भारतीय महिला हॉकी टीम ने चीन को शूट आउट में हरा कर एशिया कप पर कब्जा जमाया। इसका श्रेय जहां कप्तान रानी रामपाल को जाता है, वहीं भारतीय टीम की गोल कीपर सविता पूनिया को भी जाता है। यदि उसने शूट आउट में बढिय़ा क्षेत्ररक्ष न किया होता तो भारत एशिया कप नहीं जीत पाता; इसीलिए सविता पूनिया को श्रेष्ठ गोलकीपर घेाषित किया गया। कितनी बड़ी खुशी कितनी बड़ी उपलब्धि। फिर भारत की जमीन पर लौटते ही सविता पूनिया की आंखों में आंसू क्यों? सविता ने मीडिया कर्मियों को बताया कि वह पिछले नौ साल से महिला हॉकी खेल रही है लेकिन हरियाणा सरकार की नीति मैडल लाओ नौकरी पाओ के तहत उसे नौकरी के योग्य नहीं समझा गया। वह खेल के लिए फार्मासिस्ट की नौकरी कर रहे पिता के पैसों पर निर्भर है।
सविता पूनिया को शुरू-शुरू में हिसार के हॉकी प्रेमी योगराज शर्मा मेरे ट्रिब्यून कार्यालय में लाए थे और वहीं उसकी फोटो खींच कर सविता से बातचीत की थी। बेशक वह सिरसा की हैं लेकिन हॉकी स्टिक संभवत हिसार में ही पहली बार पकड़ी। जैसे सायना नेहवाल ने सबसे पहले हिसार में ही बैडमिंटन रैकेट पकड़ा। आज सायना में जमीन-आसमान का फर्क है। कहां सायना हवा में बातें करती है और कहां सविता पूनिया हॉकी किट लेकर या तो आटो पकड़ती है या बस। बस कंडक्टर उसकी किट को देखते ही चिल्लाने लगते हैं बस में कोई जगह नहीं। फिर भी सविता पूनिया नौ वर्ष से मन मजबूत किए हॉकी खेल रही हैं। सविता पूनिया ने अपनी मां से एक बार यह भी कहा मां अगर मैं इतनी मेहनत पढ़ाई में करती तो आज आईएएस बन चुकी होती। क्यों एक विजेता के मन में इतनी पीड़ा छिपी हुई है? क्या हरियाणा सरकार अपनी विजेता बेटी की पुकार सुनेगी? क्या क्रिकेट, लान टेनिस या बैडमिंटन खिलाडिय़ों के भाग्य में ही चकाचौंध भरा स्वागत और धन बरसता रहेगा? दूसरे खेलों, विशेषकर हॉकी के खिलाड़ी सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार होते रहेंगे?
सविता पूनिया ने भी क्रिकेट की कप्तान मिताली राज की तरह कहा कि अब हॉकी लीग आयोजित करने का समय आ गया है। मिताली ने भी विश्व कप उप विजेता बनने के बाद कहा कि महिला क्रिकेट आईपीएल करने का सही समय है; सविता पूनिया ने सारी स्थितियां बयन कर कहा कि वह हारी नहीं है और खेल पर इसका प्रभाव नहीं पडऩे देती। वह डिफैंडर बनना चाहती हैं पर कोच ने उसकी कद-काठी देखकर उसे गोलकीपर की भूमिका में मैदान में उतारा। इस तरह वह गोल कीपर आफ द टूर्नामैंट की हकदार बनी। सविता के जजबे को सलाम है और सरकार अब आगे बढ़कर उसका सिर्फ फूलों के गुलदस्ता से ही नहीं बल्कि कोई योग्य नौकरी देकर स्वागत करे तभी शुभ होगा। वैसे तो अपने जिंदल औद्योगिक समूह में क्या कमी है? किसी भी स्कूल में हॉकी कोच का पद देकर प्रोत्साहित कर सकते हैं पर सविता पूनिया के आंखों में आंसू पौंछने कोई तो आगे आए।
कमलेश भारतीय