साहित्य का कुंभ बन रहा उत्सव
कमलेश भारतीय
लगभग बीस वर्ष पहले हरियाणा की पावन भूमि पर आना हुआ । दैनिक ट्रिब्यून के रिपोर्टर के नाते । गांव गांव घूमा चुनावों में । सुनने को यही मिला कि हरियाणा कल्चर का नहीं एग्रीकल्चर का प्रदेश है । सच मे ? कोई कार्यक्रम बिना किल्की संपन्न नहीं होता था । चाहे हरभजन मान आए , चाहे हंसराज हंस , या मंदिरा बेदी या फिर सुनिधि चौहान । सब मंच पर तो सामने से आए पर गये पिछले दरवाजे से । यह हालत आंखों देखी है । सुनी सुनाई नहीं । युवा समारोह में लोकनृत्य पूरे करने मुश्किल इवेंट हो जाते ।
हरियाणा में इस स्थिति कोई बदलने की शुरूआत अनूप लाठर ने श्रीवर्धन कपिल व सूर्यकांत स्वामी के साथ की । लगभग पच्चीस वर्ष वे कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय की ओर से साहित्यिक कार्यशालाएं लगाते रहे । युवा रचनाकारों के साथ । इससे बदलाव की बयार बही ।
जयपुर के साहित्य सम्मेलन बहुचर्चित हैं । कसौली में खुशवंत सिंह के बेटे राहुल सिंह भी हर वर्ष चर्चा रखने लगे हैं । दिल्ली का पुस्तक मेला भी किसी साहित्यिक कुंभ से कम नहीं । वैसे इस बार तो यह सेल्फी कुंभ बन कर रह गया । हिसार में बुक क्लब भी अपनी भूमिका निभा रहा है ।
कुरूक्षेत्र में डाॅ सुभाष चन्द्र की ओर से पिछले साल साहित्य सृजन नाम से साहित्य उत्सव शुरू किया गया । इसमें लगभग छह सौ रचनाकारों ने भाग लिया । इस साल यह उत्सव कल 23 फरवरी से शुरू होगा जो तीन दिन चलेगा इसका उद्घाटन पंजाबी के प्रसिद्ध कवि सुरजीत पातर करेंगे जबकि समापन पत्रकार उर्मिलेश । दूसरे दिन चुनाव विश्लेषक योगेन्द्र यादव और प्रसिद्ध अभिनेता यशपाल शर्मा अपनी बात रखेंगे । लघुकथा विधा पर भी एक घंटे का सत्र होगा । यह प्रसन्नता की बात है लघुकथाकारों के लिए । इतने बडे आयोजन में इस बार कम से कम एक हजार लोगों के आने की उम्मीद लगाई है डाॅ सुभाष चन्द्र ने । इतना प्रबंध भी दोस्तों से जुटाया है । यह कोई राजकीय उत्सव नहीं । देस हरियाणा पत्रिका से अलख जगा कर उन्होंने हरियाणा में साहित्यिक उत्सव का बीड़ा उठाया । यह एक अकेले के बस का काम नहीं पर शुरूआत तो किसी को करनी ही थी । वह श्रेय उन्हें जाता है । अब तो लोग आते गये , कारवां बनता गया । हरियाणा को अब कोई एग्रीकल्चर का प्रदेश ही नहीं कहा सकता । अब यह एग्रीकल्चर और कल्चर दोनों के प्रदेश के रूप में जाना जाएगा । यह अलख , यह मशाल जलती रहे । इसमें जो जितना सहयोग कर सके , प्रदेश के हित में है । दुष्यंत कुमार के शब्दों में :
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन
आग जलती चाहिए, ,,,,,
आओ , फिर चलें कुरूक्षेत्र । मिलते हैं वहीं ।