रंगकर्म का समाज में योगदान और बढते खतरे

हिसार । नाटककार , रंगकर्मी और लेखकों की गोष्ठी एमसी काॅलोनी स्थित जोरबा थियेटर में रंगकर्म और इसके समाज को योदान पर अनौपचारिक गोष्ठी हुई । दिल्ली से आए प्रसिद्ध रचनाकार डाॅ नरेंद्र मोहन के सामने सबने अपने विचार खुलकर रखे । रमन नास्सा व डाॅ संध्या शर्मा ने महिला रंगकर्मियों को रंगकर्म में आने वाली समस्याओं की बात की , वहीं रंगकर्मी मनीष जोशी ने अपने नये नाटक सतनाम वाहेगुरु के संदर्भ में धार्मिक परम्पराओं के पालन की बात कही । डाॅ नरेंद्र मोहन ने अपने नाटक कबीर और मनीष के नाटक के संदर्भ में कहा कि असल में कबीर और गुरु नानक देव दोनों समाज सुधारक थे और अपने समय में इनको भी समाज में विरोध का सामना करना पडा । उन्होंने कहा कि रंघकर्म ही नहीं सभी कलाओं का समाज पर मिश्रित प्रभाव होता है । डाॅ मधुसूदन पाटिल ने अभिव्क्ति के खतरों के बारे में बोलते हुए कहा कि खतरे बढते ही जा रहे हैं । हरियाणा ग्रंथ आकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष व गोष्ठी के सूत्रधार कमलेश भारतीय ने कहा कि कलाकार , रंगकर्मी और लेखक किसी भी शहर की आत्मा होते हैं । इनके न होने पर संवेदनाएं मर जाती हैं और शहर बंजर हो जाता है ।
विचारगोष्ठी में केसरा राम , रणजीत टाडा , शशि हंस और गुलशन भुटानी ने भी विमर्श में भाग लिया । संदेश यही निकल कर आया कि खतरे तो रहेंगे कला पर लेकिन बल्कि बढ रहे हैं लेकिन कलाकार व लेखक अपना संघर्ष जारी रखेंगे । बहुत प्यारी सी और विचारोत्तेजक शाम रही ।
– कमलेश भारती

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