राजनीति ने गुजरात के साथ छल किया और गुजराती समाज को सिर्फ ठगा ही। बीमार गुजरात से जुड़े दो संस्थानों के आंकड़े बता रहे हैं कि गुजरात की बड़ी आवादी कुपोषित ,बीमार और रोगग्रस्त है और जनता के इलाज के लिए आज भी कोई मुकम्मल व्यवस्था वहाँ नहीं है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4), 2015-16 के मुताबिक गुजरात में नवजात (एक साल से कम) मृत्युदर 34 प्रति हजार और शिशु मृत्यु दर 43 प्रति हजार है। राज्य में पांच साल से कम उम्र के 39.3 फीसदी बच्चों का वजन उनकी उम्र के लिहाज से कम है।
अखिलेश अखिल
गुजरात। कीर्तन मण्डली भी कई तरह के होते हैं। अक्सर भगवान् भक्त एकांतवास में रहकर बिना शोरगुल किये बिना दिखावा किये और बिना किसी तामझाम के ईश्वर की आराधना में लगे रहते हैं। इस कलयुग में भी ऐसे भक्तों की कोई कमी नहीं। उनकी जिंदगी बिना कुछ अपेक्षा के ईश्वर को समर्पित है। लेकिन जो दिखावे वाली कीर्तन मण्डली ,तामझाम ,ईश्वर उपासना के नाम पर नौटंकी और धर्म के नाम पर ठगी और बेईमानी की पूरी कहानी ईश्वर भक्ति के नाम पर महज सिर्फ छलावा है और कुछ भी नहीं। और इसी छलावे में अधिकतर जन समुदाय लिप्त है। हम सब इसी चलावे के जाल में हैं और मकसद सिर्फ एक ही है कि कैसे सामने वालों को ठगकर अपनी बादशाहत कायम की जाए। इसलिए दिखावे वाली कीर्तन मंडली सिर्फ और सिर्फ सामने वालों को उल्लू बनाने के सिवा कुछ भी नहीं। गुजरात में अभी जो कुछ भी देखा और सुना जा रहा है वह सब वही आडम्बर वाली कीर्तन मंडली की झांकी मात्र है। गुजरात को लेकर पिछले 22 सालों से तरह तरह के मॉडल पेश किये जाते रहे हैं। इसी मॉडल को पेश करके देश की राजनीति ध्रुवीकृत होती रही लेकिन अब जाकर पता चला कि जिस गुजरात मॉडल के नाम पर देश की राजनीति फुफकारती रही दरअसल वह गुजरात ही बीमार निकला। हाँ सच तो यही है कि गुजरात बीमार है और जालसाज कीर्तन मंडली ने इस बीमार गुजरात को इतने करने से देश के सामने पेश किया कि बाकी के राज्य उस सजावटी थाली के सामने मुरझा से गए। हिन् भावना के शिकार होते चले गए।
तो सच यही है कि गुजरात बीमार है। वह किसी मॉडल के काबिल नहीं। राजनीति ने गुजरात के साथ छल किया और गुजराती समाज को सिर्फ ठगा ही। बीमार गुजरात से जुड़े दो संस्थानों के आंकड़े बता रहे हैं कि गुजरात की बड़ी आवादी कुपोषित ,बीमार और रोगग्रस्त है और जनता के इलाज के लिए आज भी कोई मुकम्मल व्यवस्था वहाँ नहीं है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4), 2015-16 के मुताबिक गुजरात में नवजात (एक साल से कम) मृत्युदर 34 प्रति हजार और शिशु मृत्यु दर 43 प्रति हजार है। राज्य में पांच साल से कम उम्र के 39.3 फीसदी बच्चों का वजन उनकी उम्र के लिहाज से कम है। इसके अलावा 62.6 फीसदी बच्चे, 55 फीसदी महिलाएं और 22 फीसदी पुरुष शरीर में खून की कमी से जूझ रहे हैं। इसी रिपोर्ट के मुताबिक स्वच्छता के दावों के बावजूद राज्य की एक-तिहाई आबादी अब तक खुले में शौच करने के लिए जाती है। इसके अलावा केवल 23 फीसदी परिवार ही स्वास्थ्य बीमा के दायरे में आते हैं। याद रखिये ये सरकारी आंकड़े हैं। जाहिर है कि गरीबी और लाचारी की वजह से ही लोग कुपोषण के शिकार होते हैं और खून की कमी से जूझते हैं। और टॉयलेट की कहानी तो यही है कि साढ़े 6 करोड़ की आवादी वाले इस राज्य की दो तिहाई जनता आज भी खुले में शौच में जाते हैं या जाने को अभिशप्त हैं।
गुजरात के स्वास्थ्य का हाल जान्ने के लिए अभी हाल में ही प्रकाशित भारतीय चिकित्सा अनुशंधान परिषद् की विस्तृत रिपोर्ट ‘इंडिया हेल्थ ऑफ द नेशन्स स्टेट्स’ सामने आयी है। देश में पहली बार यह रिपोर्ट जारी की गयी है। रिपोर्ट में 1990 से 2016 के बीच देश के राज्यों में स्वास्थ्य की स्थिति बताई गई है।
बीते ढाई दशक के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था संकट की स्थिति से निकलते हुए तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में तब्दील हो चुकी है। इस दौरान देश के जिन राज्यों का नाम विकास के मामले में काफी चर्चा में आया है उनमें गुजरात भी शामिल है। इस राज्य में 1995 से लेकर अब तक भाजपा का शासन रहा है।
बीते कुछ वर्षों के दौरान विकास को लेकर भाजपा बार-बार ‘गुजरात मॉडल’ की बात करती रही है। विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी विकास के नाम पर वोट मांग रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में बार-बार कह रहे हैं कि यह चुनाव विकास और वंशवाद की राजनीति के बीच है। लेकिन पूरे देश की तरह गुजरात में भी आर्थिक मोर्चे से इतर विकास की स्थिति को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं। राज्य में स्वास्थ्य की स्थिति कैसी है और सरकार द्वारा इस पर कितना ध्यान दिया जा रहा है, इससे जुड़ी खबरें समय-समय सामने आती रही हैं। इनके मुताबिक सरकार के लाख दावों के बावजूद राज्य में बीमारियों और मौतों की सबसे बड़ी वजह कुषोषण और साफ-सफाई की सुविधा का न होना है। इसके अलावा शराबंदी के बावजूद इससे होने वाली मौतों और बीमारियों की बात भी सामने आई है। याद रखिये गुजरात के राज्य बनने के बाद से ही यहाँ शराबबंदी है फिर शारब से मौत बहुत कुछ कह जाती है। ‘इंडिया हेल्थ ऑफ द नेशन्स स्टेट्स’ रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के कुल रोगियों में गैर-संक्रामक बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों की हिस्सेदारी 56.7 फीसदी है। इसके अलावा 31.6 फीसदी रोगी संक्रामक बीमारियों से जूझ रहे हैं। 1990 में सबसे अधिक लोग (11.3 फीसदी) डायरिया से पीड़ित थे या उनकी मौत इसकी वजह से हुई थी। 2016 में इस पायदान पर दिल से जुड़ी बीमारियों ने कब्जा जमा लिया। बीते साल गुजरात में 10.9 फीसदी मरीज इन बीमारियों से पीड़ित थे या उनकी मौत इसके चलते हुई थी। 1990 में यह आंकड़ा सिर्फ 4.6 फीसदी हुआ करता था। इसके अलावा राज्य में बीते ढाई दशक के दौरान बीमारियों में डायबिटीज की हिस्सेदारी 0.7 फीसदी से बढ़कर 2.1 फीसदी हो गई। 1990 से लेकर 2016 के बीच गुजरात में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वजह से होने वाली मौत या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के पीछे कुपोषण (14.6 फीसदी), भोजन से जुड़ी समस्याएं (10.4 फीसदी) और जहरीली हवा (9.1 फीसदी) सबसे बड़े कारण रहे हैं। इस सूची में धूम्रपान, शराब और नशीली चीजों का सेवन भी शामिल है।
साल 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता पर काफी जोर दे रहे हैं। फिर भी रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में राज्य में 2.6 फीसदी मरीज दूषित पेयजल और शौचालय के अभाव के चलते होने वाले रोगों से या तो जूझ रहे थे या इनके कारण उनकी मौत हुई थी। इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो मार्च, 2014 के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात के कुल 33 जिलों में से नौ ऐसे भी हैं जहां जिला अस्पताल नहीं है। इसके अलावा उपजिला अस्पतालों की संख्या 30 और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) की संख्या 1208 है। साल 2011की जनगणना के मुताबिक राज्य की कुल आबादी 6.04 करोड़ है। यानी एक पीएचसी पर औसतन 50 हजार रोगियों की जिम्मेदारी है। जिला अस्पताल के स्तर पर देखें तो यह आंकड़ा करीब 25 लाख हो जाता है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2012 में पूरे राज्य में 275 पीएचसी की कमी दर्ज की गई थी। इन केंद्रों में 1158 डॉक्टरों की जगह केवल 778 डॉक्टर काम कर रहे थे। इसके अलावा स्वास्थ्यकर्मियों की भी 4400 सीटें खाली थीं। बीते पांच वर्षों में हालात कितने बदले हैं, ये नए आंकड़े सामने आने के बाद ही सटीक रूप से बताया जा सकता है। ये आंकड़े सरकार के ही हैं। लेकिन कीर्तन मंडली को इससे कोई मतलब नहीं। ऐसा नहीं है कि ऐसा हाल केवल गुजरात का ही है। पुरे देश की यही समस्या है। सच तो यही है कि विकास के नाम पर राजनीति खूब होती है और जिसके लिए विकास और सुविधाएं मुहैया करानी है उसके खाते में कुछ जाता नहीं। लूट और झूठ पर टिकी देश की राजनीति लोकतंत्र को खतरे में डाल रही है।