जंतर-मंतर से पुलिस ने पत्रकारों को किया गिरफतार

नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 5 अक्टूबर को जंतर-मंतर पर धरना देने की रोक लगा दी थी उसके बावजूद कई पत्रकार जंतर-मंतर पर धरना देने पहुंचे और पुलिस ने उन्हें गिरफतार कर पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने ले गई। पत्रकारों की गिरफतारी की सूचना आग की तरह फैलने लगी और देखते ही देखते थाने के अंदर दर्जनों की संख्या में पत्रकार एकत्रित हो गए। पत्रकारों की बढती संख्या को देखकर पुलिस ने पत्रकारों को थाने के अंदर जाने से रोकने का प्रयास किया। पत्रकारों की बढती संख्या और विरोध को भांपकर पुलिस ने नरमी दिखाई और पत्रकारों को शांत कराया। गिरफतार वरिष्ठ पत्रकार सिराज शाहिल ने बताया कि एनजीटी मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है। गरीब, पीडित और शोषित व्यक्ति को जब न्याय नही मिलता है तो, वह जंतर-मंतर का रूख करता है और धरना देकर अपनी आवाज केन्द्र सरकार तक पहुंचाता है। लेकिन उसकी आवाज दबानें के लिए एनजीटी ने जंतर-मंतर पर धरना करना असैवधानिक करार देते हुए रोक लगाई है। उन्होने कहा कि एनजीटी का कहना है कि रामलीला मैदान में धरना-प्रदर्शन किया जाए। लेकिन रामलीला मैदान की बुकिंग के लिए करीब 98 हजार रूपए प्रतिदिन एमसीडी को देना होगा। ऐसे में गरीब, शोषित और पीडित व्यक्ति के पास पैसा नही होगा तो, वह धरना नही देे पाएगा और उसकी आवाज दब जाएगी। उन्होनें कहा धरना-प्रदर्शन के लिए पहले संसद गेट के समीप बोर्ट क्लब बाद में जंतर-मंतर और अब रामलीला मैदान धरना-प्रदर्शन करने की नसीहत दी जा रही है। नियमानुसार संसद से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय धरना स्थल होना चाहिए। लेकिन एनजीटी तुगलकी फरमान सुनाकर एक सौ, पच्चीस करोड जनता के मौलिक अधिकारों को खतरे में डाल दिया है। उन्होनें कहा कि यदि सरकार को धरना-प्रदर्शन रोकना है तो, शिकायत मंत्रालय का गठन करे और शिकायत सुननें वाला मंत्री शिकायतों का निस्तारण करे। उन्होनें कहा कि नदियों में गंदे नालों का पानी गिर रहा है। नदियों का असित्तिव खतरे में है कई नदिया नाले में तब्दील हो चुकी है। कूडों-कचरों की वजह से बीमारियां फैल रही है। इन पर रोक लगाने के लिए एनजीटी के पास समय नही है। उन्होनें कहा कि सवा सौ करोड के लोगों की अभिव्यक्ति की लडाई है और अभिव्यक्ति की लडाई में देश के सभी नागरिक साथ है। 

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