नई दिल्ली। पूरी दुनिया ने माना कि कोरोना महामारी से लड़ने के लिए टीका ही सबसे सशक्त हथियार है। केवल नौ महीने के रिकॉर्ड समय में भारत ने 100 करोड़ से अधिक टीका लोगों को लगाया है। यह अनायास नहीं था। इसके लिए देश ने अपने पुराने टीकाकरण अभियान से प्रेरणा ली। वैक्सीन के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता से इस जादुई आंकड़े को हासिल किया गया है। वैज्ञानिक, डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मियों के साथ प्रत्येक नागरिक की इसमें भागदारी रही।
नेशनल कोविड टास्क फोर्स के सदस्य डॉ एनके अरोड़ा कहते हैं कि पिछले दो दशक में देश ने विज्ञान अनुसंधान के लिए बुनियादी ढांचे को विकसित करने में काफी प्रगति की है। सही मायने में परिवर्तन उस समय शुरू हुआ जबकि बीते साल नये टीकों के बुनियादी अनुसंधान और विकास को प्रेरित और प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया। मार्च वर्ष 2020 में इस संदर्भ में काफी मात्रा में निवेश बढ़ाया गया और वैक्सीन शोध के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाया गया। इससे न सिर्फ वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन मिला, बल्कि उद्यमी भी नये टीकों के विकास में सहयोग देने के लिए आगे आए। अंर्तराष्ट्रीय भागीदार, स्थानीय निर्माता, वैज्ञानिक और कई वैज्ञानिक लैबोरेटरी के साथ साक्षेदारी से नई तकनीकि विकसित और हस्तांतरित की जा सकीं। परिणाम स्वरूप महामारी शुरू होने के दस महीने से भी कम समय में भारत राष्ट्रव्यापी टीकाकरण कार्यक्रम शुरू कर पाया।
एक सवाल के जवाब में डॉ रेणु स्वरूप बताती हैं कि ऐसा नहीं है कि केवल कोविड वैक्सीन के लिए यह चुनौती रहा है। कोई भी वैक्सीन विकास एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। हमें वैक्सीन विकास के लिए वैज्ञानिक और तकनीकि क्षेत्र में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसका सामना हर वैज्ञानिक शोधकर्ता को करना पड़ता है। हम एक साथ पांच से छह वैक्सीन को विकसित करने के बारे में विचार कर रहे थे, हमारी चुनौती मांग के अनुसार पर्याप्त शोध को पूरा करने की थी।
गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि भारत उन देशों में पहले देशों में से एक था, जिसने फरवरी 2020 में डब्ल्यूएचओ की बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन जैसे अन्य विकसित देशों के साथ इस बीमारी से लड़ने के लिए अपना रोडमैप तैयार किया था, जिसके तुरंत बाद दुनिया में महामारी फैल गई थी। दुनिया में टीकों का सबसे बड़े उत्पादक देश के रूप में भारत जानता था कि टीका ही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। भारत सरकार के बायो-तकनीक विभाग की सचिव डॉ रेणु स्वरूप कहती हैं कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसे न सिर्फ देश के भीतर बल्कि विश्व स्तर पर भी मान्यता प्राप्त हुई है। इससे हमें इस बात का आत्मविश्वास मिला है कि हम पब्लिक स्वास्थ्य में आने वाली किसी भी चुनौती का सामाना करने के लिए तैयार हैं। देश की आबादी और जनसंख्या घनत्व को देखते हुए, मैं आपूर्ति चेन, संसाधन और मानवीय श्रम को बधाई देना चाहती हूं जिन्होंने इसे संभव बनाया। वैक्सीन को भले ही कम समय में जारी किया गया है लेकिन इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है, इसके लिए हमारे पास दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण के सुरक्षा और गुणवत्ता डाटा हैं। इस संदर्भ में टीकाकरण के बाद वैक्सीन की प्रभावकारिता और नये वेरिएंट पर इनका प्रभाव जानने के लिए कई अध्ययन किए जा रहे हैं। हमें संक्रमण के प्रकार, दोबारा संक्रमण होने आदि का पता लगाने के लिए भी डाटा प्राप्त हो रहे हैं, और हमें यह हमें विश्वास दिलाता है कि वैक्सीन प्रभावी है और सुरक्षित भी।
आज लाल क़िले की प्राचीर से 100 करोड़ टीके लगने के अवसर पर टीकाकरण गीत का प्रमोचन व वीडियो फिल्म को रिलीज़ किया।
यह गीत समर्थ नेतृत्व, स्वास्थ्य कर्मियों की मेहनत, जन भागीदारी को समर्पित है। #VaccineCentury
वीडियो फिल्म: https://t.co/kasX4IFsrK pic.twitter.com/FblovxLE4F
— Dr Mansukh Mandaviya (@mansukhmandviya) October 21, 2021
वैक्सीन का शोध और निर्माण कार्य आसान नहीं था। भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो शोधकर्ताओं को पशु सुविधाओं, प्रतिरक्षा परख प्रयोगशालाओं, नैदानिक परीक्षण सुविधाओं की आवश्यकता थी, जिसे सरकार की ओर से तैयार किया गया। आज 54 नैदानिक परीक्षण स्थल और 4 पशु परीक्षण सुविधाएं हैं। सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर मांडे का कहना है कि अगर यह महामारी 1980 के दशक में आई होती तो स्थिति कुछ और होती। 2020-21 में भारत की सबसे बड़ी ताकत यह है कि उसे किसी भी चीज के लिए पश्चिमी देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा, चाहे वह ड्रग्स, वैक्सीन या डायग्नोस्टिक्स हो।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ बलराम भार्गव कहते हैं कि वैक्सीन विकास के अनुभव से हमें इस बात का आत्मविश्वास बढ़ा है कि भारत अब फार्मेसी ऑफ वल्र्ड से कहीं अधिक वैक्सीन सुपरपॉवर में भी आगे है। महामारी के बुरे दौर के बीच वैक्सीन विकास के अनुभव से प्राप्त आत्मविश्वास से हम आगे भी अन्य बीमारियों के लिए नये वैक्सीन का निर्माण कर सकेंगे। यह केवल भारतीय आबादी के लिए ही नहीं, बल्कि विश्व की आबादी के लिए भी किया जाना चाहिए, क्योंकि हमारे सभी प्रयासों का अंर्तनिर्हित सिद्धांत वसुधैव कुटुंबकम या दुनिया एक परिवार है का है। दूसरा एक दशक से भी अधिक समय से हम जेनेरिक दवाओं को बनाने के लिए पॉवर हाउस के रूप में जाने जाते रहे हैं। कोविड19 का यह अनुभव मूल्य श्रंखला को आगे बढ़ाने और विशिष्ट होने के लिए दवा की खोज या वैक्सीन खोज में नया प्रतिमान स्थापित करने के लिए प्रेरित करेगा।
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत जैसे विविधता से भरे देश की विशाल 1.3 अरब आबादी को टीका लगाना एक बड़ी चुनौती है। यह भारत के वैज्ञानिक कौशल का प्रमाण था कि यह भारत में विकसित और निर्मित दो टीकों कोवैक्सिन और कोविशील्ड के साथ महामारी के खिलाफ जंग की शुरुआत कर दी गई। आज 1 अरब डोज पूरा हो चुका है।
विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीन के दुष्प्रभाव आते रहते हैं। कोरोना टीका का कोई दुष्प्रभाव न हो, इसके लिए पूरी व्यवस्था की गई। विशेषज्ञों का समूह इसकी निगरानी करता आ रहा है। लोगों को टीकाकरण के लिए पंजीकरण हो, किसी प्रकार की कोई दिक्कत न होने पाए, इसके लिए कोविन पोर्टल पर पूरी व्यवस्था की गई। पंजीकरण से लेकर टीकाकरण का प्रमाणपत्र तक वहां पर उपलब्ध है।
नेशनल हेल्थ ऑथिरिटी के सीईओ आर एस शर्मा कहते हैं कि कोविन के माध्यम से हर व्यक्ति तक सटीक जानकारी दी गई और लोगों को हर प्रकार की सहायता दी गई। कोविन के माध्यम से टीकाकरण अभियान का लोकतंत्रीकरण करते हुए लोगों और प्रणाली के बीच सूचना विषमता को कम किया। लाभार्थियों के घरों के सबसे नजदीक टीकाकरण कहां हो रहा है, जैसे छोटे लेकिन महत्वपूर्ण विवरणों से शुरू होकर, यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसी भी कालाबाजारी का दायरा लगभग समाप्त हो गया है, को-विन ने सभी हितधारकों को गठबंधन और प्रणाली को पारदर्शी रखा है।
टीकाकरण के बाद 30 मिनट के लिए अवलोकन के लिए प्रत्येक टीकाकरण केंद्र का आयोजन किया जाता है। इसका उद्देश्य किसी भी गंभीर प्रतिक्रिया जैसे कि एनाफिलेक्सिस को तुरंत रोकना था। जैसे जैसे टीका को लेकर अध्ययन आते गए दो डोज के बीच समय के अंतराल को व्यवस्थित किया गया। भारत की भौगोलिक परिस्थिति एक जैसी नहीं है। ऐसे में देश के हर गांव तक टीका पहुंचाने के लिए पूरी व्यवस्था की गई।
100 करोड़ जीत के टीके!
Thanking @FlySpiceJet for taking India's #VaccineCentury achievement across the nation's skyline! pic.twitter.com/DxsHtm6nqU
— Dr Mansukh Mandaviya (@mansukhmandviya) October 21, 2021
नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल कहते हैं कि बहुत मेहनत और संयम के बाद आज का दिन आया है। कोरोना के खिलाफ जंग में एक मील का पत्थर भारत ने रचा है। वयस्क टीकाकरण अभियान में 100 करोड़ के आंकड़ा को छूना आसान नहीं होता है। इसमें जन जन की भागीदारी है। देश के वैज्ञानिक और स्वास्थ्यकर्मियों की मेहनत है। यह उपलब्धि देश के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी। भारत ने कोविड19 के खिलाफ 16 जनवरी 2021 को टीकाकरण अभियान शुरू किया था, हमने सबसे पहले स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर को कोविड19 का वैक्सीन दिया, इसके बाद हमने वैक्सीन के लिए पात्र सभी लोगों के लिए टीकाकरण का दायरा बढ़ा दिया। शुरूआत में देश भर में केवल तीन हजार टीकाकरण केन्द्र थे, जबकि आज इनकी संख्य बढ़कर एक लाख हो गई है। जिनका नतीजा यह हुआ कि हम प्रतिदिन 70 से 80 लाख लोगों को वैक्सीन दे सकें, जो कि कुछ देशों की कुल आबादी से भी अधिक संख्या है। बहुत से देशों ने यह सोचा भी नहीं हुआ कि भारत जैसी विशाल आबादी वाले देश में केवल नौ महीने के कम समय में इतनी अधिक संख्या में वैक्सीन दिया जा सकेगा, और यह तब संभव हो पाया जिसमें कि दो वैक्सीन भारत की धरती पर ही बनाई गईं। आत्म निर्भर भारत का इससे अधिक उदाहरण और क्या हो सकता है। यहां तक पहुंचने के लिए देश ने नये वैक्सीन की सुरक्षा और उपयोगिता को लेकर लोगों की आशंकाओं को खत्म कर दिया है। नौ महीने के समय में इस बात के लिए हम आश्वस्त हो गए हैं कि वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी है।