क्यों अबॉर्शन पर आयरलैंड का जनमत संग्रह राजनीतिक रूप से अहम ?

नई दिल्ली। आयरलैंड में अबॉर्शन (स्वैच्छिक गर्भपात) पर कानूनी पाबंदी को लेकर हुए जनमत संग्रह में 66.4 प्रतिशत लोगों ने इसके खिलाफ मत दिया है. इसके साथ यूरोप का यह देश सही मायनों में 21वीं सदी में पहुंचा हुआ माना जा सकता है. 1983 में आयरलैंड के संविधान में आठवां संशोधन हुआ था और इससे व्यावहारिक रूप में अबॉर्शन पर पाबंदी लग गई थी. इस संशोधन के जरिए एक पुराने कानून को मजबूत किया गया था जो अजन्मे बच्चे और उसकी मां को बराबरी से जीवन जीने का अधिकार देता है. बीते शनिवार को हुए जनमत संग्रह में आयरलैंड के नागरिकों ने इस संविधान संशोधन को खारिज कर दिया है.
इस कानून के तहत आयरलैंड में किसी गर्भवती महिला को तभी अबॉर्शन की अनुमति मिल सकती है जबकि बच्चे के जन्म से उसकी जान को खतरा हो. हालांकि महिलाओं को यह रियायत भी 2013 में दी गई थी और इसकी वजह 31 वर्षीय एक भारतीय डेंटिस्ट सविता हलप्पनवार थीं.
मूल रूप से कर्नाटक की सविता हलप्पनवार अक्टूबर, 2012 के दौरान गर्भ में कुछ दिक्कतों के चलते गर्भपात करवाना चाहती थीं. लेकिन उनसे कहा गया कि आयरलैंड एक कैथोलिक देश और इसलिए यहां के कानून अबॉर्शन की इजाज़त नहीं देते. आखिरकार इसी महीने सविता को अकाल प्रसव हो गया और इसके बाद हुए संक्रमण से उनकी भी जान चली गई. इस घटना की जांच से साबित हुआ था कि अगर सविता को अबॉर्शन की इजाज़त मिल जाती तो उनकी जान बच सकती थी. तब इस मामले की पूरी दुनिया में चर्चा हुई थी और आयरलैंड में भी नागरिकों का एक बड़ा तबका इसके खिलाफ एकजुट हो गया था.
हालिया जनमत संग्रह के दिन भी इस कानून के विरोधियों के हाथों में सविता हलप्पनवार की तस्वीरें देखी जा रही थीं और दीवारों पर कई जगह उनके पोस्टर लगे हुए थे. सविता इस मामले में दुर्भाग्यशाली कही जा सकती हैं कि वे अबॉर्शन के लिए आयरलैंड से बाहर नहीं जा पाईं, जबकि कानून में इसकी इजाजत है. यह बड़ी विचित्र बात थी कि बलात्कार या रक्त संबंधियों से हुए गर्भाधान या फिर भ्रूण में खतरनाक विकृति होने की दशा में भी यह कानून गर्भपात की इजाजत नहीं देता था. दो साल पहले जब आयरलैंड की एक महिला भ्रूण में आई ऐसी ही विकृति के चलते अबॉर्शन करवाने इंग्लैंड पहुंची थी और उसने इससे जुड़ी अपनी तकलीफें सार्वजनिक की थीं तब भी यह कानून अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बना था. उस समय संयुक्त राष्ट्र ने भी आयरलैंड से इस कानून में कुछ ढील देने को कहा था.
फिलहाल आयरलैंड की सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह महिलाओं को 12 हफ्ते तक के गर्भ को गिराने की अनुमति देने वाला कानून पास करेगी. हालांकि भ्रूण में खतरनाक विकृति होने या गर्भवती महिला को जान का खतरा होने या फिर सेहत से जुड़ी कोई गंभीर हानि पहुंचने की दशा में अमूमन 12 से 24 हफ्ते तक का गर्भ गिराने की अनुमति दी जाती है. वहीं अगर भ्रूण से जुड़ी विकृति जानलेवा है तो 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की इजाजत होती है.
आयरलैंड में समय के साथ चर्च और सरकार में अंतर बढ़ा है, इसके बावजूद यहां का समाज गर्भपात के मुद्दे पर बंटा रहा है. वहीं इस दौरान यहां सामाजिक खुलापन भी आया है. आयरलैंड ने 2015 में अपने यहां समलैंगिक शादियों को मान्यता दी थी और उसी साल उसने एक समलैंगिक लियो वरडकर को प्रधानमंत्री भी चुना. खुद वरडकर भी इस कानून के खिलाफ रहे हैं. आज जब पूरी दुनिया में दक्षिणपंथी ताकतें मजबूत हो रही हैं, उस समय आयरलैंड का यह जनमत संग्रह लोकतांत्रिक दुनिया के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह ठीक है कि आज भी लोगों की जिंदगी में धर्म का बहुत दखल है, लेकिन आधुनिक सरकारों में मध्ययुगीन नियम-कायदों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. कुल मिलाकर आयरलैंड के इस जनमत संग्रह से हुआ फैसला, सही दिशा की तरफ उठा एक बड़ा कदम है.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.