रांची। झारखंड सरकार इस वक्त मुकदमों में उलझी हुई है। इस कारण प्रदेश में विभागीय कार्यों का निपटारा नहीं हो पा रहा है। साथ ही, पैसों की भी बर्बादी हो रही है। इसके चलते सरकार जनता के मुद्दों पर ध्यान नहीं दे पा रही है। सरकार के विभिन्न विभाग मुकदमों के बोझ तले दबे हैं। सरकार के मानव संसाधन का एक बड़ा हिस्सा इन मुकदमों के निपटारे में ही हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के दौरे लगाने में जुटा है। जनता से जुड़े मुद्दों पर भी सरकार ध्यान देगी। राज्य में तेज गति से विकास की दरकार है, लेकिन फिलहाल विकास कार्यों की जगह मुकदमों को सुलझाने में ही सरकार उलझ कर रह गई है।
इससे जहां एक ओर विभागीय कार्यों के निपटारे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, वहीं श्रम, समय और पैसों की भी बर्बादी हो रही है। विधि विभाग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार के 19 विभागों के खिलाफ 5468 मुकदमे हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में दर्ज हैं। जितना समय इन मुकदमों में बर्बाद हो रहा है उसका सही इस्तेमाल विकास कार्यों में सुनिश्चित किया जाता तो प्रदेश की तस्वीर कुछ और होती। सर्वाधिक 935 मामले स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा व परिवार कल्याण विभाग पर दर्ज है। इस मामले में दूसरे स्थान पर नगर विकास व आवास विभाग व तीसरे स्थान पर जल संसाधन विभाग है। लंबित मामलों में से लगभग 48 फीसद मामलों में सरकार की ओर से शपथपत्र दायर किए गए हैं, जबकि तकरीबन छह फीसद मामलों में इन विभागों पर अवमानना वाद दायर है।
अवमानना वाद के सर्वाधिक 326 मामले नगर विकास व आवास विभाग के विरुद्ध दायर हैं। इनमें से 280 मामले हाईकोर्ट व 46 सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। जिन 10 विभागों से रिपोर्ट नहीं मिली है, उन पर करीब 1600 मामले दर्ज हैं।
अभी इन 10 विभागों की रिपोर्ट है बांकी
गृह कारा व आपदा प्रबंधन, स्कूली व साक्षरता, वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन, महिला, बाल विकास व सामाजिक सुरक्षा, उच्च, तकनीकी शिक्षा व कौशल विकास, उत्पाद व मद्य निषेध, सूचना प्रौद्योगिकी व ई-गवर्नेंस, मंत्रिमंडल निगरानी, भवन निर्माण, सूचना व जनसंपर्क विभाग।
मुकदमों के निष्पादन के लिए विधि विभाग ने लिखा पत्र
लंबित मुकदमों को लेकर विधि विभाग ने संबंधित विभागों के नोडल पदाधिकारियों को पत्र लिखा है। पत्र में लंबित मामलों में यथाशीघ्र निष्पादन के लिए प्रतिशपथ पत्र दायर करने की अपील की गई है। इससे इतर अवमानना वाद के मामले में कोर्ट के स्तर से पारित आदेश का अनुपालन या अपील दायर करने को कहा गया है। साथ ही, कोर्ट द्वारा जारी अंतिम आदेशों की प्रतिलिपि विभाग को मुहैया कराने की बात कही गई है।
सिर्फ कोर्ट में बहस पर हर महीने लाखों का खर्च
कोर्ट में बहस के नाम पर सरकार लाखों रुपये खर्च कर रही है। प्रोजेक्ट स्कूलों के शिक्षकों को नियमित करने का मामला 2010 से हाई कोर्ट में लंबित है। इस मामले में अल्लामा कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद कुछ बिंदुओं को लेकर प्रोजेक्ट शिक्षकों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कोर्ट ने संबंधित शिक्षकों को नियमित करने की योजना तैयार करने को कहा है। इस मामले में अब तक 36 से अधिक सुनवाई हो चुकी है। हर सुनवाई में सरकार को राशि खर्च करनी पड़ती है। इस मामले की अब अगली सुनवाई फरवरी 2018 को होगी। इसी तरह जैक के कर्मचारी मो. वसीम ने छठे कमीशन के तहत वर्ष 2006 से 2008 तक के वेतन मद में एरियर देने की मांग को लेकर 2012 में याचिका दायर की है। इस मामले की सुनवाई आज तक जारी है।
(साभार: जागरण)