लोक भाषा में सबकी बात करती हैं कुमकुम झा

मैथिली भाषा के विकास की ललक ने कुमकुम झा को एक सफल साहित्यकार व लेखिका की मुकाम पर पहुंचा दिया। कुमकुम झा की दो पुस्तक और प्रकाशित हो चुकी हैं। मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार के सौजन्य से ‘शब्दक बरियाती’। इसमें मैथिली की सौ कविताओं को संकलित किया गया है। इसके साथ ही ‘स्नेह कुसुम’ कविता संग्रेह में कुमकुम झा ने मैथिली और हिंदी की 51-51 कविताओं को संकलित किया है।

दीप्ति अंगरीश

मां और मातृभाषा को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता है। मिथिला मां और मातृभाषा मैथिली। दोनों ही अनुपम। मिथिला की गौरवशाली परंपरा को अखिल विश्व ने सराहा है। उसी मिथिला की धिया कुमकुम झा की पुस्तक का जब सात समंदर पार माॅरिशस में विमोचन होता है, तो पूरे मिथिला की धाक एक बार फिर पूरे विश्व में जमती है। दुनिया भर में मैथिली भाषा की महत्ता उसके मिठास की लेकर है। उसकी वृहत्त शब्द भंडार को लेकर है। मधुबनी के महिनाथपुर गांव की बेटी कुमकुम ने दरभंगा के एमआरएम काॅलेज से पढाई की। मधुनी के छतौनी गांव निवासी अभियंता श्री आर एन झा से विवाह के बाद भले ही वह मिथिला से बाहर रहती हों, लेकिन उनका दिल आज भी मिथिला के लिए धडकता है। मैथिली के विकास के लिए वह सतत प्रयत्नशील हैं। देश की राजधानी नई दिल्ली में एक शिक्षिका के रूप में वो नौनिहालों को संवार रही हैं, तो साथ ही साथ मैथिली और हिंदी साहित्य में साधनारत हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री की पुस्तक का कर चुकी हैं अनुवाद
देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुस्तक ‘मेरी एक्यावन कविताएं’ का उन्होंने मैथिली में ‘हमर एकावन कविता‘ कें नाम से अनुवाद किया है। इस पुस्तक का विमोचन भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह के हाथों हुआ था। चंद दिन पहले उन्होंने मिथिला की बेटी व गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा की पुस्तक ‘सीता पुनि बोली’ का मैथिली अनुवाद किया है। इसका विमोचन भारत में नहीं, बल्कि माॅरिशस में किया गया है। इस विमोचन समारोह में माॅरिशस की शिक्षा मंत्री, सुलभ इंटरनेशनल के पद्मश्री डाॅ बिन्देश्वर पाठक, गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा उपस्थित थी।
मैथिली को लेकर है बेहद आकर्षण
मैथिली भाषा के विकास की ललक ने कुमकुम झा को एक सफल साहित्यकार व लेखिका की मुकाम पर पहुंचा दिया। कुमकुम झा की दो पुस्तक और प्रकाशित हो चुकी हैं। मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार के सौजन्य से ‘शब्दक बरियाती’। इसमें मैथिली की सौ कविताओं को संकलित किया गया है। इसके साथ ही ‘स्नेह कुसुम’ कविता संग्रेह में कुमकुम झा ने मैथिली और हिंदी की 51-51 कविताओं को संकलित किया है। वे कहती हैं कि अपनी भावनाओं को जब हम शब्दरूप देते हैं, तो मुझे काफी सुकून मिलता है। व्यक्ति क्षरणशील है, लेकिन शब्द तो ब्रह्म है। साहित्य सृजन तो एक तरह से ब्रह्म से साक्षात्कार करना है। एक सवाल के जवाब में कुमकुम झा कहती हैं कि हर मैथिल को अपने बच्चों को मातृभाषा मैथिली सिखाना चाहिए। मिथिला के संस्कार से परिचित कराना चाहिए। यह हमारी भाषा और संस्कृति के लिए बेहद जरूरी है। बता दें कि कुमकुम झा की दो पुस्तकें अभी प्रकाशनाधीन हैं। इसमें संस्कृतत के प्रकांड विद्वान महाकवि कालीदास रचित ‘मेघदूतम‘ का संस्कृत से मैथिली में अनुवाद है। एक पुस्तक यात्रा वृतांत पर है।
साहित्य में हैं साधनारत
साहित्य लोकजीवन का अभिन्न अंग है। किसी भी काल के साहित्य से उस समय की परिस्थितियों, जनमानस के रहन-सहन, खान-पान व अन्य गतिविधियों का पता चलता है। समाज साहित्य को प्रभावित करता है और साहित्य समाज पर प्रभाव डालता है। कुमकुम झा कहती हैं कि साहित्य समाज रूपी शरीर की आत्मा है। साहित्य अजर-अमर है। कई मनीषियों ने कहा है – समाज नष्ट हो सकता है, राष्ट्र भी नष्ट हो सकता है, किन्तु साहित्य का नाश कभी नहीं हो सकता। वे कहती हैं कि इसलिए अविनाशी साहित्य के आंगन में हूं। अविनाशी शिव मेरे अराध्य हैं। उनसे ही तो सत्यं, शिवं, सुन्दरं की परिकल्पना होती है। ‘हितेन सह सहित तस्य भवः’ – कहा जा सकता है कि साहित्य लोककल्याण के लिए ही सृजित किया जाता है। साहित्य का उद्देश्य मनोरंजन करना मात्र नहीं है, अपितु इसका उद्देश्य समाज का मार्गदर्शन करना भी है। साहित्य के रास्ते समाज में उतरीं। अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर रही हूं। सामाजिक संस्था ‘सुगति सोपान’ के जरिये समाज के वंचितों को सशक्त बनाने के लिए प्रयासरत हूं।
जीवन के संग संग चलता रहा है संगीत
बीते 23 वर्ष से संगीत जगत से जुड़ी हुई हैं कुमकुम झा। एक सवाल के जवाब में कहती हैं कि जीवन स्वयं में एक संगीत है। बचपन में मां-नानी-दादी के गीतों ने कानों में मिश्री घोला। किशोरावस्था में काॅलेज आई तो बाॅलीवुड के गीतों ने मन को मोहा, लेकिन अपनी लोक संगीत से लगाव काफी रहा। जब श्री आर एन झा, जो वर्तमान में भारत संचार निगम लिमिटेड में वरिष्ठ पदाधिकारी हैं, के साथ विवाह हुआ, तो उसके बाद जीवन ही संगीत बन गया। जीवन के हर रंग में इनका साथ मिला। यदि साथ न मिलता, तो नहीं साहित्य का यह रूप आप लोगों के सामने होता और न ही मैं संगीत के क्षेत्र में उतर पाती। इसलिए मैं तो यही कहूंगी कि मेरे जीवन के साथ-साथ संगीत चलता रहता है। हां, आपको बता दूं कि म्यूजिक कंपनी टी-सीरिज के मैथिली एल्बम में महादेव और विद्यापति गीतों का पार्श्व गायन का मौका मुझे मिला। दूरदर्शन केंद्र, पटना में वर्ष 1993, 1994, 1995 में आयोजित गीत-गजल कार्यक्रम का संचालन भी किया। वर्ष 1983 में प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) से शास्त्रीय गायन में संगीत प्रभाकर, वर्ष 1996 में प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) से सुगम संगीत में संगीत प्रभाकर और वर्ष 2004 में प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) से शास्त्रीय गायन में संगीत प्रवीण की डिग्री हासिल करने में कामयाब रही।

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