हिमाचल के रिज से कुछ सबक 

हिमाचल की राजधानी शिमला में संयोगवश एक साहित्यिक कार्यक्रम में वर्ष के अंत में आमंत्रित किया गया । इस बहाने वहां की राजनीति और सामाजिक जीवन के कुछ सबक सीखने व जानने का मौका मिला । शायद कुछ साहित्य की ताजा हवा भी मिली । लगी नहीं मित्रो ।
नववर्ष की पूर्व संध्या पर जो सबसे अच्छी बात देखने को मिली , वह यह कि चाहे मुख्यमंत्री हो या आमजन रिज पर सबको एकसमान पैदल ही आना पडेगा । वहां कोई वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं है । सभी एक्स समान हैं । बस , मुख्यमंत्री के साथ पीछे शांत भाव से चल रहे सुरक्षाकर्मी ही इस बात का संकेत देने के लिए काफी थे कि मुख्यमंत्री भी रिज की भीड का हिस्सा हैं । कुछ परिचित अपरिचित लोग उनका अभिवादन कर रहे थे लेकिन मुख्यमंत्री के कारण किसी का रास्ता बाधित नहीं किया गया और न ही किसी के आनंद में जरा भी खलल पडा । सब अपनी मस्ती में थे । हमारे हिसार में अगर मुख्यमंत्री आते हैं तो बस स्टैंड से लेकर फव्वारा चौक तक पुलिस ही पुलिस सारा रास्ता रोकने के लिए खडी मिलती हैंं । आमजन का उस दिन का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है । ऑटो चालक अलग से बुरा भला कहते चलते हैं क्योंकि उन्हें लम्बे रास्ते से सवारी को ले जाना पडता हैं और कमाई पर असर पडता हैं । काश , शिमला के रिज से यह समानता का सबक हमारे राजनेता ले पाएं । कभी अंग्रेजों के समय इसी रिज पर भारतीय प्रवेश तक नहीं कर पाते थे । यह सुना हैं कि ऐसा लिखा रहता था या नियम रहा कि डाॅग्स एंड इंडियन्स ऑर नाॅट अलाउड। अब वही शिमला का रिज सारे भारत के नेताओं को वीआईपी कल्चर से दूर रहने का कितना बढ़िया संदेश दे रहा हैं । इसे अपनाएं ।
दूसरी बात जो सीखने को मिली कि युवा पीढी को दिशा देने की जरूरत है । वहां लगभग एक घंटे की बैठक में यही देखा कितना जैसे हमारे सामने कोई कैटवॉक या फैशन शो चल रहा है या फिर कोई सेल्फी प्रतियोगिता है । कम सेल कम दस युवतियों कोई उस एक घंटे के दौरान माडलों की तरह पोज देतीं फोटो खिंचवाते देखा । वे फोटो के बाद आतीं और पोज चैक करतीं , फिर नये पोज के लिए तैयार । वाह । बिन पैसे फैशन प्रतियोगिता देखने का स्वर्ण अवसर । सभी जगह यही चल रहा था । कोई सेल्फी स्टिक लिए ये कमाल दिखा रहे थे । कोई लाइव हुए स्वजनों कोई-कोई शिमला दर्शन करवा रहे थे ।
कुछ देर बाद मीडिया चैनल्स की ओबी आने पर युवा अपने रंग में आ गये और बेमतलब की चीखें , आवाजें और अपनी तरह के डांस करने लगे । ऐसे में लगा कि इस जोश को होश की जरूरत है पर हमारा मीडिया इसी जोश को कवर कर इसे बढावा देता है । यह कैसी संस्कृति है ? क्या यही नववर्ष का जोश या सबक है ?
साहित्यक ताजगी भी मिली । काव्य गोष्ठी में कुछ नये रचनाकारों को मौका दिया गया । यही सब शहरों में होना चाहिए । नये रचनाकारों की पौध तैयार करने का जिम्मा वरिष्ठ रचनाकारों पर होता है । यही पुनीत कर्म करना ही चाहिए । इसी में आनंद है । नववर्ष की पाठकों को ढेर सारी शुभकामनायें ।
– कमलेश भारतीय 

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