फ़ीसदी ज्यादा था। 2012 के विधान सभा चुनाव के बाद 2014 में लोकसभा के चुनाव हुए और इस चुनाव में बीजेपी को भारी जीत हासिल हुयी। लेकिन 2015 के गुजरात निकाय चुनाव में बीजेपी की हालत पहले जैसी नहीं रही। निकाय चुनाव में वोट बट गए। शहरी इलाकों में बीजेपी मजबूत दिखी लेकिन ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस मजबूत दिखी और इस प्रकार दोनों पार्टी का औसत वोट लगभग बराबर हो गया। अभी जो हालात है उसमे दोनों के बीच 6 से 7 फीसदी वोट का अंतर रह गया है। ऐसे में साफ़ है कि जिस पार्टी को 6 से 7 फीसदी वोट ज्यादा मिलेंगे ,उसकी सरकार बन जायेगी।

अखिलेश अखिल

गुजरात की राजनीति पहले से विल्कुल बदल गयी है। अब पहले वाली राजनीति वहाँ नहीं रही। पिछले २२ साल से जो बीजेपी चाह रही थी वही वहाँ हो रहा था लेकिन अब जनता ही वहाँ बदलाव चाह रही है। और जनता अगर बदलाव के मूड में है तो फिर राजनितिक मिजाज का बदलना जरुरी है। इसलिए जनता अब वहाँ बदली बदली नजर आ रही है और इसी बदलते मिजाज को कांग्रेस कितना साध पाती है इसी पर गुजरात के चुनाव परिणाम निर्भर करते हैं।
चुनावी आंकड़ों को गौर से देखें तो साफ़ हो जाता है कि गुजरात में भले ही बीजेपी की सरकार पिछले दो दशक से बनती रही है लेकिन हर चुनाव में बीजेपी का आधार वोट घटता रहा है। कांग्रेस का आधार वोट बढ़ता रहा है। यह खेल 2002 से ही जारी है। पिछले 2012 के चुनाव में भाजपा का वोट काँग्रेस के मुकाबले करीब 9 फ़ीसदी ज्यादा था। 2012 के विधान सभा चुनाव के बाद 2014 में लोकसभा के चुनाव हुए और इस चुनाव में बीजेपी को भारी जीत हासिल हुयी। लेकिन 2015 के गुजरात निकाय चुनाव में बीजेपी की हालत पहले जैसी नहीं रही। निकाय चुनाव में वोट बट गए। शहरी इलाकों में बीजेपी मजबूत दिखी लेकिन ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस मजबूत दिखी और इस प्रकार दोनों पार्टी का औसत वोट लगभग बराबर हो गया। अभी जो हालात है उसमे दोनों के बीच 6 से 7 फीसदी वोट का अंतर रह गया है। ऐसे में साफ़ है कि जिस पार्टी को ६ से 7 फीसदी वोट ज्यादा मिलेंगे ,उसकी सरकार बन जायेगी। असली लड़ाई इसी वोट बैंक को लेकर हो रही है।
हार्दिक पटेल के चुनावी मैदान में सामने आने के बाद पटेल वोट साफ़ साफ़ बंटता गया है। जो पटेल वोट पहले बीजेपी के पक्ष में थोक भाव में जाता था ,अब ऐसा नहीं है। संभव है कि पटेल समुदाय का वोट अब भी बीजेपी के पक्ष में पड़े लेकिन यह भी उतना ही सच है कि पटेलों का वोट कांग्रेस के पक्ष में भी जाएगा जो पहले संभव नहीं था। अगर पुरे पटेल वोट को कांग्रेस अपने पक्ष में कर लेती है तो यह कहने में कोई दिक्कत नहीं होगी कि कांग्रेस यह चुनाव जीत जायेगी। लेकिन ऐसा भी संभव नहीं है। और बीजेपी के लिए भी यह संभव नहीं है। लेकिन कांग्रेस पहली बार पटेल वोट पाती दिख रही है। जीएसटी और नोटबन्दी को लेकर एक बड़ा अंडर करंट है। व्यापारियों को अंदर ही अंदर काफी नाराजगी है जो कुछ फ़ीसदी वोटों को भाजपा से खिसकाएगा। जिस तरह से जीएसटी के विरोध में 4 लाख से ज्यादा व्यापारी सूरत में सड़क पर उतरे थे उससे तो साफ़ है कि चुनाव में जीएसटी एक बड़ा मुद्दा है और बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पर सकता है। बेरोज़गारी और महँगी शिक्षा ने नौजवानों को सत्तापक्ष से दूर किया है। चुनाव सिर पर होने के बावजूद किसानों को मूँगफली और कपास का न्यूनतम समर्थन भी नहीं मिला। इससे किसानों और सत्ताधारी पार्टी के बीच पहले से ही बनी हुई दूरी और बढ़ी है। जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकुर का हार्दिक पटेल की तरह भाजपा के विरोध में काँग्रेस के पक्ष में जुड़ने से भाजपा विरोध का आधार व्यापक हुआ है। भाजपा के एकमात्र स्टार प्रचारक मोदी जी का करिश्मा उतार पर है और उनकी शब्दावली में बौखलाहट स्पष्ट है व रैलियों में उत्साहजनक हाज़री दिखाई नहीं देती। जहाँ मोदी जी मुद्दों से बचते हुए भावनात्मक ब्यानों को तरज़ीह दे रहे हैं वहीं काँग्रेस की रैलियों में मुद्दों पर फोकस दिखाई देता है। मोदी जी ने विकास मॉडल का ज़िक्र करना ही बंद कर दिया है।भाजपा कार्यकताओं का मुख्य जोर इस बात पर रहता है कि काँग्रेस के आने से मुसलमानों की दबंगई बढ़ जाएगी और शांतिपूर्ण माहौल में बिज़नेस करने वाले व्यापारियों के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा। साथ ही साथ आंतकवाद को मोदी जी द्वारा लगाई गई लगाम ढीली पड़ जाएगी।जी एस टी और नोटबन्दी की भाजपा कार्यकर्ता देश के लिए दूरगामी परिणाम लाने वाली नीतियों के तौर पर वकालत करने का प्रयास करते हैं लेकिन दबी जुबान में। सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का प्रचार बहुत अधिक गले नहीं उतरता। वोटर का एक बड़ा हिस्सा अब भी इस बात पर सहमत है कि मोदी जी ही देश को आगे बढ़ा सकते हैं और आंतकवाद व पाकिस्तान- चीन से बचा सकते हैं। बहुत से व्यक्तियों का ये भी कहना है कि मोदी- अमित शाह की जोड़ी आखिरी दो तीन दिनों में ऐसा कोई गुल खिलाएगी कि पासा भाजपा के पक्ष में बदला हुआ दिखाई देगा।
चुनाव से एकाएक गुजरात मॉडल का पलायन कर जाना बहुत बता रहा है। गुजरात मॉडल की जगह धार्मिक बातें होने लगी है और अस्मिता का सवाल उठने लगा है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि हार्दिक की राजनीति का कितना लाभ कांग्रेस को मिल पाता है। दलित, आदिवासी और मुसलमान किस स्तर पर कांग्रेस के साथ जा सकते हैं ? कुल मिलाकर कहानी यही बनती है कि जिस पार्टी को 6 से 7 फीसदी वोट ज्यादा मिलेंगे ,सरकार उसी की बनेगी।

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