जब तक ऐतवार नहीं तब तक करार कैसा ?

एक तरफ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए अपना जनाधार बचाए रखना प्रमुख चुनौती साबित हो रहा है तो वहीं करीब दो दशकों बाद सूबे में वापसी की उम्मीद लिए कांग्रेस अपने साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने की कवायद में जुटी है. रस्साकशी के इस खेल में ये दोनों ही संगठन जिस समुदाय पर अपनी नजरें सबसे ज्यादा गड़ाए हुए हैं वह है- पाटीदार. पाटीदार आंदोलन से जुड़े नेता कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर लड़ेंगे या फिर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार होंगे इसे लेकर अभी कुछ साफ नहीं है। कांग्रेस नेतृत्व हर हाल में हार्दिक पटेल के साथ समझौता और सीटों का तालमेल करना चाहता है। एक तरफ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए अपना जनाधार बचाए रखना प्रमुख चुनौती साबित हो रहा है तो वहीं करीब दो दशकों बाद सूबे में वापसी की उम्मीद लिए कांग्रेस अपने साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने की कवायद में जुटी है. रस्साकशी के इस खेल में ये दोनों ही संगठन जिस समुदाय पर अपनी नजरें सबसे ज्यादा गड़ाए हुए हैं वह है- पाटीदार. पाटीदार आंदोलन से जुड़े नेता कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर लड़ेंगे या फिर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार होंगे इसे लेकर अभी कुछ साफ नहीं है। कांग्रेस नेतृत्व हर हाल में हार्दिक पटेल के साथ समझौता और सीटों का तालमेल करना चाहता है। 

अखिलेश अखिल 

नई दिल्ली।  ठगिनी राजनीति में वादे और विश्वास की कोई गुंजाइस नहीं होती। हर कोई एक दूसरे को झांसा देता नजर आता है।  यूज़ एंड थ्रो अगर सबसे ज्यादा कही दिखाई पड़ती है तो वह राजनीति ही है। यान ना कोई किसी का दोस्त है और नाही कोई परमानेंट दुश्मन। समय के मुताविक समीकरण बदलते हैं और दोस्ती ,दुश्मनी भी। यहां ऐतवार करने वाला कोई शब्द नहीं होता। हर आदमी एक दूसरे से मिलता जरूर है लेकिन किसी साजिस को लेकर सतर्क भी रहता है। कांग्रेस के साथ गुजरात में कुछ ऐसा ही हो रहा है। गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति और कांग्रेस के बीच कभी हां कभी ना का जो खेल जारी है उसके पीछे का सच यही है कि कोई किसी पर ऐतवार नहीं कर रहा। पाटीदार समाज और कांग्रेस के बीच चूहा -बिल्ली का खेल इस लिए चल रहा है कि दोनों एक दूसरे पवार यकीन नहीं कर रहे।  यही कारण है कि  दोनों के बीच चुनावी करार अंतिम रूप नहीं ले पा रहा है। दरअसल, पाटीदार नेताओं का कांग्रेस के प्रति एतबार तब टूटा जब शुक्रवार रात कांग्रेस नेताओं ने सभी 182 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय कर लेने की बात कही और कांग्रेस ने एनसीपी व जदयू के बागी नेता शरद यादव खेमे के लिए कुछ सीटें छोड़ने की घोषणा कर दी। दूसरी ओर, दिल्ली के गुजरात भवन बुलाए गए चार पाटीदार नेताओं से कांग्रेस आलाकमान अथवा अन्य किसी नेता ने बातचीत नहीं की। पाटीदारों के आरक्षण को लेकर भी कांग्रेस अभी तक कोई ठोस फार्मूला नहीं निकाल पाई है। शुक्रवार रात पाटीदार नेताओं के सुर बदलते ही कांग्रेस तत्काल डैमेज कंट्रोल में जुट गई। पार्टी पाटीदार नेताओं को नाराज नहीं करना चाहती है। दरअसल दिल्ली आए पाटीदार नेता दिनेश बामनिया का कहना था कि उन्हें गुजरात प्रदेश अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी ने दिल्ली बातचीत के लिए बुलाया था, जबकि उनकी न तो किसी से मुलाकात हुई और न ही बातचीत के लिए बुलाया गया। कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक खत्म होने के बाद कांग्रेस ने एनसीपी और शरद यादव से बातचीत की और सीटों पर तालमेल की घोषणा कर दी, लेकिन यह साफ नहीं है कि पाटीदारों के हिस्से कितनी सीटें आ रही हैं।पाटीदारों ने तीस से अधिक सीटों पर दावा किया है, जबकि कांग्रेस दस से पंद्रह सीटें उन्हें सीधे तौर पर देने और कुछ पर उनकी पसंद का उम्मीदवार उतारने को तैयार है। पाटीदार आंदोलन से जुड़े नेता कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर लड़ेंगे या फिर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार होंगे इसे लेकर अभी कुछ साफ नहीं है। कांग्रेस नेतृत्व हर हाल में हार्दिक पटेल के साथ समझौता और सीटों का तालमेल करना चाहता है। कांग्रेस ने उम्मीद जताई है कि हार्दिक पटेल के साथ बातचीत जारी है और एक-दो दिन में उम्मीदवारों की घोषणा के साथ सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।      कांग्रेस के लिए गुजरात चुनाव में पाटीदार समाज का सहयोग काफी अहम् है। पाटीदार अगर कांग्रेस के फेवर में वोट डाल दे तो संभव है कि इस बार गुजरात की राजनीति कांग्रेस के पक्ष में चली जाय।  लेकिन जिस तरह से अविश्वास का वातावरण दोनों खेमे में बरकरार है ऐसे में साफ़ है कि अगर दोनों के बीच समझौता हो भी जाए तो बहुत दिनों तक दोनों के बीच प्रेम भाव नहीं रह पायेगा। फिर जिस तरह से पाटीदार समाज के भीतर ही कई तरह के अंतर्द्वंद चल रहे हैं।  युवा लोग हार्दिक पटेल के साथ सत्ता परिवर्तन को लेकर आगे बढ़ते दिखाई पड़ रहे हैं तो पुराने और बुजुर्ग पटेल समुदाय का बीजेपी के प्रति मोह भी नहीं टूटता दिखता। ऐसे में अगर कांग्रेस ईमानदारी से बिना कोई चालाकी किये पाटीदार समाज के साथ समझौता नहीं करती है तो कांग्रेस की गुजरात राजनीति आगे नहीं बढ़ पाएगी।

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