कैसे पहुंचे संसद तक आवाज, भटक रहे हैं प्रदर्शनकारी

आज जंतर मंतर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच विवाद का मैदान बन चुका है। अब प्रदर्शनकारियों के सामने संकट यह है कि अपनी बात को प्रमुखता से रखने के लिए कहां पर प्रदर्शन करें ?

उदयभान राजभर

नई दिल्ली। दिल्ली का जंतर मंतर देश की राजधानी में कला का अद्वितीय नमूना एवं प्रमुख पर्यटन स्थल के अलावा प्रदर्शन करने वालों का एक केन्द्र बन गया था। माना जाता है कि यहां उठने वाली हर आवाज सीधे देश की संसद तक पहुंचती है। यहां अपनी आवाज हर कोई बुलंद करना चाहता है, ताकि देश के नीति निर्माताओं तक अपनी आवाज पहुंचा सके। जंतर-मंतर देश के कई बडे आंदोलनों का गवाह रहा है। लेकिन आज वही जंतर मंतर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच विवाद का मैदान बन चुका है। अब प्रदर्शनकारियों के सामने संकट यह है कि अपनी बात को प्रमुखता से रखने के लिए कहां पर प्रदर्शन करें।
त्रिलोकी राजभर जो अखिल भारतीय राजभर संगठन के बैनर तले अपने समाज के एससी, एसटी कोटे में शामिल करने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन करना चाहते हैं पर वे तीन दिन से भटक रहे हैं। वे कभी पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने तो कभी कमला मार्केट थाने या कभी दरियागंज थाने में प्रदर्शन करने के बाबत अपना आवेदन कर रहे हैं। अभी तक उनको कहीं से भी प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं मिली है।
एनजीटी ने लगाया है रोक
राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने यहां जंतर-मंतर क्षेत्र में सभी प्रदर्शनों और लोगों के इकट्टा होने को तत्काल रोकने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति आरएस राठौर की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने नई दिल्ली नगर पालिका परिषद को कनाट प्लेस के निकट स्थित जंतर-मंतर रोड से सभी अस्थायी ढांचों, लाउडस्पीकरों को हटाने के भी निर्देश दिए। कोर्ट ने स्थल को रामलीला मैदान ले जाने का भी विकल्प सुझाया है, पर रामलीला मैदान पर प्रदर्शन करने के लिए लगाया गया शुल्क प्रदर्शनकारियों पर भारी पड़ रहा है। वहीं एक स्थान आईटीओ के शहीदी पार्क को भी प्रदर्शन के चुना जा सकता है पर एमसीडी की अनुमति लेनी पड़ेगी जो मुश्किल काम है।
विरोध का भी छीना जा रहा अधिकार
संविधान में दिए गए आर्टिकल 19 के तहत अपनी आवाज को स्वतंत्रता के साथ उठाना जनता का मौलिक अधिकार है। इसके लिए जनता को सरकार अथवा सरकारी व्यवस्था से परमिशन लेने की कोई जरूरत नहीं है। इसी के तहत हर क्षेत्र में एक सामान्य प्रदर्शन स्थल निर्धारित किया जाता है, ताकि उस स्थान पर कोई भी जाकर अपने आंदोलन को अंजाम दे सके। लेकिन जंतर-मंतर जैसे ऐतिहासिक धरना स्थल पर होने वाले आंदोलन पर रोक लगाने के एनजीटी के आदेश से अब यह सवाल खड़ा होने लगा है कि क्या आज के समय में कोई भी व्यक्ति अपनी आवाज उठाने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है।
बडे आंदोलनों का गवाह रहा है जंतर-मंतर
जंतर-मंतर में लंबे समय से कई आंदोलन हुए हैं जिनसे देश की दशा और दिशा भी तय हुई है। यह स्थल अलग-अलग तरह के विरोध प्रदर्शनों का गवाह रहा है। जुलाई 2011 में युवा पीढ़ी ने अन्ना आंदोलन की जो तस्वीर देखी, वह उनके जहन में हमेशा रहेगी। यह आंदोलन देश के तमाम लोगों ने एक साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ आपनी आवाज बुलंद की थी। अन्ना हजारे के आंदोलन में लोकपाल की लड़ाई में शामिल होने के लिए जो जन सैलाब उमड़ा था, वह शायद ही कोई भूला सकता है।
ऐसे फैसले मोदी सरकार में ही क्यों?
बता दें कि जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने का फैसला एनजीटी का है जिसका हम सभी को सम्मान करना चाहिए। मगर ऐसे में मन में एक सवाल यह भी उठता है कि जिस जंतर-मंतर पर भाजपा ने खुद ना जाने कितने आंदोलनों का समर्थन किया। उस स्थान पर उसी के शासनकाल में अचानक ध्वनि प्रदूषण की याद कहां से आ गई। बीते कुछ समय से हम सब जानते हैं कि सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को किस तरह से निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे में एनजीटी का यह फैसला महज एक इत्तेफाक है या साजिश। इस बारे में भी लोग आज एक बार सोचने को जरूर मजबूर होंगे। खैर लोगों को जो सोचना है वो सोचें लेकिन एनजीटी के इस फैसले से देश के उस वर्ग को मजबूती जरूर मिल गई है जो शुरू से ही भाजपा सरकार को तानाशाही मानसिकता से प्रेरित बताता है।

 

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